जॉनसन एंड जॉनसन: मुआवजे पर मरीजों ने जताई आपत्तियां
अमेरिकी कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन से जुड़े घटिया हिप इम्प्लांट मामले में भारत सरकार द्वारा तय मुआवजे पर प्रभावित मरीजों ने आपत्ति दर्ज की है. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने यह बात अपनी एक विशेष रिपोर्ट में लिखी है. बीते महीने सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा निर्धारित मुआवजे को जायज बताते हुए कंपनी को इसे अदा करने का आदेश दिया था.
केन्द्र सरकार द्वारा बनाई गई समिति ने कंपनी को 20 लाख रुपये से लेकर 1.22 करोड़ रुपये तक का मुआवजा देना को कहा था. मरीजों को होने वाले नुकसान, उनकी उम्र और उनके शरीर में आने वाली अशक्तता के आधार पर यह मुआवजा तय किया गया था.
प्रभावित मरीजों ने सफदरजंग स्पोर्ट्स इंजरी, नई दिल्ली के निदेशक डॉ आर के आर्या की अध्यक्षता में बनी इस समिति को मुआवजे के फार्मूले पर आपत्तियां जताते हुए एक पत्र लिखा है. इस पत्र में कहा गया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे की राशि का ठीक से मूल्यांकन नहीं किया है. मुआवजे की राशि में अब भी फेर-बदल किए जा सकते हैं और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बहाना नहीं बनाया जाना चाहिए.
मरीजों ने लिखा है कि मुआवजे की न्यूनतम राशि 20 लाख रुपए निर्धारित की गई है जो क्लीनिकल ट्रायल में होने वाले इम्प्लांट पर आधारित है. चूंकि क्लीनिकल ट्रायल में होने वाले इम्प्लांट में जोखिम कम होता है, इसलिए यह राशि वास्तव में हुए नुकसान के अनुरूप नहीं है.
इम्प्लांट के लिए जॉनसन एंड जॉनसन ने जो उपकरण बाजार में बेचे, वे विनियामक प्रक्रिया से गुजरकर बाजार में आए. वे उपकरण इसी भरोसे के साथ खरीदे गए. इस तरह इस मामले में मरीजों को नुकसान जांच के स्तर पर हुई लापरवाही के चलते भी हुआ.
मरीजों ने इस पत्र में मुआवजे के लिए अशक्तता सर्टिफिकेट देने की अनिवार्य शर्त पर भी आपत्ति जताई है. उन्होंने पत्र में लिखा है कि भारत में जारी होने वाले अशक्तता सर्टिफिकेट में उस वजह का उल्लेख नहीं होता जिसकी वजह से हिप इम्प्लांट त्रुटिपूर्ण होते हैं. इसके अलावा भारत में अस्पताल अलग-अलग ढंग से अशक्तता सर्टिफिकेट जारी करते हैं.