खेल के मैदान के बाहर भी लेस्बियन फुटबॉल खिलाड़ियों ने छोड़ी छाप
विश्व भर में सार्वजनिक रूप से अपनी समलैंगिक (एलजीटीबी) पहचान जाहिर करने वाले खिलाड़ियों की संख्या बढ़ रही है. हालांकि पुरूष खेलों की तुलना में महिला खेलों में बेहिचक अपनी लेस्बियन पहचान जाहिर करने वाले खिलाड़ियों की संख्या अधिक है.
इस बात का हालिया प्रमाण फ्रांस से शहर लियोन में जारी फीफा महिला विश्व कप में मिलता है. तीन बार फीफा महिला विश्व कप का खिताब जीत चुकी अमेरिकी महिला फुटबॉल टीम में पांच एलजीटीबी खिलाड़ी हैं.
टीम के दो स्टार खिलाड़ी अली क्रेगर और ऐश्लिन हैरिस एक-दूसरे के साथ रिश्ते में हैं. वहीं टीम की कोच जिलियन इलिस ने सार्वजनिक रूप से स्वीकारा है कि वो लेस्बियन हैं.
एलजीटीबी स्पोर्ट्स वेबसाइट ‘आउटस्पोर्ट्स’ के मुताबिक इस बार 40 लेस्बियन और बाईसेक्सुअल खिलाड़ी फीफा महिला विश्व कप का हिस्सा रहे. पिछली बार 2015 में 20 एलजीटीबी खिलाड़ियों ने टूर्नामेंट में हिस्सा लिया था.
परड्यू यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर और “नो स्लैम डंक: जेंडर, स्पोर्ट एंड दि अनइवननेस ऑफ़ सोशल चेंज” की सह-लेखिका चेरिल कुकी कहती हैं कि खिलाड़ियों का एलजीटीबी पहचान के साथ सामने आना दिखाता है कि खेल अधिक समावेशी बन रहे हैं.
कुकी ने एनबीसी न्यूज से बातचीत में कहा,”मुझे लगता है कि खेल में लगातार महिला खिलाड़ियों की नई पीढ़ी आ रही है, ये अलग तरह के सांस्कृतिक माहौल में पली-बढ़ी हैं, ये अपनी पहचान को खुलकर जाहिर करती हैं. ये नई पीढ़ी की खिलाड़ी हैं, जिन्हें उस स्तर पर निंदा का सामना नहीं करता पड़ता जितना पहले करना पड़ता था. पर आज भी ऐसे देश हैं जहां समलैंगिक पहचान को कानूनी और सामाजिक स्वीकार्यता नहीं मिली है. इन देशों से आने वाले खिलाड़ी आज भी खुल कर अपनी पहचान जाहिर नहीं करते हैं.”
अपनी पुरुष समलैंगिक पहचान स्वीकार करने वाले पेशेवर पुरुष फुटबॉल खिलाड़ियों की संख्या कम रही है. अब तक केवल तीन पुरुष फुटबॉल खिलाड़ियों ने सार्वजनिक तौर पर अपनी समलैंगिक पहचान को स्वीकारा है- अमेरिका के कॉलिन मार्टिन, स्वीडन के एन्टोन हाइसिन और ऑस्ट्रेलिया के एंडी ब्रेनन. 2018 पुरुष विश्व कप में सार्वजनिक रूप से अपनी पुरुष समलैंगिक पहचान स्वीकार करने वाले किसी भी खिलाड़ी ने हिस्सा नहीं लिया था.
नार्थ अमेरिकी पुरुष फुटबॉल जगत से आज तक केवल दो खिलाड़ी- मार्टिन और रोबी रोजर्स ने रिटायर होने से पहले अपनी पहचान को सार्वजनिक रूप से स्वीकारा.
पूर्व पेशेवर पुरुष फुटबॉल खिलाड़ी मैट हैटज्के ने साल 2015 में रिटायर होने से पहले अपनी समलैंगिक पहचान को सार्वजनिक रूप से स्वीकारा था. ये इस बात की ओर इशारा करता है कि हैटज्के की ही तरह कई समलैंगिक खिलाड़ी रिटायर होने तक अपनी पहचान छुपा कर रखते हैं.
हैटज्के संदेह भरे शब्दों में कहते हैं कि “महिला विश्व कप में अगर 40 महिलाओं ने अपनी लेस्बियन पहचान को स्वीकारा है तो मैं आपको गारंटी देता हूं कि पुरुषों की टीम में भी कई समलैंगिक खिलाड़ी होंगे.”
मैदान ने प्रतिद्वंदी टीम के पसीने छुड़ा देने वाली अमेरिकी खिलाड़ी मेगन रोपियो मैदान में शानदार खेल का प्रदर्शन करती हैं और मैदान के बाहर मानवाधिकारों के लिए जमकर लड़ती हैं. मेगन एलजीटीबी खिलाड़ियों के लिए आइकन बन गई हैं.
दूसरे क्वाटर फाइनल में अमेरिका ने मेजबान फ्रांस को 2-1 से हराकर टूर्नामेंट से बाहर कर दिया था. इस मैच में मेगन ने टीम की ओर से दोनों गोल किए थे. बीते महीने ‘एलजीटीबी प्राइड मंथ’ के आखिर में उन्होंने कहा था, “गो गे, आप अपनी टीम में गे खिलाड़ी के बिना कोई भी मैच नहीं जीत सकते हैं. यह आज तक नहीं हुआ है.”
ह्यूमन राइट कैंपेन की एक रिपोर्ट बताती है कि केवल 24 फीसदी एलजीटीबी युवा स्कूल में किसी खेल का हिस्सा होते हैं. जबकि कुल 68 फीसदी युवा खेल में भाग लेते हैं.
एलजीटीबी अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली सराह कोगॉड कहती हैं, “भले ही एलजीटीबी खिलाड़ी रापिनो जैसे खिलाड़ियों को आइकन के रूप में देखते हैं पर वो खुद को उनसे जोड़ कर नहीं देख पाते हैं क्योंकि उनके अपने जीवन में टीचर, कोच और अन्य लोगों के रूप में रोल मॉडल की कमी होती है.”
पुरुष खिलाड़ियों के जीवन में भी रोल मॉडल की कमी होती है. इनमें से बहुत से खिलाड़ी ‘एंटी गे’ और ‘होमोफोबिया’ जैसी मानसिकता से ग्रसित होने हैं, जो बंद कमरे में आज भी गे होने का मजाक बनाते हैं.
नॉर्थ अमेरिकन गे फुटबॉल एसोसिएशन के 33 वर्षीय संस्थापक रियान एडम्स कहते हैं कि “जब मैं बड़ा हो रहा था, तब बंद कमरे में होने वाली बातों और जो संस्कृति होती है उसकी वजह से एलजीटीबी खेल की कल्पना भी नहीं कर सकता था. मैं अपनी असली पहचान से भी डरता था. अगर आप गे लगते हैं या फिर कमजोर या पतले दिखते हैं तो सब आपको परेशान करते हैं.”
हाल ही में मेलबर्न के मोनाश विश्वविद्यालय में बिहेवियरल साइंस डिपार्टमेंट ने 11 देशों के 146 खिलाड़ियों के बीच एक अध्ययन किया था. अध्ययन से पता चलता है कि 86 खिलाड़ियों को लगता है कि उनकी टीम पुरुष समलैंगिक खिलाड़ियों का खुलकर स्वागत करेगी लेकिन वो खुद आमतौर पर गलत और ट्रांसजेंडर व्यक्ति का प्रतिरोध करने वाली भाषा का इस्तेमाल करते हैं.
कोगॉड कहती है कि भेदभाव पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है लेकिन समाधान पर ध्यान नहीं है. “हमें उच्च माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर समावेशी नीतियों की जरूरत है. हमें उन्हें अलग-थलग नहीं महसूस कराना है, हमें उन्हें विश्वास दिलाना होगा ताकि वो अपनी असली पहचान को गर्व से स्वीकार कर सकें.”
कोगॉड के मुताबिक एलजीटीबी खिलाड़ियों के लिए हर स्तर पर अब भी बहुत काम करने की जरूरत है. वो कहती हैं कि रोपिनो और महिला विश्व कप में अन्य खिलाड़ी अपनी अलग छाप छोड़ रहे हैं. खासकर तब जब प्रशंसक उन्हें स्वास्थ्य और प्यार भरे संबंधों में एक साथ देखते हैं. ये लाखों लोगों को प्रेरणा देता है.