मध्यप्रदेश में करोड़ों का सरकारी विज्ञापन घोटाला
मध्यप्रदेश में न्यूज़ वेबसाइट और इनको दिए गए सरकारी विज्ञापनों के मामले में करोड़ो का घोटाला सामने आया है.
न्यूज़ वेबसाइट पत्रिका ने इस खबर का खुलासा करते हुए बताया है कि यह घोटाला तब हुआ जब सरकारी खजाने के हालात सही नहीं थे. तंगहाली के बावजूद सरकार इन वेबसाइट्स पर पैसे लुटाती रही.
रिपोर्ट में ऐसी करीब 234 वेबसाइट का खुलासा किया गया है, जिन्हें सरकारी मेहरबानी मिली. जरूरी बात यह है कि ये वेबसाइट्स केवल नाम की हैं और इनमें से कई वेबसाइट्स बड़े पत्रकारों के रिश्तेदारों के नाम से हैं.
मध्यप्रदेश सरकार ने बीते चार सालों के अपने शासन में 234 वेबसाइट्स पर सरकारी विज्ञापन के नाम पर 14 करोड़ रुपये खर्च किए.
हाल ही में जारी की गई एक इंन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इनमें से 26 वेबसाइट ऐसी हैं जिनको 10 लाख से ज्यादा के विज्ञापन दिए गए. इनमें भी कम से कम 18 ऐसी वेबसाइट्स के नाम सामने आए हैं, जिनके मालिक बड़े पत्रकारों से जुड़े हुए हैं. इन पत्रकारों के तार बीजेपी से जुड़े हुए है हैं. ऐसे पत्रकारों के रिश्तेदारों को बड़े कॉन्ट्रेक्ट दिए गए, जिनमें पांच से दस लाख रुपये के विज्ञापन शामिल हैं. साथ ही करीब 33 वेबसाइट्स सरकारी जगहों से ही संचालित की जा रही हैं.
एक और खास बात जो सामने आई है वह यह कि कई वेबसाइट का अधिकतर कंटेंट एक जैसा पाया गया है. इनमें www.faillan.com, www.deshbhakti.com, www.rashtrawad.com, www.prakalp.org वेबसाइट्स के नाम प्रमुख हैं.
इस मामले में जांच के दौरान यह भी सामने आया है कि जब इन वेबसाइट्स से कॉन्टेक्ट करने की कोशिश की गई तो कोई डिटेल नहीं मिले. इनके संचालकों के बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिली.
मध्यप्रदेश में कांग्रेस विधायक बाल बच्चन ने सरकारी विज्ञापनों के नाम पर किए गए इस घोटाले को विधानसभा में भी उठाया है. उन्होंने सराकार से सवाल पूछते हुए कहा कि विज्ञापनों बीजेपी से ही जुड़े हुए लोगों को क्यों दिए गए. जबकि विज्ञापन तो उन लोगों को दिए जाने चाहिए जो सही में पत्रकारिता कर रहे हैं. उनका मानना है कि इस तरह मीडिया की स्वतंत्रता खत्म होती है.
यह रिपोर्ट न केवल सरकारी कामकाज में हो रहे भष्ट्राचार पर सवाल उठाती है, बल्कि पत्रकारिता के नाम पर हो रहे घोटालों पर भी गंभीर सवाल खड़े करती हैं.
इस पूरे मामले पर अनुपम राजन, आयुक्त जनसंपर्क ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि, “वेबसाइट में दिए जाने वाले विज्ञापनों के मामले में अभी तक कोई साफ नीति नहीं है. वेबसाइट्स को मिले हिट्स या लाइकस के आधार पर इन्हें विज्ञापन दिए जाते हैं. बंद वेबसाइट्स को कभी विज्ञापन नहीं दिए गए. विज्ञापन देने के बाद वेबसाइट्स बंद हो जाए तो इसमें हम कुछ नहीं कर सकते.”