370 अनुच्छेद: मलेशिया और सऊदी ने UNSC प्रस्तावों के अनुरूप समाधान पर जोर दिया


Allegations of human rights violations in Kashmir should be investigated: Britain

 

कश्मीर मुद्दे पर मलेशिया और सऊदी अरब ने बयान जारी करते हुए यूएनएससी प्रस्तावों के अनुरूप और शांतिपूर्ण समाधान की मांग की है. दोनों ही देश मुद्दे पर किसी देश का पक्ष लेने से बचते दिखे. हालांकि दोनों ही देशों ने मसले का शांतिपूर्ण समाधान निकले जाने की मंशा साफ कर दी है.

मुद्दे पर चिंता जाहिर करते हुए सऊदी अरब ने समस्या के शांतिपूर्ण समाधान की मांग की. साथ ही यूएनएससी प्रस्तावों पर भी जोर दिया. मलेशिया ने भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा कौंसिल के प्रस्तावों के अनुरूप फैसला लेने पर जोर दिया.

ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-आपरेशन (ओआईसी) के दोनों सदस्य देशों ने बेह ही संतुलित ढ़ग से मसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी. साथ दोनों देश किसी देश का पक्ष लेने से भी बचते दिखे. वहीं इससे पहले दो ओआईसी देश मालदीव और संयुक्त अरब अमीरात ने मुद्दे पर भारत के फैसले का बचाव करते हुए इसे ‘आंतरीक मामला’ बताया.

सऊदी की ओर से जारी बयान के अनुसार, इस मुद्दे का समाधान संबंधित अंतरराष्ट्रीय प्रस्तावों के अनुरूप किया जाना चाहिए. सऊदी ने सभी पक्षों से क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने की अपील की है. साथ बयान में लोगों के हितों को ध्यान में रखने की अपील की.

मलेशियाई प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने गुरुवार को उम्मीद जताई कि भारत और पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में शांति और स्थायित्व के लिए नुकसानदेह साबित होने वाले तनाव को रोकने की खातिर “यथासंभव संयम” बरतेंगे.

वहीं इससे पहले अमेरिका के दो प्रभावशाली डेमोक्रेटिक सांसदों ने पाकिस्तान से कहा है कि वह भारत के खिलाफ ‘बदले की किसी भी कार्रवाई’ से बचे और अपने देश में सक्रिय आतंकवादी समूहों के खिलाफ ‘ठोस कार्रवाई’ करे.

सीनेटर रॉबर्ट मेनेंदेज और कांग्रेस सदस्य इलियट एंगल ने बुधवार को एक संयुक्त बयान में जम्मू कश्मीर में पाबंदियों पर चिंता भी जताई.

उन्होंने बयान में कहा, ”पाकिस्तान को नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ कराने में मदद समेत किसी भी तरह की बदले की कार्रवाई से बचना चाहिए और अपनी जमीन पर मौजूद आतंकवादी ढांचे के खिलाफ ठोस कार्रवाई करनी चाहिए.”

जम्मू कश्मीर में नजरबंदी और प्रतिबंधों पर चिंता जताते हुए सांसदों ने कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते भारत के पास अपने सभी नागरिकों को सूचना तक पहुंच, आपस में एकत्र होने की आजादी देने और कानून के तहत समान संरक्षण सहित समान अधिकारों की रक्षा और उन्हें बढ़ावा देने के महत्व को दिखाने का अवसर है.

वहीं इससे पहले ब्रिटेन ने चिंता जाहिर की थी तो वहीं दूसरी ओर अमेरिका ने जानकारी दी थी वो क्षेत्र में बदलते घटनाक्रम पर करीबी नजर बनाए हुए है.

इसके अलावा यूरोपियन यूनियन ने भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक संबंधों को पुन: बहाल करने की अपील करते हुए मुद्दे के द्विपक्षीय समाधान पर जोर दिया है.

अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने भारत का पक्ष लेते हुए कहा कि “उनका देश ये उम्मीद करता है कि भारत सरकार की ओर से उठाए गए नए कदम के बाद जम्मू-कश्मीर में लोगों की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव आएंगे. उसने पाकिस्तान से क्षेत्र में चरमपंथी हिंसा का इस्तेमाल नीति के तौर नहीं करने की मांग की.”

वहीं आज संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने भारत और पाकिस्तान से गुजारिश की कि दोनों देश जम्मू-कश्मीर को प्रभावित करने वाले किसी भी कदम को उठाने में अधिक सावधानी बरतें. उन्होंने शिमला समझौते का हवाला दिया जो किसी भी तीसरे पक्ष को इस मुद्दे पर मध्यस्थता करने की इजाजत नहीं देता है.

गुटेरस के प्रवक्ता स्टीफन डुजारिक ने कहा, “महासचिव ने 1972 में हुए शिमला समझौते की भी बात कही है. यह दोनों देशों के द्विपक्षीय संबध से जुड़ा हुआ है. इसके तहत जम्मू-कश्मीर के मामले में आखिरी फैसले को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की बात कही गई है. और यह संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के तहत होगा.”


Big News