कैसी होगी फेसबुक की नई डिजिटल करेंसी लिब्रा?


facebook is developing device that would type after reading mind

 

फेसबुक ने अगले साल 2020 तक डिजिटल करेंसी लाने की घोषणा की है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने कहा है कि उसकी नई क्रिप्टोकरेंसी ‘लिब्रा’ का इस्तेमाल कोई भी कर सकता है.

अपने बयान में फेसबुक ने कहा है कि वह करोड़ों लोगों के सशक्तिकरण के लिए एक सरल वैश्विक करेंसी और वित्तीय संरचना बनाने जा रही है.

डिजिटल करेंसी लिब्रा के पीछे फेसबुक के साथ-साथ 28 बड़ी कंपनियां हैं, जिनमें मास्टर कार्ड, वीजा, पे-पाल, उबेर, वोडाफोन, थ्राइव कैपिटल और स्पोटिफाई जैसे बड़े नाम शामिल हैं. ये सभी सदस्य कंपनियां करेंसी को विकसित करने के साथ-साथ चलाने में अपना योगदान देंगी और नेटवर्क का हिस्सा होंगी.

स्विट्जरलैंड के जिनेवा में स्थित कुछ स्वतंत्र संस्थाओं पर इस करेंसी को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी होगी.

फेसबुक ने इसके लिए ‘कैलिब्रा’ नाम से अलग एक अनुषांगिक कंपनी बनाने का एलान किया है. यह नई करेंसी को खर्च करने के लिए डिजिटल वॉलेट का काम करेंगी. यह वॉलेट फेसबुक के मैसेंजर और ह्वाट्स एप जैसे दूसरे एप्लीकेशन से जुड़े होंगे.

जानकार मानते हैं कि हाल में विज्ञापन से कम हुई कमाई की भरपाई के लिए फेसबुक क्रिप्टोकरेंसी के कारोबार में उतरी है.

बीते कुछ साल में फेसबुक यूजर्स के व्यक्तिगत डाटा और प्राइवेसी के साथ समझौते करने को लेकर कड़ी आलोचना होती रही हैं.

नई क्रिप्टोकरेंसी में भले ही फेसबुक को महत्वपूर्ण प्लेयर माना जा रहा हो लेकिन सोशल मीडिया कंपनी ने अपने बयान में कहा है कि 28 सहयोगियों में वह सिर्फ एक वोट का अधिकारी है और फेसबुक इसे नियंत्रित करने का प्रयास नहीं करेगी.

क्रिप्टोकरेंसी क्या है?

क्रिप्टोकरेंसी एक आभासी या डिजिटल करेंसी है. यह वित्तीय लेन-देन के काम आता है.

क्रिप्टोकंपनी ब्लॉकचेन के शोध प्रमुख डॉक्टर गैरिक हिलमैन कहते हैं, “यह पूर्व परिचित हमारी जेब में रहने वाली किसी देश की मुद्रा की तरह सामान्य सिक्के या नोट नहीं हैं.”

इस नोट का नियमन बैंक या कोई संस्था के बजाय कंप्यूटर नेटवर्क के द्वारा होता है.

कहां से आया क्रिप्टोकरेंसी?

क्रिप्टोकरेंसी का विचार काफी पुराना है.

1980 के शुरुआती दशक में बर्कले की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया के कंप्यूटर विज्ञान के एक छात्र ने इलेक्ट्रॉनिक कैश से संबंधित एक पेपर प्रकाशित करवाया था. लेकिन इस विचार को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका.

साल 2009 में पहली बार बिटकॉइन अस्तित्व में आया.

लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स के प्रोफेसर डॉक्टर नटाचा पोस्टेल विनय बताते हैं कि इसके पीछे एक राजनीतिक रूप से स्वतंत्र करेंसी लाने का विचार था जिसे कोई सरकार नियंत्रित नहीं कर सकती थी. यह अपने आप में एक अराजकतावादी विचार था.

बीते कुछ साल में हजारों तरह की क्रिप्टोकरेंसी आ चुकीं हैं.

क्रिप्टोकरेंसी से क्या फायदा है?

क्रिप्टोकरेंसी को परंपरागत भुगतान नेटवर्क की तुलना में तेजी से और मामूली खर्च में आसानी से ट्रांसफर किया जा सकता है.

लोग अपनी पहचान जाहिर किए बिना बैंक एक्सचेंज/फीस को बायपास कर सकते हैं.

सामान्य करेंसी लेन-देन का नियमन किया जा सकता है, व्यक्ति की पहचान का पता लगाया जा सकता है और धन के इस्तेमाल पर नजर रखी जा सकती है. इसके विपरीत बिटकॉइन में पहचान गुप्त रहने की वजह से यह कुछ लोगों को आकर्षित करता है.

कई मामलों में क्रिप्टोकरेंसी में बिचौलिये या माध्यम और बैंक या संस्थाओं की जरूरत नहीं पड़ती है.

ब्लॉकचेन टेक कंपनी के ओरिजिनट्रेल टोमाज लेवाक कहते हैं कि अबतक हम किसी संस्था के पूर्व व्यवहार को देखते हुए उस पर भरोसा करते थे. यह कोई बैंक, एजेंसी या कंपनी हो सकता है. ब्लॉकचेन तकनीक में ‘भरोसा’ सिस्टम का हिस्सा बन जाता है.

फेसबुक इस कारोबार को करने में कितना अनुकूल है?

विशेषज्ञों की मानें तो फेसबुक का क्रिप्टोकरेंसी ‘रियल एस्टेट’ पर आधारित होगा, जो कि इसे बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी से कम परिवर्तनशील बनाएगा. परंपरागत कॉयन को इस मामले में ज्यादा स्थिर माना जाता है क्योंकि सरकार/केन्द्रीय बैंक इस रुपये को अदा करने के लिए एक निश्चित रकम गारंटी के रूप में रखती है.

फेसबुक इस क्रिप्टोकरेंसी को कई शक्तिशाली और भरोसेमंद कंपनियों जैसे कि वीसा, मास्टरकार्ड और पे-पाल के सहयोग से विकसित कर रही है. इस वजह से यह क्रिप्टोकरेंसी बड़े भरोसे की अपील करती है. कई लोग फेसबुक के इस कदम को एक मजबूत वित्तीय संरचना की तरह देखते हैं.

इंटरनेट के आने के बाद जिस तरह से मीडिया और दूसरे कारोबार प्रभावित हुए हैं उसकी तुलना में वित्तीय सेवा में कोई खास बदलाव नहीं आया है. पेमेंट, करेंसी और बैंक की व्यवस्था में कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं आया है.

लिब्रा, बैंक की तुलना में तेज और सस्ता पेमेंट करने की सुविधा दे पाने में सक्षम हो सकता है.

लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स के प्रोफेसर पोस्टेल विनय आश्वस्त हैं कि सरकार धन की आपूर्ति को आर्थिक और राजनीतिक कारणों से नियंत्रित करती रही है. लिब्रा सिर्फ एक पेमेंट सिस्टम ही नहीं होगा. यह मुद्रास्फीति दर और विनिमय दर में उतार-चढ़ाव जैसे कारकों से मुक्त एक नई करेंसी होगी जिसका स्वतंत्र अस्तित्व होगा. हालांकि वह यह भी जोड़ते हैं कि सरकार इसे नियंत्रित करने के लिए कोई-न-कोई तोड़ निकाल ही लेगी.


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