देश के घरेलू कामगारों के अधिकारों पर जनहित याचिका


Common Cause files petition for domestic workers

 

देश में घरेलू कामगारों के खिलाफ रेप, मर्डर, शारीरिक और यौन शोषण की आपराधिक घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. कुछ समय पहले 16 वर्षीय घरेलू महिला कामगार को मालिक ने केवल इसलिए जान से मार कर टुकड़ों में बांट दिया क्योंकि उसने अपनी सैलरी मांगी थी. इन घटनाओं को देखते हुए एनजीओ कॉमन कॉज ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित में एक याचिका दायर की है. याचिका का प्रमुख उद्देश्य घरेलू कामगारों के अधिकारों को सुरक्षित रखना और समाज में उनके योगदान को पहचान दिलाना है.

याचिका में घरेलू कामगारों के सम्मान के साथ जीने का अधिकार और संविधान के अनुछेद 21 में दिए गए अधिकारों को सुरक्षित रखने की बात कही गई है.

घरेलू कामगार भारत में साल 1991 में उदारीकरण के बाद काफी तेजी से बढ़े हैं. 1991 में इनकी संख्या साल लाख 40 हजार थी. जो 2001 में बढ़कर 16 लाख 60 हजार हो गई. याचिका कामगारों के जीविका और अधिकारों को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से दाखिल की गई है.

सहयोगी याचिकाकर्ताओं में नेशनल प्लेटफॉर्म फॉर डॉमेस्टिक वर्कर (एनपीडब्लूडी) और मजदूर किसान शक्ति संगठन की अरुणा रॉय शामिल हैं.

याचिका की अहम बातें

– घरेलू कामगारों को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के अंदर लाना और केंद्र और राज्यों में बने एक्ट के तहत उन्हें कामगारों के रूप में अधिसूचित करना. देश के आठ राज्यों में घर में काम करने वाले लोगों को घरेलू कामकारों के रूप में पहचान मिली है. जिसमें तमिलनाडु, केरल, बिहार, झारखंड और गुजरात शामिल है.

– संविधान के अनुछेद 21 के प्रावधानों को पहचान दिलाना. अनुछेद 21 में कहा गया है कि घरेलू कामगारों के अधिकारों में दिन में अधिकतम आठ घंटे काम, हफ्ते में एक छुट्टी, सम्मान के साथ जीना और अन्य आधारभूत अधिकार शामिल है.

– घरेलू कामगारों के लिए किसी विशेष कानून के न होने के कारण प्राइवेट घरों में उनके अधिकार सुरक्षित रखने के लिए अंतरिम निर्देश जारी किए जाए. जब तक कोई कानून नहीं बना जाता तब तक अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन (आईएलओ) के कन्वेंशन 189 की बातों को लागू किया जाए. जिसमें कहा गया है कि उन्हें बिना रुपये काटे छुट्टियां, काम पर निकाले जाने से पहले एक महीने का नोटिस या एक महीने की सैलरी दी जाए.

– घरेलू कामगारों को सभी नागरिक और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया जाए. जैसे- स्वास्थ्य, विकलांगता, पेंशन, बीमा और मातृत्व लाभ.

– सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में विशेषज्ञों की कमिटी का गठन किया जाए. जो घरेलू कामगारों की रोजगार एजेंसियों, सम्मानजनक रोजगार के नियमों के साथ-साथ उनके विवादों के सामाधान के लिए किसी विभाग जैसे सवालों के उपाए सुझाए.

याचिका में कहा गया है कि घरेलू कामगार देश के असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले वे लोग हैं जिनके काम का महत्व हम नजरअंदाज कर देते हैं. ज्यादातर कामगार शिक्षित और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होते. जिसके कारण मालिक और रोजगार एजेंसियां उनका आसानी से शारीरिक और मानसिक शोषण कर पाती हैं. अंसगठित क्षेत्र होने के कारण वह किसी भी तरह के आधिकारिक डाटा में नहीं होते, इसलिए कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए वह अपने मालिकों पर ओर अधिक निर्भर हो जाते हैं.

उनके काम की शर्ते लिखित में न होने की वजह से मालिक घरेलू कामगारों का शारीरिक और मानसिक शोषण कर पाते हैं. वह उन्हें बिना नोटिस नौकरी से निकाल देते हैं, महीने में कोई छुट्टी नहीं देते या छुट्टियां देने के लिए उनकी सैलरी काटते हैं.

याचिका में सुप्रीम कोर्ट से कामगारों के अधिकारों की दिशा में अहम कदम उठाने की मांग की गई है.


Big News