किसानों को सहायता की भीख नहीं, फसल की उचित कीमत चाहिए
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 24 फरवरी को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना’ का शुभारंभ किया. योजना की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा, “इससे देश के करोड़ों किसानों को सालाना छह हजार रुपये की सहायता दी जाएगी. इसी कड़ी में आज एक करोड़ एक लाख किसानों के बैंक खातों में योजना की पहली किश्त ट्रांसफर करने का सौभाग्य मिला. यह मेरे लिए बहुत भावुक क्षण है.”
मोदी सरकार ने अंतरिम बजट (हालांकि इसे पूर्ण बजट की तरह पेश किया गया) में ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना’ शुरू करने का प्रावधान किया था. इसके तहत दो हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानों को सालाना 6,000 रुपये की आर्थिक सहायता देने का ऐलान कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने किया था. यह राशि दो-दो हजार रुपये की तीन किश्तों में हर साल दी जानी है, जिसकी पहली किश्त 31 मार्च 2019 तक किसानों के खाते में जमा होनी है.
इस तरह उक्त योजना पिछले साल दिसम्बर 2018 से लागू की जानी है, लेकिन इसे लागू करने की तैयारी कितनी थी उसे मंत्री के इस स्वीकार से पता चला कि योजना के लिए योग्य उम्मीदवारों की सूची अभी नहीं बनी है. फिलवक्त योजना के तहत पहली किश्त में चुनाव से पहले 20 हजार करोड़ रुपये बांटे जाएंगे. साल 2019-20 में पूरी योजना के लिए 75 हजार करोड़ रुपये का बजट रखा गया है.
अनेक राज्यों में किसानों के लगातार आंदोलन हो रहे हैं. इसका असर पिछले दिनों हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों पर भी पड़ा, जब हिंदी पट्टी के तीन राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सत्ता छिन गई. इसकी प्रमुख वजह किसानों की नाराजगी को माना गया. इसी के मद्देनजर किसानों को डायरेक्ट कैश ट्रांसफर करने का दांव सरकार ने खेला है. वैसे चुनाव से महज 60 दिन पहले सरकारें बजट नहीं पेश करतीं बल्कि वह अपने पांच साल के कामकाज का हिसाब देती हैं.
ध्यान रहे कि अंतरिम बजट में की गईं घोषणाओं की जब तक फाइलें आकार लेंगी तब तक चुनावी अखाड़ा अपने शबाब पर होगा. उस अखाड़े में धूल के गुबार उठ रहे होंगे. फिर किसकी योजना और कौन पात्र, यह चिंता न सरकार को रहेगी और न जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारियों को होगी. वह तो आने वाली सरकार के हिसाब से देखेंगे कि अमुक योजनाओं की फाइलों को आगे बढ़ाना भी है या नहीं.
मोदी सरकार से पहले तक परंपरा रही है कि अंतरिम बजट में केवल लेखानुदान होता है. साल का बजट अगली सरकार पेश करती है, लेकिन इस सरकार का यकीन परंपराओं में नहीं रहा है. वह तो परंपराओं को खत्म करने में यकीन रखती है अथवा यूं कहिए कि नई परंपरा कायम करने में भरोसा रखती है.
मोदी सरकार से पहले की बात की जाए तो 2004 की अटल बिहारी बाजपेयी और 2009 एवं 2014 में डॉ. मनमोहन सिंह की सरकारों ने पूर्ण बजट पेश करने की जगह अंतरिम बजट ही पेश किया था. इन तीनों बजट में नए एलान करने से बचा गया था. उन सरकारों ने लेखानुदान पेश कर चुनाव में जाने का फैसला किया. लेखानुदान का मतलब एक तरह से आवश्यक खर्च के लिए संसद की मंजूरी लेनी होती है. हालांकि कानूनी रूप से यह प्रावधान नहीं है कि अमुक सरकार ऐसे समय में नई योजनाओं से संबंधी एलान नहीं कर सकती. फिर भी इस तरह के एलान से अभी तक बचने की परंपरा रही है. लेकिन मोदी सरकार ने इस परम्परा को धत्ता बताते हुए अंतरिम बजट में अनेक योजनाओं का एलान किया, जिन्हें सरकार से लेकर उसके भोंपू मीडिया में ऐतिहासिक बताया गया. वैसे यह सरकार ऐतिहासिक से कम कुछ करती नहीं. यह बात अलग है कि यह ऐतिहासिक चुनावी रैलियों और विज्ञापनों में ज्यादा नजर आता है लेकिन धरातल पर कम.
इसी ऐतिहासिक काम का जिक्र करते हुए मोदी ने गोरखपुर में कहा, “पहले की जो सरकारें थीं उनमें किसान का भला करने की नीयत नहीं थी. वे छोटी-छोटी चीजों के लिए किसानों को तरसाती थीं. लेकिन हमने किसानों की सुविधा पर काम किया.”
यह कहते हुए मोदी शायद भूल गए कि देश के अनेक राज्यों में किसान आंदोलित हैं. वे अपने हक की मांग कर रहे हैं. पांच साल पहले किए गए वादे पूरे करने की बात कह रहे हैं. मोदी सरकार के ही कार्यकाल में तमिलनाडु के किसान जंतर-मंतर पर दो बार 50 से 100 दिन का आन्दोलन कर चुके हैं. सरकार और मीडिया का ध्यान खींचने के लिए सड़क पर पड़ा खाना खाने से लेकर घास और चूहा तक खा चुके हैं. मल खाने का अभिनय कर चुके हैं तो जंतर-मंतर से लेकर संसद मार्ग तक नग्न प्रदर्शन कर चुके हैं. लेकिन प्रचार में गोता लगाने वाली सरकार कहती है कि उसने किसानों के लिए ऐतिहासिक काम किया है.
मोदी का कहना है, “हमारी सरकार जितना पैसा किसान के लिए भेजती है वह पूरा पैसा उसके खाते में पहुंचता है. अब वह दिन गए जब सरकार 100 पैसा भेजती थी तो बीच में 85 पैसा दलाल और बिचैलिए खा जाते थे….प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना को भी फुलप्रूफ बनाया गया है ताकि किसान का अधिकार कोई छीन न सके. बस राज्य सरकारों को ईमानदारी के साथ किसानों की सूची बनाकर देना है.”
मोदी कहते हैं कि अब उनके द्वारा भेजा गया पैसा 100 फीसदी किसानों को मिलता है तो सबसे पहला सवाल यही है कि वह कितनी योजनाओं का पैसा सीधे किसानों के खाते में भेज रहे हैं. दूसरा किसानों के खाते में भेजे गए पैसे के पहले क्या गारंटी है कि संबंधित विभागीय कर्मचारी उससे नगद राशि के रूप में उगाही नहीं कर रहे? असल में सचाई यह है कि तहसील और थानों के स्तर पर भ्रष्टाचार पहले से कम नहीं हुआ बल्कि बढ़ा है.
मोदी चुनाव के मद्देनजर जिस ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना’ की दिन-रात माला जप रहे हैं, उसके पात्रों की अभी सूची भी पूरी तैयार नहीं हो पायी है. इसके बावजूद उसका अखबारों से लेकर मेट्रो तक में धुआंधार प्रचार जारी है. उसकी सूची बनाने में ही लेखपाल फार्म भरवाने का प्रति किसान 200 रुपया वसूल रहा है. इस बात का गवाह खुद इन पंक्तियों का लेखक है, जो 20 दिन पहले दो दिन के लिए गांव (उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी जनपद स्थित सन्डौरा कला) गया था तो पता चला कि लेखपाल का चिलगोजा गांव का ही एक व्यक्ति फार्म भरवा रहा है, जिसका प्रति फार्म वह 200 रुपया वसूल रहा है. यही मोदी की फुलप्रूफ योजना है. इसी तरह से राज्य में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने आवासों में भी पात्र के खाते में पैसा जाने से पहले ही प्रधान से लेकर संबंधित विभागीय कर्मी उगाही करते रहे हैं. यह तो महज दो योजनाओं के उदाहरण हैं. कमोबेश सभी योजनाओं का यही हाल है.
वैसे जिस योजना को ऐतिहासिक बताते हुए 12 करोड़ किसानों को लाभ मिलने की बात कही जा रही है, उसमें खेतिहर मजदूरों और बंटाईदारों को शामिल नहीं किया गया है. बताया गया कि अब किसान को साहूकार तक जाने की जरूरत नहीं है. योजना के माध्यम से सबसे गरीब तक पहुंचेंगे, लेकिन कैसे यह सरकार को भी नहीं पता है, क्योंकि योजना के तहत बंटाई और ठेका खेती करने वालों को छुआ तक नहीं गया यानी सबसे निचले तबके के किसानों की पूरी तरह से अनदेखी की गयी है.
मोदी ने गोरखपुर में यह भी कहा कि “जो राज्य अपने किसानों की सूची हमें नहीं देंगे उन्हें मैं कहना चाहता हूं कि वहां के किसानों की बद्दुआएं आपके राजनीतिक करिअर को बर्बाद करके रख देंगी.” फिलहाल किसान किसको बद्दुआएं दे रहा है, इसकी बानगी इंडियन एक्सप्रेस की एक स्टोरी से मिलती है. महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान लगातार अपनी फसल का बकाया मूल्य पाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. महाराष्ट्र में 15 जनवरी 2019 तक 2018-19 के सीजन का 5,320 करोड़ रुपये बकाया था तो 2017-18 का 66 करोड़ रुपये. इसी तरह उत्तर प्रदेश में 18 जनवरी 2019 तक 2018-19 के सीजन का 5,400.76 करोड़ रुपये बकाया थे तो 2017-18 के 1,343.96 करोड़ रुपये बकाया हैं. किसान यह रकम पाने के लिए लगातार सड़कों पर उतर रहे हैं. धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. सड़क जाम कर रहे हैं. ट्रेनें रोक रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है. वह तो पांच एकड़ तक जमीन वाले किसानों को छह हजार रुपये सालाना देने का ऐलान कर ऐतिहासिक काम करने का राग अलाप रही है. चुनावी रैलियों में इस ऐलान का बखान कर रही है. विज्ञापनों के जरिए प्रचार कर रही है.
सरकार यह समझने को तैयार नहीं है कि किसान को यह छह हजारी सरकारी खैरात नहीं चाहिए. उसे उसकी फसल का समय से तय भुगतान दे दिया जाए तो उसका कहीं ज्यादा भला होगा. इस दृष्टि से मोदी सरकार का यह अंतरिम बजट पूरी तरह से चुनावी बजट था. इसकी बानगी देखनी हो तो सरकार के पिछले बजट में किए गए दावों, खर्चों और नए बजट के प्रावधान पर नजर डालिएगा. कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का बजट 67,000 करोड़ से बढ़कर 1,29,585 करोड़ रुपये हो गया. इसी तरह से वर्ष 2018-19 के बजट में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत हर खेत को पानी देने की योजना थी. उसके लिए बाकायदा 2600 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था, जिसमें से 2181 करोड़ रुपये ही खर्चे गए. लेकिन ताज्जुब करने वाली बात यह कि 2019-20 में इस योजना में 1700 करोड़ रुपये कम कर मात्र 903 करोड़ रुपये का बजट कर दिया गया. यह योजना 96 जिलों के लिए थी, जहां 30 फीसदी से कम भूमि सिंचित थी यानी उसकी सिंचाई की गारंटी नहीं थी.
अब मोदी सरकार के अंतरिम बजट को देखते हुए प्रश्न उठता है कि क्या अब हर खेत को पानी नहीं चाहिए. मंत्री को यह बताना चाहिए था कि अटल भूजल योजना के नाम पर एक करोड़ का प्रावधान दिखा देने से क्या होगा? इससे कई गुना अधिक तो उनके नाम पर पोस्टर और बैनर बन जाते हैं. यह बात पिछले दिनों उनकी मौत पर भाजपा और मोदी सरकार की ओर से जारी किए गए विज्ञापनों को देखकर भलीभांति समझी जा सकती है.
लगातार हो रहे किसान आंदोलनों और पांच राज्यों के आए विधानसभा चुनाव परिणामों से मोदी सरकार को अहसास हुआ कि फसल बीमा योजना से उसका काम नहीं चला. एमएसपी से भी उसका खेल नहीं बना और कांग्रेस ने ऋण माफी के जरिए तीन राज्यों में खेल पलट दिया और आगे भी वह कह कर रही है कि केन्द्र में उसकी सरकार बनी तो वह किसानों को न्यूनतम आय दिलाएगी. इसी के मद्देनजर मोदी सरकार ने आनन-फानन में अंतरिम बजट में पांच एकड़ तक की जोत वाले किसानों को 500 रुपये महीने देने का एलान कर दिया. अगर औसतन एक किसान का पांच लोगों का परिवार माना जाए तो उसके हिसाब से प्रतिदिन तीन रुपये तीस पैसे प्रति व्यक्ति आता है. आज के समय में इतने में एक प्याली चाय भी नहीं मिलती. लेकिन मोदी सरकार ने इतना पैसा देने का ऐलान कर ऐतिहासिक काम कर दिया है.
बेशर्मी से इस ऐतिहासिकता का प्रचार करने वाली सरकार को यह भी नहीं पता कि उड़ीसा और तेलंगाना सरकार ने किसानों के खाते में मोदी सरकार के प्रावधान से दोगुना पैसे डालने की व्यवस्था की है. उड़ीसा ने तो भूमिहीन ग्रामीण आबादी को भी सीधे खाते में पैसा देने का प्रावधान किया है. इन राज्यों की योजनाओं को देखते हुए मोदी सरकार की 500 रुपये महीना देने की योजना दरअसल जले पर नमक छिड़कने के समान है. ऐसे में सरकार प्रचार चाहे जितनी बेशर्मी से करे लेकिन यह तो आने वाले चंद महीनों बाद पता चलेगा कि ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना’ खेल बदलने की भूमिका निभाएगी या फिर फसल बीमा योजना और एमएसपी की तरह इससे भी चुनावी खेल नहीं बनेगा.