नियमों से नहीं सत्ताधारी लोगों से रिश्तों और लाबिंग से तय होता है ‘ईज ऑफ बिजनेस’
विश्व बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ रिपोर्ट, 2018 में भारत 23 स्थानों की छलांग लगाकर 77वें पायदान पर आ गया है. हालांकि इसको लेकर सरकार अपनी पीठ ठोंकने में जुटी हुई है. लेकिन इसी विषय पर हाल में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि दरअसल व्यापार की स्थितियां नियमों पर नहीं बल्कि निवेशकों के सत्ताधारी लोगों से संबंध और रिश्वत और लाबिंग जैसी चीजों पर निर्भर करती है. यह अध्ययन अर्थशास्त्री सब्यसाची कर और अन्य लोगों ने मिलकर किया है.
विश्व बैंक हर साल दुनिया के 190 देशों में कारोबारी स्थितियों की तुलना करता है और इस अध्ययन के आधार पर अलग-अलग देशों की रैंकिंग प्रदान करता है, जो ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ रिपोर्ट के नाम से जानी जाती है.
दरअसल सब्यसाची कर के नेतृत्व में इस सवाल का जवाब खोजा गया कि अगर किसी देश में व्यापार से संबंधित सुधार ना हुए होते, मतलब हूबहू उन्हीं व्यापारिक नीतियों को लागू किया जाता जो सुधार से पहले थीं, तब इसका उस देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ता है.
इस दौरान उन्होंने पाया कि व्यवहारिक रुप से नए नियमों और पुराने नियमों के तहत मंजूरी मिलने में बहुत कम अंतर था.
इस अध्ययन के मुताबिक निवेशकों पर नियमों का बहुत कम प्रभाव होता है. जो असल चीज काम करती है, वो हैं निवेशकों के सत्ताधारी लोगों से संबंध और दूसरे रिश्वत और लाबिंग जैसी चीजें.
अध्ययन करने वाले लोग इसे ‘सौदा परिस्थिति’ का नाम देते हैं. उनके मुताबिक निवेशक इन्हीं कारकों से अपने व्यापार को स्थापित करते हैं.
उदाहरण के लिए अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि बहुत से देशों में विश्व बैंक की आदर्श स्थितियों की गैर-मौजूदगी के बावजूद कंपनियों ने निर्माण की अनुमति आसानी से प्राप्त कर ली.
नियम और सौदे के बीच संबंध राज्य की नियमों को लागू करने की क्षमता पर निर्भर करते हैं. मतलब कि जो लोग नियमों को लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं वो अपने काम को कैसे और किस स्तर तक नियमों के मुताबिक पूरा करते हैं.
ऐसे कई उदाहरण हैं जहां नियमों को लागू करने में हीला-हवाली की जाती है, वहां कंपनियों को अपेक्षाकृत जल्दी मंजूरी मिल जाती है. और दूसरी ओर जहां नियमों को लागू करने में सख्ती दिखाई जाती है वहां अनुकूल नियमों के बावजूद मंजूरी मिलने में देर होती है.
इस अध्ययन के परिणाम में अध्ययनकर्ताओं ने कहा, जरूरी नहीं है कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंक में सुधार से निवेश में भी तेजी आए. इसकी जगह जरूरी सुधार, किसी देश में नियमों की जटिलता और देश की क्षमता दोनों पर निर्भर करता है.