बदला: सस्पेंस से भरी एक अच्छी रिवेंज थ्रिलर
निर्देशक – सुजॉय घोष
कलाकार – अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नू , अमृता सिंह, मानव कौल
लेखक – ओरिऑल पाउलो
हिंसक होते समय में बदला और माफी दोनों ही काफी प्रासंगिक हो गए हैं. व्यक्तिगत स्तर से लेकर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर तक बदले और माफी पर एक गुपचुप सी बहस लगभग हर वक्त रहती है. किस हद तक माफी जायज है और किस सीमा के बाद बदला लेना सही है, इस बारे में असंख्य मत हो सकते हैं. इन असंख्य मतों में से एक मत अमिताभ बच्चन फिल्म ‘बदला’ के माध्यम से देते हैं.
वे कहते हैं, “बदला लेना हर बार सही नहीं होता, लेकिन माफ़ कर देना भी हर बार सही नहीं होता!” ‘कहानी’ जैसी शानदार सस्पेंस फिल्म के निर्देशक सुजोय घोष एक बार फिर से सस्पेंस फिल्मों के अपने हुनर के साथ वापस आए हैं फिल्म ‘बदला’ लेकर. ‘बदला’ साल 2016 में आई स्पैनिश फिल्म ‘द इनविजिबल गेस्ट’ का ऑफिशियल हिंदी रीमेक है. जिसका जिक्र भी ‘बदला’ की मूल कहानी का क्रेडिट देते हुए ट्रेलर में किया गया है.
यह एक थ्रिलर मूवी है जो मुख्यत: दो किरदारों नैना सेठी (तापसी पन्नू) और बादल गुप्ता (अमिताभ बच्चन) के इर्दगिर्द घूमती है. नैना सेठी एक बड़ी कंपनी की मालिकन, एक सक्सेसफुल बिज़नेसवुमन है. शादीशुदा है, एक बच्ची है और साथ ही अर्जुन नाम के एक फोटोग्राफर के साथ एक्सट्रा मैरिटल अफेयर भी है. जब ये दोनों अपने परिवार से अलग एक जगह कुछ क्वॉलिटी टाइम स्पेंड करने के लिए मिलते हैं, तब एक एक्सीडेंट होता है. एक्सीडेंट में जिसकी हत्या होती है, उसके सबूत मिटाते हुए नैना के बॉय फ्रेंड अर्जुन (टोनी ल्यूक) की हत्या हो जाती है. इसका आरोप नैना सेठी पर लगता है. वकील के रूप में बादल गुप्ता को नैना चुनती है, जिसने 40 साल के करियर में एक भी केस नहीं हारा है. नैना को अपनी बात रखने के लिए बादल तीन घंटे देता है ताकि वह सच की तह में जाकर नैना को बचा सके.
फिल्म की कहानी दिलचस्प है और सुजॉय घोष का निर्देशन आखिर तक आपको आपकी सीट से हिलने नहीं देता. सुजॉय ने इसकी स्क्रिप्ट पर भी मेहनत की है और पूरे सेटअप को भी काफी रहस्यमयी बनाए रखा है. हालांकि कुछ लोगों को प्रीक्लाइमैक्स में क्लाइमैक्स का अंदाजा हो सकता है, जो स्पैनिश फिल्म में अंत तक नहीं होता. लेकिन कुल मिलाकर फिल्म का सस्पेंस उत्सुकता बनाए रखता है.
फिल्म दो किरदारों अर्थात तापसी और अमिताभ के नजरिए से ही आगे बढ़ती है तो कई जगहों पर दोहराव सा नजर आता है, मगर फिल्म बोर नहीं करती. जटिल कहानियां सुजॉय की पसंदीदा रही हैं. यहां भी किरदारों के जरिए जटिलता बनी रहती है और उनकी परतें खुलती जाती हैं. फिल्म तकनीकी रूप से बहुत दमदार है. सिनेमटॉग्राफर अविक मुखोपाध्याय ने विषय के अनुरूप फिल्म के टोन को बनाए रखा है.
नैना और बादल दोनों को ही चालाक बताया गया है. फिल्म की शुरुआत में नैना उतना ही बात बताती है जो जरूरी समझती है, लेकिन बादल धीरे-धीरे उसका विश्वास हासिल करता है और बहुत कुछ उगलवा लेता है. बातचीत के जरिये ये अनुमान लगाना कठिन हो जाता है कि नैना को बादल बचा रहा है या फंसा रहा है? कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ?
अभिनय की बात करें तो अमिताभ बच्चन बिल्कुल एक अलग ही फॉर्म में नज़र आते हैं. उनका डायनामिक्स देखते ही बनता है. अमिताभ बच्चन को सदी का महानायक इसलिए कहा जाता है कि वह न केवल किरदार के मैनरिज्म और मिजाज को समझते हैं, बल्कि सामनेवाले अदाकार के महत्व को समझकर एक्शन-रिएक्शन देते रहते हैं. इस फिल्म में भी उन्होंने किरदार की बारीकियों को खूब समझा है. अमिताभ की आवाज़, उनकी कद काठी, झुका हुआ बांया कंधा और उनके चलने का अंदाज़ एक बहुत बड़ी और सधी हुई कलाकारी है, जो हर किसी के बस की नहीं.
तापसी पन्नु के लिए यह एक मुश्किल किरदार था, क्योंकि उनके कैरेक्टर की आंतरिक सोच कुछ और है, बाह्य व्यवहार अलग है. लेकिन कई स्तर पर खुद के किरदार को मांजते हुए उन्होंने इसे बखूबी से निभाया है. तापसी पन्नू अभिनेत्री के रूप में महानायक के सामने ज़रा भी भयभीत नहीं होतीं. ‘पिंक’ फिल्म में भी वे अपना नायकीय साहस साबित कर चुकी हैं, जब उन्होंने बच्चन के साथ पहली बार जुगलबंदी की थी. ‘नैना’ के रूप में उन्होंने चरित्र की मासूमियत और काइयांपन को बखूबी निभाया है.
‘पिंक’ के बाद दूसरी बार अभिताभ बच्चन और तापसी मन्नू वकील और मुवक्किल की भूमिका में सामने आए हैं. टेबल के दूसरी ओर बैठी तापसी का किरदार एक गिल्ट से भरी और फ्रस्टेटेड महिला का है. नैना और बादल दोनों ही कैरेक्टर्स काफी लेयर्ड हैं, जो आखिर में खुलकर सामने आते है. ‘2 स्टेट्स’ के बाद अमृता सिंह एक मजबूत और लंबे किरदार में दिखी हैं, जिसे उन्होंने बड़े मन से निभाया है. उन्होंने भी अपने किरदार में जान फूंक दी है. अमृता सिंह को परदे पर दमदार परफॉर्मेंस में देखना अच्छा लगता है. मानव कौल के हिस्से में करने जैसा कुछ ख़ास नहीं था. नैना के पार्टनर अर्जुन का रोल मलयाली एक्टर टोनी ल्यूक ने किया है. जिनका एक्सेंट छोड़कर बाकी सबकुछ ठीकठाक कहा जा सकता है
फिल्म में एक्शन कम है और बातचीत ज्यादा. इस बातचीत के आधार पर ही बादल गुप्ता सच तक जा पहुंचता है. उसका कहना है कि जो साबित होता है उसे ही कानून सच मानता है. फिल्म में संवाद उम्दा हैं, लेकिन इनकी संख्या कम है.
फिल्म में कोई गाना नहीं है. जो भी गाने आप सुन रहे हैं वो प्रमोशनल सॉन्ग्स हैं. हां फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर बिलकुल इसकी परिस्थितियों से मेल खाता हुआ है. स्क्रीन पर लगातार कहानी चलती है, जो आपको उलझाए रखती है, जिससे आपका किसी और चीज़ पर ध्यान ही नहीं जाता. फिल्म बिलकुल कट-टू-कट है, जिससे इसकी रफ्तार अच्छी है.
फिल्म का तकनीकी पक्ष भी काफी मजबूत है. फिल्म की ज्यादातर शूटिंग एक कमरे में हुई है और इसके बावजूद सुजॉय ने दर्शकों को बांध कर रखा है. इस तरह की कहानी को परदे पर पेश करना कठिन है, लेकिन सुजॉय ने यह काम खूब किया है. फिल्म की एडिटिंग भी काफी कसी हुई और शानदार है. आउट डोर के कुछ सीन भी काफी प्रभावी लगते हैं.
फिल्म तमाम सवालों के जरिए बुनी गई है, इस वजह से एक सवाल का जवाब मिलने पर अगला सवाल फिल्म में दिलचस्पी बनाए रखता है. फिल्म के सीन्स अच्छे बन पड़े हैं. बदला की सबसे अच्छी बात यही है कि ये बोर नहीं करती और अंत तक दिलचस्पी बनाए रखती है. हालांकि सुजॉय घोष की ‘कहानी’ के स्तर तक तो ‘बदला’ नहीं पहुंचती, लेकिन फिल्म के शौकीनों के लिए देखने लायक जरूर है.
अगर आपने कोई एक भी सीन मिस कर दिया, तो फिल्म की रफ्तार के साथ तालमेल नहीं बैठा सकेंगे. कुल मिलाकर ‘बदला’ एक बढ़िया एंटरटेनिंग और एंगेजिंग फिल्म है.