बिहारः नीतीश कुमार के लिए सबसे अहम है दूसरा चरण
बिहार में दूसरे चरण का मतदान कई मायनों में खास है. जिन पांच सीटों में इस चरण में मतदान होंगे, उन सभी पर एनडीए की ओर से जदयू के उम्मीदवार हैं. इस वजह से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यह चरण सबसे अहम है. वहीं बिहार के विपक्षी महागठबंधन के सामने अपने बीते प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती होगी क्योंकि 2014 के आम चुनाव में इन पांच में से चार सीटों पर उसने जीत दर्ज की थी.
दूसरे चरण में बिहार के बांका, भागलपुर, कटिहार, पुर्णिया और किशनगंज लोक सभा क्षेत्रों में वोट डाले जाएंगे. किशनगंज सीट को छोड़ शेष चार सीटों पर निवर्तमान सांसद एक बार फिर से चुनाव मैदान में हैं. किशनगंज सांसद असरारुल हक़ का कुछ महीनों पहले निधन हो गया था. इन पांच सीटों पर सबसे बड़े चेहरे के रूप में कांग्रेस के तारिक अनवर कटिहार से चुनाव मैदान में हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री तारिक ने 2014 का चुनाव कटिहार से ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीता था.
2014 में इन सभी सीटों पर बीजेपी ने उम्मीदवार उतारे थे मगर सभी पर उसे हार का सामना करना पड़ा था. बीजेपी के हारने वाले नेताओं में एक बड़ा नाम भागलपुर से चुनाव लड़ रहे शाहनवाज हुसैन का भी था. तब नीतीश कुमार बीजेपी के खिलाफ लड़ रहे थे और अब साथ हैं. ऐसे में नीतीश सीट बंटवारे में बीजेपी की ये सभी हारी हुई सीट अपने खाते में करने में सफल रहे. नतीजे में शाहनवाज हुसैन जैसे बीजेपी के बड़े नेता को भी बेटिकट होना पड़ा जिसका दर्द शाहनवाज ने सार्वजनिक रूप से साझा भी किया था. इस चरण की अहमियत को देखते हुए नीतीश ने इन सीटों पर सुशील मोदी और रामविलास पासवान के साथ मिलकर पूरा जोर लगाया. नीतीश ने इन क्षेत्रों में हर दिन तीन सभाएं कीं.
यह चरण पहले चरण के चुनाव से इस मायने में अलग है कि पहले चरण में जहां सभी चार सीटों पर सीधा मुकाबला हुआ वहीं इस चरण में दो सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला है. बिहार में यूं तो इस बार एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है मगर दूसरे चरण की बांका और किशनगंज ऐसी सीटें हैं जहां मुकाबला त्रिकोणीय बन गया है.
बांका में निर्दलीय प्रत्याशी और पूर्व सांसद पुतुल कुमारी के चुनाव मैदान में आ जाने से ऐसा हुआ है. बिहार एनडीए में हुई सीट शेयरिंग में बांका की सीट जदयू के खाते में गई और इस तरह 2014 में बीजेपी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाली पुतुल कुमारी बेटिकट हो गईं. इसके बाद पुतुल ने निर्दलीय प्रत्याशी बनने के फैसला किया. वहीं किशनगंज सीट पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के अख्तरुल ईमान के चुनाव मैदान में उतरने के कारण सरगर्मी बढ़ गई है. असदुद्दीन ओवैसी खुद किशनगंज के कई इलाकों में प्रचार कर चुके हैं. अख्तरुल ईमान वहीं उम्मीदवार हैं जो 2014 के चुनाव में जदयू उम्मीदवार के बतौर पर्चा भरने के बावजूद बीच चुनाव में मैदान से हट गए थे.
महागठबंधन को 2014 में मोदी लहर में भी इन पांच सीटों पर जबरदस्त सफलता इस वजह से मिली थी क्योंकि इन क्षेत्रों में उसका कोर सामाजिक आधार (यादव-मुस्लिम आबादी) अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कहीं ज्यादा बड़ा है. कटिहार, पुर्णिया और किशनगंज बिहार के माइनॉरिटी कान्सन्ट्रैटड डिस्ट्रिक्स (एमएसडी) में आते हैं. किशनगंज में जहां करीब दो तिहाई आबादी मुसलमानों की है वहीं कटिहार में करीब पैतालीस फीसदी आबादी मुसलमानों की है. इसी वजह से 2014 के त्रिकोणीय मुकाबले में भी अभी के महागठबंधन ने पांच में से चार सीट पर दर्ज की थी.
बिहार में पहले चरण में जिन चार सीटों जमुई, नवादा, गया और औरंगाबाद पर चुनाव हुए वे सभी सीटें अभी एनडीए के पास हैं. मतदान के बाद इन क्षेत्रों से मिल रहे संकेतों के मुताबिक इस बार मुकाबला बराबरी का है. औरंगाबाद में महागठबंधन को बढ़त इस वजह से बताई जा रही है क्योंकि वहां उसके प्रत्याशी के पक्ष में पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की गोलबंदी होने की खबरें है. वहीं जमुई में एनडीए नेताओं और उसके मूल आधार वर्ग की एक हद तक नाराजगी के कारण यह बताया जा रहा है कि चिराग पासवान की मुश्किलें बढ़ी हैं. वहीं गया में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अपने कद के कारण एक सशक्त उम्मीदवार बताए जा रहे हैं.
दूसरे चरण की पांच सीटों में इस बार भी महागठबंधन आगे दिखाई दे रहा है. बांका में जहां निर्दलीय पुतुल कुमारी की उम्मीदवारी राजद की राह आसान बनाता दिखाई दे रहा है वहीं भागलपुर में जदयू उम्मीदवार की छवि के साथ-साथ बीजेपी के समर्थक वर्ग की चुप्पी राजद उम्मीदवार का पक्ष मजबूत कर रही है. बाकी की तीन सीटों का सामाजिक-राजनीतिक समीकरण भी अभी महागठबंधन के पक्ष में दिखाई दे रहा है.