सेबी के 75 फीसदी अधिशेष को सरकार नियंत्रित कोष में भेजने पर केन्द्र का जोर
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सरकार सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) का 75 फीसदी अधिशेष भारत के समेकित कोष में अगला बजट पेश होने से पहले ट्रांसफर करने पर जोर दे रही है. सरकार ने अधिशेष हस्तांतरित करने का उल्लेख बजट 2019 में भी किया था.
मामले की जानकारी रखने वाले दो सरकारी अधिकारियों ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि यही प्रक्रिया आईआरडीए (बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण) और पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण के साथ भी अपनाई जाएगी.
अखबार लिखता है कि सेबी समेत अन्य नियामकों ने शुरुआत में इस योजना पर यह कहते हुए आपत्ति जताई कि इससे स्वायत्तता का खतरा है.
हालांकि फरवरी 2020 बजट से पहले सरकार योजना के तहत ट्रांसफर को अंतिम रूप देना चाहती है.
एक अधिकारी ने कहा कि ‘सेबी अधिशेष का मुद्दा सेबी एक्ट 1992 की धारा 14 में संशोधन के बाद सुलझ गया है. नियामक के पास इसे मानने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह गया है.’
नए संशोधन के मुताबिक सेबी अपने सालाना अधिशेष का केवल 25 फीसदी ही रख सकता है, जो पूर्ववर्ती दो वित्तीय वर्षों में अपने कुल वार्षिक व्यय से अधिक नहीं होना चाहिए. अतिरिक्त अधिशेष नियामक सीएफआई को ट्रांसफर करेगा. अधिकारियों के मुताबिक 31 मार्च 2018 तक सेबी का अधिशेष 3,606 करोड़ रुपये था.
सीएजी की 2016-17 ऑडिट रिपोर्ट ‘अकाउंट्स ऑफ द यूनियन गवर्नमेंट’ के मुताबिक 31 मार्च 2017 तक नियामकों के पास 6,064.08 करोड़ रुपये का कोष था. इसे जनवरी 2005 के आर्थिक मामलों के विभाग के एक पुराने आदेश को देखते हुए सरकार के राजस्व में शामिल किया जाना चाहिए.
सीएजी की रिपोर्ट में कहा है कि 14 विनियामक निकाय और स्वायत्त निकायों को शुल्क, भारत सरकार से अनुदान, सरकारी अनुदान पर अर्जित ब्याज, लाइसेंस शुल्क की रसीद, कोष आदि से फंड मिलता है.
जनवरी 2005 में आर्थिक मामलों के विभाग ने सरकारी विभागों को निर्देश दिया था कि नियामकों से मिलने वाला फंड लोक लेखा में रखा जाए.
सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक संविधान में तीन तरह के अकाउंट का उल्लेख है- भारत का समेकित कोष, आकस्मिकता निधि और लोक लेखा. ऋण और ऋण की अदायगी से मिलने वाला फंड भारत के समेकित कोष में जाता है. सरकार को मिलने वाला या सरकार की ओर से मिलने वाला रुपया पब्लिक एकाउंट (लोक लेखा) में जाता है.
आकस्मिकता निधि से सरकार अप्रत्याशित व्यय को पूरा करती है जिसके लिए संसद की मंजूरी आवश्यक नहीं होती है.