जालान समिति ने RBI की सरप्लस पूंजी किस्तों में सरकार को देने की सिफारिश की
विमल जालान की अध्यक्षता में गठित समिति ने केंद्रीय बैंक के पास पूंजी के उपयुक्त स्तर के बारे में अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया है. मिंट में छपी खबर के मुताबिक समिति ने आरबीआई की अधिशेष (सरप्लस) पूंजी को तीन से पांच साल अंतर पर हिस्सों में सरकार को देने का सुझाव दिया है.
आरबीआई के पूर्व गवर्नर विमल जालान की अध्यक्षता में इस समिति का गठन 26 दिसंबर, 2018 को की गई थी. इस छह सदस्यीय समिति को केंद्रीय बैंक की आर्थिक पूंजी रूपरेखा ढांचे की समीक्षा कर रिजर्व बैंक के पास रहने वाले उपयुक्त पूंजी स्तर के बारे में सिफारिश देने को कहा गया था.
वित्त मंत्रालय चाहता था कि केंद्रीय बैंक वैश्विक स्तर पर अपनाए जाने वाले सर्वश्रेष्ठ व्यवहारों को अपनाए और अधिशेष पूंजी सरकार को हस्तांतरित करे. रिजर्व बैंक के पास पूंजी का उपयुक्त स्तर क्या हो इस संबंध में सुझाव देने को लेकर ही समिति का गठन किया गया.
पहचान छिपाने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया, हमने रिपोर्ट तैयार कर ली है. ये संपादन के बाद 10-15 दिन में आरबीआई को सौंप दी जाएगी. इस समिति की आखिरी बैठक बीते बुधवार को समाप्त हो गई.
विभिन्न अनुमानों के अनुसार रिजर्व बैंक के पास नौ लाख करोड़ रुपये से अधिक की अधिशेष पूंजी है. सूत्रों ने बुधवार को यहां बताया कि समिति की बैठक के बाद रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया गया है और अब आगे बैठक की जरूरत नहीं है.
रिजर्व बैंक द्वारा सरकार को हस्तांतरित की जाने वाली अधिशेष राशि के बारे में पूछे जाने पर सूत्रों ने कहा कि अभी इसका खुलासा नहीं किया जा सकता. लेकिन यह हस्तांतरण तीन से पांच साल के दौरान समय-समय पर किया जा सकता है.
आरबीआई के पास उपलब्ध अधिशेष पूंजी के हस्तांतरण से सरकार को अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पाने में मदद मिलेगी. यह एक प्रकार से सरकार को मिलने वाली अप्रत्याशित आय होगी.
सरकार ने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.3 फीसदी पर रखने का लक्ष्य तय किया है. फरवरी में पेश अंतरिम बजट में हालांकि राजकोषीय घाटे के 3.4 फीसदी पर रहने का अनुमान लगाया गया था.
चालू वित्त वर्ष में रिजर्व बैंक से अधिशेष पूंजी के अलावा सरकार को 90,000 करोड़ रुपये का लाभांश मिलने की भी उम्मीद है. पिछले वित्त वर्ष में सरकार को केंद्रीय बैंक से 68,000 करोड़ रुपये का लाभांश मिला था.
खबरों के मुताबिक जालान समिति ने आरबीआई के इस अधिशेष को आकस्मिक और पुनर्मूल्यांकन दोनों फंड में देने की बात कही है. सूत्रों ने बताया कि हमने आरबीआई के आर्थिक पूंजी ढांचे की समय-समय पर समीक्षा करने की बात कही है. हालांकि अधिकारी ने ये बताने से इनकार कर दिया कि इस साल आरबीआई का कितना धन सरकार को दिया जाएगा.
जालान समिति को अपनी पहली बैठक के 90 दिन के भीतर रिपोर्ट सौंपनी थी. समिति को तीन महीने का विस्तार दिया गया.
सूत्रों ने बुधवार को बैठक समाप्त होने के बाद कहा कि सरकारी पक्ष की ओर से कुछ भिन्न राय मिली हैं. रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन समिति के वाइस चेयरमैन हैं.
समिति के अन्य सदस्यों में वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग, रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एन एस विश्वनाथन और दो रिजर्व बैंक केंद्रीय बोर्ड के सदस्य, भरत दोषी और सुधीर मांकड़ शामिल हैं.
इससे पहले सरकार और रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल के बीच केद्रीय बैंक के पास मौजूद नौ लाख करोड़ रुपये की अधिशेष राशि को लेकर विवाद छिड़ा था.