विपक्षी दलों के शासन वाले पांच राज्यों में जीएसटी क्षतिपूर्ति के मद में 10 हजार करोड़ बकाया
विपक्षी दलों के शासन वाले पांच राज्यों ने माल एवं सेवा कर (जीएसटी) क्षतिपूर्ति जारी करने में हो रही देरी पर चिंता जाहिर की है.
आम आदमी पार्टी शासित दिल्ली, तृणमूल कांग्रेस शासित पश्चिम बंगाल, कांग्रेस शासित पंजाब और राजस्थान तथा वाम मोर्चे के शासन वाले केरल के वित्त मंत्रियों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि उन्हें केंद्र सरकार की ओर से जीएसटी क्षतिपूर्ति जारी करने में दो महीने की देरी का सामना करना पड़ रहा है.
जीएसटी को एक जुलाई 2017 को लागू किया गया था. राज्यों को वादा किया गया था कि कर संग्रह कम होने की स्थिति में उन्हें पांच साल तक मासिक आधार पर क्षतिपूर्ति दी जाएगी. अगस्त और सितंबर महीने की क्षतिपूर्ति का भुगतान बकाया है.
इन पांचों राज्यों ने कहा कि संयुक्त तौर पर उनका करीब 10 हजार करोड़ रुपये बकाया है.
पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने संवाददाताओं से कहा, ”हमने सोचा कि हम वित्त निर्मला सीतारमण से अपील करेंगे कि वह इस मामले में निजी तौर पर दखल दें तथा संसद द्वारा पारित संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं होने दें.”
उन्होंने कहा कि यदि इस बकाया क्षतिपूर्ति का भुगतान नहीं होता है तो सभी राज्यों की स्थिति खराब होगी. यह पहली बार ऐसा हो रहा है कि जीएसटी क्षतिपूर्ति के भुगतान में देरी की जा रही है. उन्होंने कहा, ”यह एक खतरनाक स्थिति है. ऐसा पहले कभी भी नहीं हुआ.”
मित्रा ने कहा कि पश्चिम बंगाल का बकाया 1,500 करोड़ रुपये है.
केरल के वित्त मंत्री थॉमस आइजैक ने कहा कि उनके राज्य को क्षतिपूर्ति के तौर पर 1,600 करोड़ रुपये मिलने का अनुमान है. उन्होंने कहा, ”केरल में करीब एक सप्ताह से खजाना खाली है. यह राज्यों की वित्तीय स्थिति में केंद्र सरकार द्वारा सृजित किया गया संकट है. यह भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ. कुछ भयानक होने वाला है.”
पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने कहा कि यदि तत्काल क्षतिपूर्ति जारी नहीं की गयी तो उनके राज्य का खजाना खाली होने का जोखिम है.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि क्षतिपूर्ति भुगतान में देरी से राज्यों के ऊपर वित्तीय दबाव है. उन्होंने कहा कि दिल्ली को क्षतिपूर्ति के तौर पर 2,355 करोड़ रुपये मिलने का अनुमान है.
संयुक्त बयान में कहा गया कि इस देरी की कोई वजह नहीं बताई गई है. इसके कारण राज्यों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है और कुछ राज्यों का खजाना खाली हो चुका है. उन्हें ओवरड्राफ्ट लेना पड़ रहा है.