डी पी टी: एक ऐसा आदमी जिसने दिलों पर राज किया
‘मरने वाले मरते हैं लेकिन फना होते नहीं
वो हकीकत में कभी हम से जुदा होते नहीं
मरने वाले की जबीं रौशन है इस जुल्मत में
जिस तरह तारे चमकते हैं अंधेरी रात में
अल्लामा इकबाल की ये पंक्तियां आज हमें बताती हैं कि देवी प्रसाद त्रिपाठी अपने सभी मित्रों और प्रशंसकों के लिए क्या मायने रखते हैं.
दुनिया उन्हें DPT के नाम से जानती थी. वे सार्वभौमिक रूप से प्यार किए जाते थे, उन्होंने कभी हार नहीं मानी, उन्होंने कभी ‘ना’ नहीं कहा. आशा का प्रतीक, हम उनके जैसा दूसरा कहां पाएंगे?
मैं जेएनयू में रूसी भाषा के पूर्व प्रोफेसर धरमवीर की एहसानमंद हूं, जिनके जरिए मैं डीपीटी से मिली. वीर मुझे ‘सैयदा आपा’ कहता है, और यही मैं डीपीटी के लिए बन गई. वह हमारी सभी गतिविधियों का हिस्सा थे. क्योंकि हम उसके भाग थे.
संस्कृत और उर्दू दोनों में वो समान रूप से दखल रखते थे, उन्होंने मुझे चकित कर दिया. अपने संसद के अंदर और बाहर के भाषणों में कालिदास, गालिब और बहादुरशाह जफर पर समान रूप से अधिकार के साथ बोलते थे.
उनके द्वारा आयोजित पहला बड़ा आयोजन विज्ञान भवन में जश्न-ए-फैज था जिसका मैं एक छोटा सा हिस्सा थी. विषय के कारण दुनिया भर के कवियों को इस जश्न ने खींचा था, और इसके अपरिवर्तनीय आयोजक के कारण भी. यह एक दोस्ती की शुरुआत थी, जो 1980 में शुरू हुई थी.
यह हमारे सामान्य हितों के आसपास बनाया गया था; कविता, राजनीति, भाषा, लेकिन अधिकांश प्रतिरोध.
जब हममें से कुछ ने फिल्म निर्माता, पत्रकार, उपन्यासकार और नाटककार ख्वाजा अहमद अब्बास की याद में एक ट्रस्ट बनाने का फैसला किया, जोकि उत्तराखंड के पूर्व गवर्नर अजीज कुरैशी के मार्गदर्शन में किया गया था. तो इस ट्रस्ट को जिन दो लोगों ने आकार दिया, वे डीपीटी और धरमवीर थे.
वे लोग मुंबई में अब्बास पर किताब ‘ब्रेड ब्यूटी एंड रेवोल्यूशन’ के विमोचन पर थे, जिसकी शुरुआत अमिताभ बच्चन ने की, जिसे फिल्म निर्माता इफत फातिमा और मेरे द्वारा लिखा गया था. मुंबई के वल्लभाई स्टेडियम में चमचमाते स्टार गिल्ड्स अवार्ड फंक्शन में जब अमिताभ बच्चन ने अब्बास के लिए एक विशेष कैमियो समर्पित किया, जिसने उन्हें Saat Hindustani में पहला ब्रेक दिया, ये DPT और धरमवीर के दिमाग की उपज थी.
कुछ साल बाद जब ट्रस्ट ने दलितों के शोषण के बारे में अब्बास की कहानी ‘इंदर की तलवार’ पर आधारित एक नाटक प्रस्तुत किया, वह वहां दर्शकों का स्वागत करने और जाति और वर्ग के बारे में बोलने के लिए मौजूद थे.
‘थिंक इंडिया’ उनसे कनेक्शन का एक और जरिया था. पत्रिका डीपीटी के दिमाग उपज और जीवन रेखा थी. प्रत्येक पत्रिका विषय आधारित हुआ करती थी. मैंने जो आखिरी लेख लिखा था वह उर्दू शायरी पर था. जब उन्हें कुछ कहना होता था तो वो सिर्फ पांच सरल शब्द ‘ये तो आपको करना है’ बोलते थे. किसी को अपने साहित्यिक या राजनीतिक समारोहों में आमंत्रित करने का उनका अपना तरीका था. Date नोट करें. ‘आना ही है.’ फिरोजशाह रोड पर उनका घर लेखक, समाजिक कार्यकर्ताओं का ‘मरकज’ और राजनीतिक शरणार्थियों की शरणस्थली थी.
पाकिस्तानी कवियत्री फहमीदा रियाज ने अपनी नज्म ‘तुम बिलकुल हम जैसे ही निकले’ (जो बाद में वायरल हो गई) का पहली बार उनके ही घर में पाठ किया था.
सलीमा हाशमी, जो फैज साहब की बेटी हैं और लाहौर के बीकनहाउस विश्वविद्यालय के कला विभाग में प्रोफेसर हैं, को अक्सर भारत में आमंत्रित किया जाता था. पिछले कुछ वर्षों में जब वीजा मिलना इस शासन में मुश्किल हो गया था, यह केवल डीपीटी के कार्यालयों के माध्यम से था कि उनके वीजा पर मुहर लगाई गई थी. उनके और उनकी बहन मुनीजा के लिए, DPT का उनसे स्नेह विशेष रूप से उनकी पुस्तक ‘सेलिब्रेटिंग फैज’ के बाद से था. यह रिश्ता युवा पीढ़ी, अली मदीह हाशमी, अदील हाशमी और मीरा हाशमी तक बढ़ा. अगर वह अपने अंतिम क्षणों में खुद को अभिव्यक्त करने में सक्षम होते, तो IIT कानपुर में फैज साहब की कविता ‘हम देखेंगे’ पर उनकी टिप्पणी तीखी होती.
डीपीटी के लिए, देशों और पीढ़ियों के बीच सीमाएं अप्रासंगिक थीं. नेपाल उनके ग्रीवा शिरा जितना करीब था, और पाकिस्तान उसके अस्तित्व का एक हिस्सा था.
पिछले कुछ महीनों में मैं उनसे नहीं मिल पाई. हर बार जब मैं फोन करती तो वो कहते, कुछ दिन रुक जाइए, मुझे इलाज से वापस आने दीजिए. उनका इलाज एशियन इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज फरीदाबाद में चल रहा था.
मैं उनसे रविशंकर शुक्ला लेन में पार्टी कार्यालय में मिली, जहां हमने अब्बास पर एक ‘अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी’ की योजना बनाई जिसमें विचार न्यास और रजा फाउंडेशन की भागीदारी भी थी. मैं महान उद्योगपति और संगीत और उर्दू के प्रेमी सुरेश नेवटिया की स्मृति में आयोजित एक सभा में उनका एक विशेष क्षण संजो रखी हूं. यह उनके भतीजे और साहित्यिक वारिस हर्षवर्धन नियोतिया द्वारा आयोजित किया गया था. डीपीटी अपनी विशेषता के विपरीत, वह चुपचाप वीर के साथ एक कोने में बैठे थे. उनसे मिलने आए लोग उनसे मिलने पहुंचे. उनका शरीर वहां था, लेकिन साहस गायब था.
आखिरी जीवंतता उनमे मैंने तब देखी जब उन्होंने महाराष्ट्र राज्य चुनाव और शरद पवार की उल्लेखनीय स्थिति के बारे में बात की. मुझे पूरी उम्मीद थी कि यह जीत उन्हें उनके पुराने जीवंत स्वरूप में वापस लाएगी. उनकी पार्टी सत्ता में थी फिर से दुनिया उनके चरणों में थी. यह एक ख्याली सोच थी; मैं मरने से पहले सबसे ज्यादा ज्योति जलाने के बारे में कवि बेहजाद लखनवी की पंक्तियों को भूल गई थी.
मैं कवि बेहजाद लखनवी की उन पंक्तियों को भूल गई जो बुझने से पहले सबसे ज्यादा उज्ज्वलित होने वाली ज्योति के बारे में कही गई थीं.
ऐ शमा कसम परवाने की
इतना तो करम हम पर करना
उस वक्त भड़क कर गुल होना
जब रंग पे महफिल आ जाए