रेडियोएक्टिव आइसोटोप जहर से हुई जज लोया की मौत
PTI
वकील सतीश ऊके ने नागपुर बेंच के सामने याचिका दाखिल करते हुए कहा है कि जज बीएच लोया की मौत रेडियोएक्टिव आइसोटोप जहर के कारण हुई थी. उन्होंने कहा कि इस केस से जुड़े होने के कारण उनकी जान को भी खतरा है.
सतीश ने 209 पन्नों की आपराधिक रिट याचिका में कहा है कि वकील श्रीकांत खांडलकर और प्रकाश थोंबरे ने उन्हें बताया था कि लोया को रेडियोएक्टिव आइसोटोप जहर दिया गया था. हालांकि बाद में दोनों वकील भी संदिग्ध परिस्थितियों में मारे गए थे.
जज लोया की 01 दिसंबर, 2014 में कथित दिल का दौरा पड़ने से मौत हुई थी.
याचिका में यह भी कहा गया है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह मार्च 2015 में अपनी तीन दिवसीय नागपुर यात्रा के दौरान एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चैयरमन रतन कुमार सिन्हा से मिले थे. पर बाद में उनकी इस मीटिंग के बारे में सारे आधिकारिक रिकॉर्ड मिटा दिए गए.
लाइव लॉ वेबसाइट को दिए अपने बयान में ऊके ने शाह और रतन कुमार पर आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि दोनों की सीक्रेट मीटिंग लोया को दिए गए रेडियोएक्टिव आइसोटोप जहर की ओर इशारा करती है.
ऊके का कहना है कि उन्होंने जज लोया से वीडियो कॉल पर बात की थी. जज लोया ने उनसे कहा था कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सोहराबुद्दीन केस में उन्हें डरा रहे हैं.
याचिका के मुताबिक सोहराबुद्दीन केस में मुख्य आरोपी अमित शाह को बरी करने के मामले में जज लोया ने अपना निर्णय पहले ही लिख लिया था. जिसे उन्होंने वकील खांडकर के साथ भी साझा किया था. सतीश ने बताया कि वकील खांडकर की भी संदिग्ध परिस्थियों में मौत हो गई. वह दो दिन तक गायब रहे जिसके बाद उनका शव एक कोर्ट परिसर में मिला.
रेडियोएक्टिव जहर को लेकर दाखिल याचिका से पहले भी ऊके याचिकाएं दाखिल कर चुके हैं. जिसमें उन्होंने जज लोया और वकील खांडकर की मौत को लेकर कुछ गंभीर आरोप लगाए गए हैं.
वकील प्रकाश थोंबरे भी साल 2016 मई में नागपुर से बंगलौर जा रही ट्रेन में रहस्मयी परिस्थितियों में मारे गए थे.
सतीश ने अपनी जान पर खतरा होने की भी बात कही. उन्होंने बताया कि 8 जून, 2016 में नागपुर स्थित उनके ऑफिस में भारी पाइप्स, लोहे की सीट और रॉड गिरे थे, पर वह हादसे से कुछ समय पहले ही ऑफिस से निकल गए थे.
ऊके ने कोर्ट से सभी जरूरी दस्तावेजों को सुरक्षित जगहों पर रखने की विनती की है. उन्होंने कहा कि उनकी जान खतरे में है इसलिए जरूरी है कि सभी दस्तावेजों को सुरक्षित स्थानों पर रख दिया जाए.
क्या है पूरा मामला
जज लोया की 1 दिसंबर 2014 को नागपुर में कथित दिल का दौरा पड़ने से मौत हुई थी. नागपुर वह अपने सहयोगी की बेटी की शादी में गए थे.
यह पूरा मामला सामने तब आया जब जज लोया की बहन अनुराधा बियानी ने कारवां मैग्जीन को दिए अपने इंटरव्यू में मौत की परिस्थितियों पर गंभीर सवाल उठाए.
अनुराधा ने कहा कि लोया अपनी मौत के समय सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में सुनवाई कर रहे थे. उन्होंने कहा कि उनके भाई जज लोया को बॉम्बे हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस मोहित शाह ने उनके अनुसार फैसला देने के लिए उन्हें 100 करोड़ रुपये देने का प्रस्ताव भी रखा था.
रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला, महाराष्ट्र के पत्रकार बीएस लोने और बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने जज लोया की मौत की जांच करवाने की मांग की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी.
19 अप्रैल 2018 को याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि जज लोया की मौत स्वाभाविक थी. कोर्ट ने कहा कि ये याचिकाएं न्यायपालिका की प्रक्रिया को बाधित और बदनाम करने के उद्देश्य से की गई हैं.
इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने जज लोया की मौत से संबंधित परिस्थितियों को लेकर दायर सारे केस समाप्त कर दिए थे.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था.