नोटबंदी के बाद 50 लाख बेरोजगार हुए
एक नई रिपोर्ट के मुताबिक असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 50 लाख पुरुषों ने नोटबंदी के बाद अपना रोजगार खो दिया है.
‘स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2019’ शीर्षक से इस रिपोर्ट को बेंगलुरु स्थित अजीम प्रेमजी यूनीवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल इम्लॉयमेंट ने जारी किया है.
सेंटर के अध्यक्ष और रिपोर्ट लिखने वाले मुख्य लेखक प्रोफेसर अमित बसोले ने कहा, “इस रिपोर्ट में कुल आंकड़े हैं. इन आंकड़ों के हिसाब से पचास लाख रोजगार कम हुए हैं. कहीं और नौकरियां भले बढ़ी हों लेकिन ये पक्का है कि पचास लाख पुरुषों ने अपना रोजगार खोया है. यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है.”
बसोले ने बताया कि डेटा के अनुसार नौकरियों में यह कमी नोटबंदी के समय शुरू हुई और दिसंबर 2018 में अपने स्थिरांक पर पहुंची. बसोले ने आगे कहा कि नोटबंदी और जीएसटी की वजह से लोगों के रोजगार में कमी आई.
इस रिपोर्ट की तस्दीक इस बात से होती है कि नरेंद्र मोदी ने इस चुनावी मौसम में रोजगार पर बात करना मुनासिब नहीं समझा है जबकि 2014 के चुनावी प्रचार-प्रसार के दौरान उनकी पार्टी ने करोड़ों की संख्या में रोजगार पैदा करने का वादा किया था.
इससे पहले सरकार पर रोजगार के आंकड़े छिपाने का भी आरोप लग चुका है. बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने एनएसएसओ के वे आंकड़ें छिपाए हैं, जिनके अनुसार 2017-18 में बेरोजगारी दर पिछले 45 सालों में सबसे अधिक है.
सेंटर फॉर सस्टेनेबल इम्लॉयमेंट की ओर से जारी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अपनी नौकरी खोने वाले इन 50 लाख पुरुषों में शहरी और ग्रामीण इलाकों के कम शिक्षित पुरुषों की संख्या अधिक है. इस आधार पर रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि नोटबंदी ने सबसे अधिक असंगठित क्षेत्र को तबाह किया है.
रिपोर्ट में कुछ दूसरी जरूरी जानकारियां भी हैं –
. 2011 के बाद से कुल बेरोजगारी दर में भारी उछाल आया है. 2018 में बेरोजगारी दर छह फीसदी थी. यह 2000-2011 के मुकाबले दोगुनी है.
. भारत में बेरोजगार ज्यादातर उच्च शिक्षित युवा हैं.
. बेरोजगारों में 20 से 24 साल के लोगों का आधिक्य है.
. पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों में बेरोजगारी और श्रम भागीदारी दर बहुत ज्यादा है.
. बेरोजगारी उनके लिए ज्यादा बड़ी समस्या है जिनकी उम्र 35 साल से कम है और जिन्होंने दसवीं खासकर बारहवीं से आगे की पढ़ाई की है.