टोटल धमाल: दर्शकों को हंसाने की नाकाम कोशिश
निर्देशक : इंद्र कुमार
कलाकार : अजय देवगन, माधुरी दीक्षित, अनिल कपूर, अरशद वारसी, पंकज मिश्रा, जावेद जाफरी, रितेश देशमुख
लेखक : इंद्र कुमार
स्क्रीन प्ले: वेद प्रकाश,पारितोष पेंटर, बंटी राठौर
हंसना जितना आसान है हंसाना उतना ही मुश्किल. वक्त के साथ-साथ तनाव और अवसाद के बढ़ते माहौल में जैसे-जैसे हंसी के मौके कम हुए हैं, वैसे-वैसे हंसाने की ज्यादा कोशिशें होने लगी हैं. लाफ्टर शो से लेकर कॉमेडी फिल्मों तक ये प्रयास हर तरफ देखे जा सकते हैं. लेकिन जब हंसाने की कोशिश सहज न होकर जबरदस्ती की हो तो वह हंसी की त्रासदी बन जाती है. इसका सबसे ताजा उदाहरण है फिल्म टोटल धमाल. जहां हंसाने के नाम पर इतनी असहजता भरी हरकतों का जमावड़ा है कि रह-रहकर खीज पैदा होती है!
यह एक मल्टीस्टारर एडवेंचर कॉमेडी फिल्म है, जोकि 3डी में रिलीज हुई है. फिल्म में पिछले दो भागों की तरह रितेश देशमुख, अरशद वारसी, जावेद जाफरी मुख्य भूमिका में हैं. इसके अलावा फिल्म में अजय देवगन, अनिल कपूर, माधुरी दीक्षित, और ईशा गुप्ता जैसे सितारे भी अपना जलवा दिखाने के लिए जुटे हैं.
अमेरिकन कॉमेडी फिल्म ‘इट्स अ मैड मैड मैड मैड वर्ल्ड’ से प्रभावित होकर निर्देशक इंद्र कुमार ने 2007 में ‘धमाल’ बनाई थी. एक्शन-एडवेंचर-कॉमेडी का यह कॉन्सेप्ट इतना मनोरंजक था कि ‘धमाल’ बेहद पॉपुलर हुई और बॉलीवुड की बेहतरीन कॉमेडी फिल्मों में गिनी जाने लगी. साल 2011 में इसका सीक्वल ‘डबल धमाल’ भी रिलीज हुआ, जिसे पहली फिल्म जितना पसंद नहीं किया गया था. ‘दिल’, ‘बेटा’ और ‘इश्क’ जैसी हिट फिल्मों के निर्देशक रहे इंद्र कुमार ने 12 साल पहले हिट कॉमेडी फिल्म ‘धमाल’ बनाई थी और ‘टोटल धमाल’ इस धमालगिरी की तीसरी फिल्म है. लेकिन यहां तक आते-आते टोटल धमाल का धमाल फैक्टर ध्वस्त सा होता हुआ नजर आता है.
टोटल धमाल में धमाल तो है लेकिन, कन्फ्यूज़न इतना ज्यादा है कि पूरी कहानी ही हॉच-पॉच लगती है. इंटरवल तक सारे किरदारों की पहचान कराने में और उनको स्थापित करने में ही काफी वक्त निकल जाता है और फिल्म के साथ-साथ दर्शक भी थकने लगते हैं. फर्स्ट हॉफ में शायद ही कोई एक डायलॉग हो जिस पर आपको हंसी आए. इंटरवल तक फिल्म न सिर्फ काफी उबाऊ बल्कि झिलाऊ भी है. हालांकि सेकंड हाफ में फिल्म थोड़ी-थोड़ी समझ में आने लगती है, मगर फिल्म की रफ्तार में मनोरंजन कहीं बहुत पीछे छूट जाता है.
सिनेमा हॉल में बैठे लोगों को समझ में नहीं आता कि हंसना कहां पर है. हालांकि लगभग आधा दर्जन नामी सितारे दर्शकों को हंसाने की जी तोड़ कोशिश करते हैं, लेकिन असफल होते हैं. फिल्म में हंसाने वाले पंच पूरी तरह से बेदम साबित हुए और कोई कमाल नहीं दिखा पाते. यह निश्चित तौर पर एक निर्देशक की असफलता है.हर धमाल सीरीज में पैसों को लेकर भागमभाग होती है. इस बार भी ऐसा ही है. टोटल धमाल में भी 50 करोड़ की रकम के लिए अफरा-तफरी मची हुई है. पैसे पाने की इस भागमभाग में सभी की लाइफ क्रेजी एडवेंचर्स राइड से गुजरती है. फिल्म की कहानी 50 करोड़ के राज के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे पाने के लिए सारे किरदार एक दूसरे को चकमा देने में लगे रहते हैं. लेकिन अंततः 50 करोड़ को अकेले ही डकारने के चक्कर में जो स्थितियां, परिस्थितियां पैदा होती हैं वे दर्शकों को हंसाने की कोशिश करती हैं.
एक आदमी मरने के पहले बता देता है कि उसने पैसा कहां छिपा रखा है और फिर सारे किरदारों में उस छिपे खजाने को ढूंढने की होड़ मच जाती है. दो छोटे-मोटे चोर (अजय देवगन और संजय मिश्रा), तलाक की राह पर खड़े पति-पत्नी (अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित), फायर ब्रिगेड से फायर किए गए दो कर्मचारी (रितेश देशमुख और पितोबश त्रिपाठी), होशियार और बेवकूफ भाई (अरशद वारसी और जावेद जाफरी) तथा पुलिस कमिश्नर (बोमन ईरानी) इस खजाने को हासिल करने के लिए निकल पड़ते हैं.कोई कार में, कोई हेलिकॉप्टर में, कोई प्लेन में जाते हुए वे रेगिस्तान, जंगल, नदी को पार करते हुए जनकपुर के चिड़ियाघर में जा पहुंचते हैं जहां पर खजाना छिपा हुआ है. इन कलाकारों की भीड़ में हाथी, शेर, बंदर और चिंपाजी भी शामिल हो जाते हैं.
50 करोड़ के खजाने को पाने के लिए सब भागते रहते हैं. इस सफर में जिन मुसीबतों का सामना करते रहते हैं उसके जरिये हास्य पैदा करने की कोशिश की गई है. कभी हेलिकॉप्टर को सीलिंग फैन और घासलेट से चलाया जा रहा है तो कभी किसी की कार पानी में डूबने लगती है. कोई जंगल में फंसता है तो कोई बिल्डिंग पर लटकता है. इनमें से कुछ सीन मजेदार भी बन पड़े हैं जैसे जॉनी लीवर और रितेश का हेलिकॉप्टर वाला सीन, जीपीएस पर अजय देवगन को रास्ता बताती हुई टपोरी भाषा (जैकी श्रॉफ का वाइस ओवर शानदार है) और अजय का पीछा करते हुए बोमन का टनल में घुसना. फिल्म में जावेद जाफरी, संजय मिश्रा के पंचायत वाला सीन हंसने का ठीक ठाक मौका देता है.
‘टोटल धमाल’ की कुछ झलकियां एक तरफ जहां आपको हंसाती हैं, वहीं दूसरी तरफ ज्यादातर सीन अपनी अतार्किकता से कुढ़न भी पैदा कर देती है. जंगली जानवरों की मौजूदगी, पहाड़ी या झरने से गिरने के या ट्रेन-एयरक्राफ्ट से टक्कर वाले दृश्य, दर्शकों को हंसाने की जबरदस्ती की गई कोशिश लगते हैं. ऐसे दृश्यों में हंसी कम खीज सी ज्यादा पैदा होती है. कुछ सीन झल्लाहट भी पैदा करते हैं जिनमें से ज्यादातर अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित के हिस्से में आए हैं.
निर्देशक इंद्र कुमार, अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित को साथ दिखाकर, नब्बे के दशक में हिट रही इस जोड़ी का नॉस्टैल्जिया भुनाने की कोशिश करते हैं. दोनों को एक साथ एक फ्रेम में 26 साल बाद और वह भी एक दूसरे की टांग खींचते देखना सही लगता है. फिल्म का असली पंच हैं आदि और मानव यानी अरशद वारसी औऱ जावेद जाफरी की कॉमिक टाइमिंग.
फिल्म में अजय देवगन का अभिनय ठीक-ठाक है, लेकिन उनके पास करने को कुछ ज्यादा नहीं था. फिल्म उनके स्टारडम के साथ न्याय नहीं करती. अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित मंझे हुए खिलाड़ी हैं और इस तरह के रोल करना उनके लिए बेहद आसान है. बड़े स्टार्स के फिल्म में आने का असर अरशद वारसी और जावेद जाफरी पर हुआ है और उनके मौके सीमित हो गए. रितेश देशमुख और जॉनी लीवर हंसाने की ठीकठाक कोशिश करते हैं. संजय मिश्रा और बोमन ईरानी ओवर एक्टिंग करते नजर आए.
फिल्म का संगीत भी कुछ असरदार नहीं लगता. हां ‘स्पीकर फट जाए’ वाले गाने को फिल्म रिलीज होने से पहले से पसंद किया जा रहा है. धमाल सीरिज की फिल्में अच्छी लगती हैं तो यह फिल्म पसंद आ सकती है.