जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा शिकार होते हैं बच्चे: रिपोर्ट
आने वाले समय में विषम होती जलवायु की सबसे अधिक मार उन मासूमों पर पड़ेगी जो इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं. द लांसेट जर्नल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे अधिक भारतीय बच्चे कुपोषण, वायु प्रदूषण और जानलेवा लू जैसी बीमारियों का शिकार होंगे.
डब्लूएचओ और वर्ल्ड बैंक समेत 35 संस्थानों के 120 विशेषज्ञों ने द लांसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज नामक सालाना प्रोजेक्ट के लिए 41 मानकों का अध्ययन किया.
लेखकों ने पाया कि जलवायु परिवर्तन विश्व भर में बच्चों के स्वास्थ्य को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है. उन्होंने कहा कि अगर विश्व पेरिस समझौते के तहत वॉर्मिंग के लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जाता है तो आगे इसके नतीजे डराने वाले होंगे.
न्यू दिल्ली स्थित पब्लिक हेल्थ फउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रोफेसर ने बताया कि ‘आज जन्म ले रहे बच्चों का भविष्य बदलती जलवायु निश्चित करेगी. जब तक वो 30-40 बरस के होंगे तब तक दुनिया चार डिग्री अधिक गर्म हो चुकी होगी.’
उन्होंने कहा कि ‘भारत में डायरिया बच्चों की मौत का एक बड़ा कारण है, जो इसके कारण दूसरे क्षेत्रों में फैलेगा.’ वहीं 2015 की गर्म हवाओं, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे, आने वाले समय में एक आम बात हो जाएगी.
रिपोर्ट कहती है कि जलवायु परिवर्तन आने वाले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र में हासिल हुई बीते 50 वर्षों की उपलब्धि को उलट कर रख देगा.
ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कम करने के लिए जरूरी है कि जीवाश्म से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को 2019-50 तक साल दर साल कम से कम 7.4 फीसदी तक कम किया जाए.
विशेषज्ञ बताते हैं कि बच्चों पर बिगड़ते मौसम की मार सबसे पहले पड़ती है. उनका इम्यून सिस्टम विकसित हो रहा होता है इसलिए बीमारियों, प्रदूषण और पर्यावरणीय प्रदूषक तत्वों से जल्दी प्रभावित हो जाते हैं.
एक डॉक्टर ने कहा कि जीवन के शुरुआती वर्षों में होने वाली परेशानियां नियमित और व्यापक होती हैं, जिनका प्रभाव स्वास्थ्य पर जीवन भर रहता है.
सभी देशों की ओर से तत्काल प्रभाव के साथ अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी नहीं की जाती है तो लोगों के स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा के साथ ये समझौता होगा. बदलती जलवायु के ऐसे खतरनाक प्रभाव होंगे जिससे पूरी एक पीढ़ी त्रस्त होगी.