मप्र डायरी: चर्चा-ए-आम है, शिवराज को हुआ क्या है
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान का बर्ताव उनके स्वभाव के एकदम उलट हो गया है.
वे इन दिनों जिस तरह के बयान दे रहे हैं, वैसा व्यवहार तो उन्होंने अपनी राजनीति के शुरुआती चरण में भी नहीं किया था. अपने भाषणों में ‘पैर में चक्कर, मुंह में शक्कर’ रखने का पाठ पढ़ाने वाले शिवराज की वाणी अचानक कड़वी हो गई है.
उन्होंने देशज छवि को बरकरार रखते हुए कभी विरोधियों के लिए स्तरहीन शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया. मगर, इन दिनों उनका स्वभाव बदला हुआ है. उन्होंने जानते बूझते पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को अपराधी कह दिया. यही नहीं उड़ीसा में कही गई बात को भोपाल में पत्रकारों से चर्चा के दौरान फिर दोहराया और पंडित नेहरू को अपराधी कहा.
इस पर उन्हें कांग्रेस की ओर से करारा जवाब मिला लेकिन बाद में वे यह तक कह गए कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद वे अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की पूजा करेंगे. बीजेपी के कार्यकर्ता भी हैरान है कि उनके आदर्श नेता रहे शिवराज क्यों इतने उथले बयान दे रहे हैं.
चर्चा हैं कि मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद शिवराज प्रदेश से बेदखल नहीं होना चाहते हैं और वे प्रासंगिक बने रहने के जतन कर रहे हैं. उनकी मंशा अपने नेतृत्व को प्रसन्न रखने की है. उन्हें इस बात की फिक्र नहीं है कि सुर्खियों में बने रहने का यह अंदाज उनकी छवि को नुकसान भी पहुंचा सकता है.
राजभवन में फिर सक्रिय हुआ ‘सत्ता’ केन्द्र
जनवरी 2018 में गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने मध्य प्रदेश में राज्यपाल का पद संभाला था. तब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री थे.
उस गुजरात से आनंदी बेन पटेल को मध्य प्रदेश भेजना बीजेपी में सत्ता संतुलन की तरह देखा गया था. पूर्व मुख्यमंत्री पटेल ने भी गुजरात से मध्य प्रदेश आने की अपनी पहली यात्रा को एक राजनीतिक इवेंट ही बनाया था. वे अहमदाबाद से मध्य प्रदेश की सीमा तक कार से आई और फिर मध्य प्रदेश की सीमा से राजधानी भोपाल तक बस यात्रा कर पहुंची.
उस निजी बस में उनके परिजन और स्टॉफ सदस्य थे. बस में सवार पटेल का रास्ते में जगह-जगह बीजेपी कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया था. पटेल के आने के बाद कुछ दिनों तक राजभवन शिवराज विरोधियों की सक्रियता का केन्द्र रहा. अब स्थितियां बदली हुई हैं.
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और हाल ही में केन्द्र की बीजेपी सरकार ने आनंदी बेन पटेल को हटा कर उत्तर प्रदेश के चर्चित नेता लालजी टंडन को मध्य प्रदेश का राज्यपाल बना कर भेजा है. टंडन ने आते ही सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है. उन्होंने बिहार में किए प्रयोग मध्य प्रदेश में भी करने शुरू कर दिए हैं. पत्रकारों, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के प्रतिनिधियों को राजभवन बुला कर सम्मान और संवाद स्थापित करने की श्रृंखला उन्होंने शुरू की है.
आनंदी बेन पटेल तो कई कारणों से स्थाई नेताओं से उतना घुलीमिली नहीं थी मगर टंडन के आते ही राजभवन में बीजेपी नेताओं की आवाजाही बढ़ गई है.
राज्यपाल के अल्पकार्यकाल में ही राजभवन में कांग्रेस प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी की तस्वीर न लगाने से जुड़ा एक विवाद का सामने आना इस राजनीतिक सक्रियता का नतीजा माना जा रहा है. यह विवाद तब सामने आया जब स्वतंत्रता दिवस पर मिलन समारोह में कांग्रेस नेता राजभवन पहुंचे. वहां कांग्रेस के नेताओं की तस्वीर न पा कर मध्य प्रदेश के जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने तीखी प्रतिक्रिया जताई.
सोशल मीडिया से मिला खेल मंत्री को नया आईडिया
सोशल मीडिया हर बार बुरा नहीं होता. मध्य प्रदेश में खेल मंत्री जीतू पटवारी को हुआ अनुभव तो यही बताता है.
सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो ने खेल मंत्री को नया आईडिया दे दिया और उन्होंने हर वर्ष ग्रामीण प्रतिभाओं को निखारने के लिए मध्य प्रदेश ओलम्पिक आयोजित करने की घोषणा की दी है.
उन्हें यह विचार सोशल मीडिया पर चर्चित हुए शिवपुरी जिले के नरवर निवासी धावक रामेश्वर गुर्जर से मुलाकात में आया.
रामेश्वर का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वे नंगे पैर 100 मीटर रेस 11 सेकेण्ड में पूरी करते दिख रहे हैं. इस वीडियो को देख मध्य प्रदेश के खेल मंत्री जीतू पटवारी के साथ केन्द्रीय खेल मंत्री किरण रिजीजू ने भी रामेश्वर की प्रतिभा को अवसर देने की पहल की है.