भारत के बाद शी जिनपिंग नेपाल दौरे पर, निवेश बढ़ाने की है योजना
चीन अगले दो साल के दौरान नेपाल को उसके विकास कार्यक्रमों तथा उसे जमीनी संपर्क मार्ग से जुड़ा देश बनाने के लिये 56 अरब नेपाली रुपये की सहायता देगा. चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने 12 अक्टूबर को इसकी घोषणा की.
शी ने काठमांडू में नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के साथ 12 अक्टूबर को हुई बातचीत के दौरान यह घोषणा की. वह दो दिवसीय नेपाल यात्रा पर काठमांडू पहुंचे हैं. वह पिछले 23 साल में नेपाल का दौरा करने वाले चीन के पहले राष्ट्र प्रमुख हैं.
चीन के लिए दक्षिण एशिया रणनीतिक केंद्र है. वह क्षेत्र को सुरक्षा और सड़क परियोजनाओं के लिए फायदे के नजरिए से देखता है.
इससे ठीक एक दिन पहले शी भारत के दौरे पर थे.
हालांकि, सांस्कृतिक रूप से नेपाल भारत का करीबी रहा है. लेकिन, हाल के वर्षों में चीनी निवेशकों ने नेपाल में अरबों रुपये लगाए हैं.
नेपाल एशिया का सबसे गरीब और कम विकसित लोकतांत्रिक देश है. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में नेपाल ने अपने व्यापार समझौतों में विविधता लाने की कोशिश की है. इसके अलावा नेपाल ने भारत पर निर्भरता को भी कम किया है. केपी शर्मा ओली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं.
नेपाल उत्तरी भारत और तिब्बत के साथ अपनी सीमाओं को साझा करता है.
चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के लिए नेपाल मुख्य देश है. चीन के लिए नेपाल रेलमार्ग के जरिए उपमहाद्वीप से जुड़ने का मुख्य साधन है.
नई दिल्ली में ब्रुकिंग्स इंडिया की विदेश नीति के छात्र कॉन्सटैनटीनो जेवियर ने कहा, ‘चीन अपने लिए नीतिगत रूप से एक आसान जगह की तलाश में है. चीन भारत को सुरक्षा संबंधित चिंताओं के मद्देनजर बिना निराश किए नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है.’
यह संतुलन बनाना काफी मुश्किल है. ऐतिहासिक रूप से चीन और भारत दोनों ने ही नेपाल में अपना प्रभाव बनाने के लिए बहुत कोशिशें की हैं. इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच तनाव भी रहता है.
भारत और चीन के बीच तनाव की वजह कश्मीर का विवादित क्षेत्र, पाकिस्तान के साथ चीन का बेल्ट और रोड समझौता और पहाड़ी सीमा क्षेत्रों में नेपाल की ओर से सैनिकों की तैनाती है.
हाल के वर्षों में नेपाल के साथ भारत के रिश्ते को भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.
साल 2015 में नेपाल ने अपने लिए नया संविधान लागू किया था. नेपाल ने माओवादी विद्रोह और दशकों तक राजाओं का शासन झेलने के बाद खुद के लिए लोकतांत्रिक संविधान जारी किया था. इसकी प्रतिक्रिया में भारत ने अनाधिकारिक रूप से महीनों तक सीमा पर माल के निर्यात के लिए गाड़ियों के आवाजाही पर रोक लगा दी थी.
माना जाता है कि नेपाल के संविधान का मसौदा तैयार करने में भारत की कोई बड़ी भूमिका नहीं थी इसलिए जवाब में भारत ने रोक लगाई थी जिससे मानवीय संकट पैदा हो गया. हजारों की संख्या में ट्रक नेपाल सीमा के पास ही रोक दिए गए थे. इस संकट की वजह से नेपाल को खाने-पीने की चीजें, दवा और ईंधन की कमी से जूझना पड़ा था.
नेपाल में विनाशकारी भूकंप आने के बाद राहत कार्यों में लगे कर्मचारियों को मूलभूत चीजें मुहैया करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. भूकंप में लगभग नौ हजार लोग मारे गए थे और लाखों लोगों को अपना घर गंवाना पड़ा था.
ओली साल 2017 में दोबारा प्रधानमंत्री बने. उनकी पार्टी ने राष्ट्रीयता और चीन के साथ व्यापार बढ़ाने के वादे के साथ चुनाव लड़ा था. तब चीन ने भी माना था कि नेपाल के साथ उसके रिश्ते काफी मजबूत हैं. भारत के प्रभाव वाले देशों- जिसमें श्रीलंका और माल्दीव शामिल हैं, चीन ने उससे अपने करीबी रिश्ते होने का दावा किया था.
ओली के विदेशी मामलों के सलाहकार राजन भट्टाराय ने कहा, ‘रेलमार्ग योजना के अलावा नेपाल चीन के साथ पूरे हिमालय क्षेत्र के लिए जलविद्युत, ऊर्जा और पारगम उद्योग के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करेगा.’
भट्टाराय ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के साथ उसके संबंध में कोई कड़वाहट नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘सभी के साथ दोस्ती, किसी से दुश्मनी नहीं. यही हमारी विदेश नीति का मूल सिद्धांत है. साल 1996 में आखिरी बार चीन के राष्ट्रपति नेपाल आए थे तब से चीजें महत्वपूर्ण रूप से बदली हैं. क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों में चीन के साथ नेपाल के किरदार में बदलाव आया है.’
दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव से नेपाल के कुछ अधिकारियों का मानना है कि शी के साथ समझौता करने का मतलब है अपने देश की संप्रभुता को खोना.
श्रीलंका में बड़े पैमाने पर तटीय योजनाओं के लिए चीन से वित्तीय सहायता मिली थी. बाद में श्रीलंका को चीन को राशि लौटाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. इसके लिए सरकार को तट बंद करना पड़ा और 15,000 एकड़ की जमीन चीन को देनी पड़ी थी.
2017 के बाद से चीन को नीतिगत रूप से श्रीलंका में अपना पैर जमाने का मौका मिला. इससे उसे जलमार्ग के जरिए व्यापार, सैनिकों के लिए जलमार्ग के साथ क्षेत्र में भी हिस्सेदारी मिल गई.
जेवियर ने कहा, ‘मुख्य परियोजनाओं को पूरा करने की चीन की क्षमता को लेकर संदेह बढ़ा है. इसके अलावा ऋण की शर्तें और ऋण स्थिरता को लेकर भी संदेह बढ़ा है.’
नेपाल में मौद्रिक चिंताएं और वैचारिक चिंताएं आपस में उलझ कर रह गई हैं. पिछले महीने ओली, उनकी पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने मिलकर दो-दिवसीय संगोष्ठी की मेजबानी की थी. इस संगोष्ठी का विषय ‘शी जिनपिंग की सोच: चीन की साम्यवादी सरकार के राजनीतिक सिद्धांत का आधार’ था.
इस कार्यक्रम की नेपाल के विपक्षी दलों ने आलोचना की थी. उनका मानना था कि चीन के साथ इस तरह का कार्यक्रम करना देश के लोकतंत्र के लिए परेशानी की बात है.
अखबार ‘द काठमांडू पोस्ट’ से नेपाली कांग्रेस पार्टी की उपराष्ट्रपति बिमालेंद्र निधि ने कहा, ‘हमारा संविधान और राजनीतिक प्रावधान लोकतंत्र, बहुलवाद, संघवाद, एक खुले समाज और संसदीय लोकतंत्र पर आधारित है. चीन की राजनीतिक प्रणाली में इन्हीं सब चीजों की कमी है.’
ओली और शी के बीच कई संवेदनशील मुद्दों में से एक प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर करना शामिल है. इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद चीन नेपाल से तिब्बती शरणार्थियों को निकाल सकता है. इस डर से स्थायी समाधान के लिए कई शरणार्थी भारत आने की योजना बना रहे हैं.
विश्लेषकों का मानना है कि प्रत्यर्पण संधि का असर दक्षिण एशिया में चीन की निगरानी क्षमता पर भी पड़ सकता था क्योंकि चीन पूरे क्षेत्र में क्रेडिट लाइनों का विस्तार करता है.
यही वो समझौता है जिसके बारे में अधिकारियों ने विस्तार से बात करने से मना कर दिया था. शी के दौरे पर आने से पहले इसी समझौते को लेकर लगातार नेपाल पर दबाव बनाया जा रहा था.
काठमांडू स्थित त्रिभुवन विश्वविद्यालय में नेपाल और एशियाई अध्ययन के विभागाध्यक्ष म्रिगेंद्र बहादुर कार्की ने कहा, ‘इस दौरे के साथ ही चीन नेपाल को बड़े पैमाने पर आर्थिक रूप से मदद करने का प्रस्ताव पेश कर रहा है. लेकिन इसमें उनका स्वार्थ निहित है. शी नेपाल को चीन के काबू में करने के लिए आ रहे हैं.’