टाइम मैग्जीन ने दी नरेंद्र मोदी को ‘डिवाइडर इन चीफ’ की उपाधि
प्रतिष्ठित अंग्रेजी पत्रिका द इकॉनमिस्ट के बाद अब टाइम ने भी अब नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करते हुए लिखा है कि सरकार न सिर्फ आर्थिक मोर्चे पर विफल हुई है बल्कि उसने भारत में एक जहरीले धार्मिक राष्ट्रवाद का वातावरण निर्मित किया है. पत्रिका ने लिखा है कि मोदी 2014 में किए गए अपने वादों का पूरा करने में सफल नहीं हुए हैं. उनका ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा विडंबना साबित हुआ है. पत्रिका लिखती है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में बुनियादी कानूनों का ढांचा इस कदर दूषित हुआ है कि अब खुद सरकार के लिए सांप्रदायिक हिंसा को नियंत्रित करना संभव नहीं रह गया है.
जाहिर है कि टाइम ने भी उस सिलसिले को आगे बढ़ाया है जिसके तहत तमाम वैश्विक मीडिया संस्थानों ने मोदी सरकार के कार्यकाल को निराशाजनक बताते हुए उसकी विभाजनकारी नीतियों के प्रति आगाह किया है. पत्रिका ने अपनी कवर स्टोरी में मोदी को ‘डिवाइडर इन चीफ’ कहते हुए लिखा है कि आर्थिक मुद्दों से लेकर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों तक मोदी का कार्यकाल भारत के लिए किसी आपदा की तरह रहा है.
पत्रिका का स्वर नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान अल्पसंख्यक समुदायों पर हुए हमले के प्रति ख़ासा तल्ख़ है. उसने लिखा है कि, “साल 2017 में खून से लथपथ कमीज के साथ भीड़ से अपने जीवन की भीख मांग रहे मोहम्मद असीम का दृश्य मोदी के कार्यकाल को सबसे बेहतर ढंग से परिभाषित करता है. इस तरह की हर घटना के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया एक जैसी ही रही है. उसने ऐसी हर घटना के बाद चुप्पी धारण कर ली है.”
बेंगलुरु साउथ संसदीय सीट से चुनाव लड़ने वाले तेजस्वी सूर्या के बयान का जिक्र करते हुए पत्रिका ने लिखती है कि ऐसे युवा चेहरे ही प्रधानमंत्री की बहुसंख्यकवाद की नीतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. तेजस्वी सूर्या ने अपने प्रचार के दौरान खुलेआम कहा कि अगर आप मोदी के साथ नहीं हैं तो आप राष्ट्र-विरोधी तत्वों के साथ हैं. इसके अलावा पत्रिका ने भोपाल से सत्ताधारी पार्टी की उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर को लेकर भी सख्त टिप्पणी की है. पत्रिका लिखती है कि आतंकी हमलों की आरोपी और जमानत पर रिहा एक महिला को उम्मीदवार बनाकर पार्टी ने अपने चिर-परिचित रुख का परिचय दिया है.
पत्रिका ने आर्थिक मोर्चों पर मोदी सरकार की विफलता और संवैधानिक संस्थानों के अपने निहित राजनीतिक एजेंडे के लिए इस्तेमाल पर भी सवाल उठाए हैं. “सरकार ने हिन्दू राष्ट्रवादी विचारधारा के समर्थक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति को रिजर्व बैंक के बोर्ड में नियुक्त किया. उन्हीं की सलाह पर प्रधानमंत्री ने नोटबंदी जैसा कदम उठाया जिसने भारत की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया.” पत्रिका ने आगे लिखा है कि चुनाव के वक्त प्रधानमंत्री अपनी आर्थिक विफलताओं के कारण ही राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा और पाकिस्तान जैसे मुद्दों का सहारा ले रहे हैं.