सामाजिक कार्यकर्ता और साहित्यकार रमणिका गुप्ता का निधन


activist and author ramanika gupta dies in delhi

 

ताउम्र संघर्ष करने वाली साहित्यकार और समाजसेविका रमणिका गुप्ता का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया है. रमणिका जी ने वृहद साहित्य की रचना की. उनके साहित्य में हमेशा समाज के शोषित तबके की आवाज उभरकर सामने आई. उनके निधन के बाद समूचे साहित्य जगत में शोक की लहर है.

रमणिका गुप्ता का जन्म 22 अप्रैल 1930 को पटियाला रियासत के सुनाम गांव में हुआ था. वे बचपन से ही मुखर और विद्रोही स्वाभाव की थीं. आजादी की लड़ाई के दौरान वे अरुणा आसफअली और गांधी जी से जुड़ी रहीं. विभाजन के दौरान हुई भीषण सांप्रदायिक हिंसा ने उनके अवचेतन पर गहरा प्रभाव डाला. इतना कि वे ताउम्र सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ मोर्चा खोले रहीं. इसके साथ ही उन्होंने दलित, महिला, मजदूर और आदिवासी अधिकारों के लिए भी खुलकर संघर्ष किया.

सामाजिक क्षेत्र में संघर्षरत रहने के साथ-साथ उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में भी भाग लिया. कालांतर में वे मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी से जुड़ीं. एक लंबे समय तक वे झारखंड की कोयला खदानों की मजदूर यूनियन की अध्यक्ष रहीं.

मुख्य रूप से झारखंड उनका कर्मक्षेत्र रहा. वे 1960 में अपने पति के साथ झारखंड आई थीं. इस समय तक वे हिंदी में एम.ए कर चुकी थीं और इसी समय उन्होंने धनबाद से अपनी राजनीतिक सक्रियता की शुरुआत की.

धनबाद में ही उन्होंने महिलाओं और बच्चों के लिए काम करना शुरू किया. यहीं उन्होंने अपनी पत्रिका ‘युद्धरत आम आदमी’ का संपादन शुरू किया. इस पत्रिका में उन्होंने ऐसी अनेक कविताएं लिखीं जो उस समय के शोषित समाज का प्रतिबिंबन कर रही थीं.

1965 से जो संघर्ष उन्होंने शुरू किया तो फिर रुकने का नाम नहीं लिया. बिहार में अकाल पड़ा तो उन्होंने पीड़ितों के लिए अपनी जी-जान एक कर दी. गोमिया में उन्होंने पानी की लड़ाई लड़ी. छोटानागपुर में वे आदिवासियों द्वारा छेड़े गए जल, जंगल और जमीन के संघर्ष के साथ खड़ी हुईं. हजारीबाग में उन्होंने आदिवासियों के साथ ‘जेल भरो’ और ‘घूस नहीं अब घूसा देंगे’ जैसे आंदोलन चलाए. वहीं कोयला संघर्ष समिति बनाकर उन्होंने माफिया और ठेकेदारों के खिलाफ ऐतिहासिक संघर्ष किया.

इन सब संघर्षों के दौरान उन्हें कई बार पुलिसिया दमन का सामना भी करना पड़ा. इस दमन की वजह से उनके शरीर को भी क्षति पहुंची लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. वे लगातार शोषितों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष करती रहीं. इस दौरान कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा.

देश के भीतर संघर्षरत रहने के साथ ही वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सक्रिय रहीं. वे अंतरराष्ट्रीय मजदूर आंदोलन से जुड़ीं और इस क्रम में उन्होंने कई देशों की यात्राएं कीं. उनकी आत्मकथा हादसे और आपहुदरी काफी मशहूर है.


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