एनपीए की वजह से पिछले तीन साल में बैंकों ने गंवाए 1.76 लाख करोड़ रुपये
एनपीए की वजह से पिछले तीन साल में भारतीय बैंकों ने 1.76 लाख करोड़ रुपये गंवा दिए. भारतीय बैंकों को यह नुकसान कुल 416 बकाएदारों की वजह से उठाना पड़ा. प्रत्येक बकाएदार के ऊपर 100 करोड़ रुपये या उससे अधिक का कर्ज था.
भारतीय बैंकों ने औसतन 424 करोड़ रुपये के कर को प्रति बकाएदार ‘खराब कर’ के रूप में घोषित किया. यह ऐसा पहला मौका है जब 100 करोड़ रुपये या उससे अधिक के कर का डेटा सामने आया है. रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों को इस संबंध में डेटा जारी करने का निर्देश दिया था.
डेटा में यह बात सामने आई है कि 2014-15 के बाद से सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के बैंकों द्वारा एनपीए की वजह से बट्टे खाते में डाली गई धनराशि में बहुत तेज वृद्धि हुई.
डेटा से पता चला है कि 2015 में विशेष तरह के 109 बकाएदारों का कुल 40,798 करोड़ रुपये का कर्ज बट्टे खाते में डाल दिया गया. 31 मार्च 2016 तक इन विशेष बकाएदारों की संख्या बढ़कर 199 हो गई और बट्टे खाते में डाला गया कर्ज भी बढ़कर 69,976 करोड़ रुपये हो गया.
डेटा से यह भी पता चला है कि 2016 में नोटबंदी के बाद बैंकों द्वारा बट्टे खाते में डाले गए कर्ज में अभूतपूर्व वृद्धि हुई.
2017 में विशेष बकाएदारों की संख्या बढ़कर 343 हो गई और बट्टे खाते में डाला गया कर्ज भी 1,27,797 करोड़ रुपये हो गया. इस तरह नोटबंदी के तुरंत बाद वाले साल में बट्टे खाते में डाले गए कर्ज में 83 प्रतिशत की अभूतपूर्व वृद्धि हुई.
वहीं अगर 2018 की बात करें तो मार्च 2018 में विशेष बकाएदारों की संख्या बढ़कर 525 हो गई और बट्टे खाते में डाला गया कर्ज भी बढ़कर सीधे 2,17,121 करोड़ रुपये हो गया. इस तरह 2017 के मुकाबले इसमें 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
बैंकों का कहना है कि कर्ज को बट्टे खाते में डालने के बाद भी वसूली के लिए कदम उठाए गए. हालांकि, कहा यह जा रहा है कि इन कदमों से 15 से 20 प्रतिशत से अधिक कर की वसूली नहीं हुई.