बड़ी चुनौती से गुजरना पड़ेगा देश के बजट गणित को
आगामी पांच जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपना पहला बजट भाषण देंगी. जब वो ऐसा करेंगी तो सबकी नजर राजकोषीय घाटे के आंकड़ों पर होगी. राजकोषीय घाटे के आंकड़ों के साथ यह भी देखा जाएगा कि इस आंकड़े की गणना किस तरीके से की जा रही है.
पिछले कुछ सालों में सरकार राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने में कामयाब रही है. लेकिन कुछ विशेषज्ञों के अनुसार असल में राजकोषीय घाटे को लेकर मोदी सरकार का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है. उनके अनुसार ऑफ-बजट फाइनेंसिंग (वो खर्च जिसे बजट के जरिए पूरा नहीं किया जाता है) ने मोदी सरकार द्वारा राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने को काफी नुकसान पहुंचाया है.
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि राजस्व और पूंजीगत खर्च की फंडिंग के लिए जिस तरह से ऑफ बजट फाइनेंसिंग का प्रयोग किया गया है, उसने बजट के आंकड़ों की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है.
आईसीसी सिक्योरिटी प्राइमरी डीलरशिप फिक्स्ड इनकम के प्रमुख ए प्रसन्ना कहते हैं कि अगर वित्तीय गणनाओं में ऑफ बजट ऋण को जोड़ा जाए तो देश एक गहरे वित्तीय संकट में है. उनके अनुसार ऐसी स्थिति में समायोजित राजकोषीय घाटा जीडीपी के पांच प्रतिशत के आसपास होगा.
इसके साथ ही मोदी सरकार में वहन करने योग्य ऋण का ना चुकाया गया बिल भी लगातार बढ़ा है. कैग का डेटा बताता है कि वित्त वर्ष 2017-18 के खत्म होने से ठीक पहले सरकार ने सब्सिडी को दिया गया कुल बजट कम कर दिया था. सरकार ने सब्सिडी के लिए 70,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया था. बाद में इसे घटाकर 42,000 करोड़ कर दिया गया. यह सब तथ्य इस ओर इशारा करते हैं कि देश के बजट के सामने अब बहुत सी चुनौतियां खड़ी हैं.