सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 2019 को लोकसभा में मंजूरी


loksabha passes right to information amendment bill 2019

 

लोकसभा ने सोमवार को दो महत्वपूर्ण बिल पास किए. विरोध प्रदर्शन के बाद सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 2019 और मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक 2019 को मंजूरी दे दी गई है.

केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने पारदर्शिता कानून के बारे में विपक्ष की चिंताओं को निर्मूल करार देते हुए कहा कि मोदी सरकार पारदर्शिता, जन भागीदारी, सरलीकरण, न्यूनतम सरकार…अधिकतम सुशासन को लेकर प्रतिबद्ध है.

मंत्री के जवाब के बाद एमआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी समेत कुछ सदस्यों ने विधेयक पर विचार किए जाने और इसके पारित किए जाने का विरोध किया और मतविभाजन की मांग की. सदन ने इसे 79 के मुकाबले 218 मतों से अस्वीकार कर दिया.

इसके बाद सदन ने विधेयक को मंजूरी प्रदान की.

इस विधेयक में उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार की ओर से तय किए जाएंगे .

मूल कानून के अनुसार अभी मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के बराबर है .

कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने सरकार पर सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक लाकर इस महत्वपूर्ण कानून को कमजोर करने का आरोप लगाया. विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार इस संशोधन के माध्यम से राज्यों में भी सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों की नियम, शर्तें तय करेगी जो संघीय व्यवस्था तथा संसदीय लोकतंत्र के खिलाफ हैं.

राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह सिंह ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार में आरटीआई आवेदन कार्यालय समय में ही दाखिल किया जा सकता था. लेकिन अब आरटीआई कभी भी और कहीं से भी दायर किया जा सकता है .

उन्होंने कहा कि आरटीआई के लंबित मामलों में कमी आई है. 2014 में लंबित मामले 37,323 थे जो 2015-16 में 34,982 हो गये, 2016-17 में 26,559 रहे तथा 2017-18 में 23,541 थे .

विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि आरटीआई अधिनियम की धारा-13 में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की पदावधि और सेवा शर्तो का उपबंध किया गया है . इसमें कहा गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ते और शर्ते क्रमश: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के समान होंगी.

इसमें यह भी उपबंध किया गया है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन क्रमश: निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव के समान होगा .

संशोधन विधेयक में यह उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय होंगी.

वहीं मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक 2019 को मंजूरी देते हुए सरकार ने भरोसा जताया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोगों को और अधिक सक्षम बनाने में विधेयक के प्रावधानों से मदद मिलेगी.

विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के कुछ सदस्यों की इन आपत्तियों को निराधार बताया कि पुनर्नियुक्ति के प्रावधान के कारण यह ‘सरकार का आयोग’ बन जाएगा. शाह ने कहा कि आयोग के सदस्य की नियुक्ति एक समिति करती है जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा के अध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति तथा संसद के दोनों सदनों के नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता होते हैं.

शाह ने कहा कि समिति द्वारा नियुक्ति के बारे में यदि इस तरह के संदेह किया जाएगा तो ‘‘कोई भी लोकतांत्रिक संस्था काम नहीं कर पाएगी.’’

उन्होंने कहा कि आयोग के सदस्यों के कार्यकाल को पांच साल से घटाकर तीन साल करने का उद्देश्य है कि खाली पदों को भरा जा सकेगा.

विधेयक के प्रावधान के अनुसार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के रूप में ऐसा व्यक्ति होगा, जो उच्चतम न्यायालय का प्रधान न्यायाधीश रहा हो. उसके अतिरिक्त किसी ऐसे व्यक्ति को भी नियुक्त किया जा सके जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा है.

इसमें आयोग के सदस्यों की संख्या दो से बढ़ाकर तीन करने का प्रावधान है जिसमें एक महिला हो.

इसमें प्रस्ताव किया गया है कि आयोग और राज्य आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों की पदावधि को पांच वर्ष से कम करके तीन वर्ष किया जाए और वे पुनर्नियुक्ति के पात्र होंगे.


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