मप्र डायरी: आपदा से घिरा राज्य, मदद के लिए नदारद बीजेपी सांसद
मध्य प्रदेश बीते सवा माह से तेज बारिश झेल रहा है. चारों तरफ पानी ही पानी है. फसलें खत्म हो गई हैं. खेत डूबे हैं. अगली फसल को तैयार करने के लिए किसानों को खेतों की मिट्टी का पलटा करना होगा. यहां पानी तो भरपूर है मगर किसानों के आगे समस्याओं की भी बाढ़ है.
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सभी जिला कलेक्टरों को भारी बारिश से जान-माल और फसल के नुकसान का प्रारंभिक आकलन करने के निर्देश दिए हैं. ताकि बिना किसी देरी के क्षतिपूर्ति राशि दी जा सके. सरकार रबी फसलों के लिए खाद की आवश्यकता का आकलन करने में भी जुट गई है. कलेक्टरों से किसानों की ऋण माफी के संबंध में प्राथमिक रिपोर्ट मांगी गई है. दूसरी तरफ, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विपक्ष की भूमिका निभाते हुए एक व्हाट्स एप नंबर जारी किया है ताकि किसान फसल बर्बादी की फोटो भेज सकें.
विपक्ष की भूमिका इतनी है कि वह किसानों की समस्याओं पर बयान दे रही है. कांग्रेस का पक्ष है कि प्रदेश सरकार तो अपने अनुसार पूरा प्रबंध कर रही है. शिवराज पन्द्रह सालों में व्यवस्था क्यों नहीं कर पाए? कांग्रेस ने तो बीजेपी सांसदों से आग्रह किया है कि वे अपनी बीजेपी की केन्द्र सरकार से प्रदेश के हक का रूका पैसा दिलवाए ताकि प्रदेश सरकार जनता की समस्याओं का निराकरण करने में धन की कमी का सामना न करे. मगर इस मामले में सांसद मौन ही हैं. गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के 29 सांसदों में से 28 लोकसभा सदस्य बीजेपी से हैं. कांग्रेस का मानना है कि ये सभी एक साथ केन्द्र पर दबाव बनाए तो कम से कम जनता के हित के कामों में धन की कमी आड़े नहीं आएगी.
केन्द्र ने किसानों से जुड़ी योजना भावांतर के 1027 करोड़, गेहूं उपार्जन के 1500 करोड़, कृषि विकास के 268 करोड़ सहित करीब 9 हजार करोड़ रुपए रोक रखे हैं. बीजेपी सांसद जनता के बीच जाएंगे तो उनकी समस्याएं दूर करवाने की पहल करनी होगी और केन्द्र सरकार पर दबाव बनाना होगा. इसलिए, वे परिदृश्य से बाहर हैं.
श्रेय की दावेदारी, याद दिलाए जा रहे बीजेपी के घोटाले
लंबे इंतजार के बाद आखिर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इंदौर में मेट्रो का शिलान्यास कर दिया. यह योजना शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते 2011 में अस्तित्व में आई थी मगर तब से लेकर अब इसमें कई तरह के अडंगे ही लगते रहे. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपनी प्राथमिकताओं में रख साल भर का कार्यकाल पूरा होने के पहले काम आरंभ करवा दिया. लेकिन, जैसा कि राजनीति में होता है, इस मामले भी श्रेय की राजनीति आरंभ हो गई.
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने बयान दिया कि मेट्रो की योजना उनके महापौर कार्यकाल में लाई गई थी. इस पर कांग्रेस ने तीखा हमला किया. उसने आरोप लगाया कि तब 45 किमी लम्बाई में मोनो यानी हवाई रेल का ठेका जिस बीसीडी फूड एंड ऑइल कंपनी को दिया था उसने ईरान की कम्पनी पोलोडेज को लाखों डॉलर का चूना लगा दिया. ईरानी कम्पनी ने मुंबई पुलिस से इसकी शिकायत की, जिसके बाद मुंबई पुलिस ने इंदौर आकर नगर निगम से इस घोटाले से संबंधित दस्तावेज भी जब्त किए. इस अंतरराष्ट्रीय जालसाजी में इंटरपोल पुलिस ने भी जांच-पड़ताल की थी. यह हवाई ट्रेन घोटाला बीजेपी के तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय के कार्यकाल में हुआ था.
जहां एक ओर कांग्रेस ने इस घोटाले को याद दिलाया वहीं मुख्यमंत्री कमलनाथ ने समारोह में कहा कि तत्कालीन बीजेपी सरकार के नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर ने जब डीपीआर बनाने में बड़े खर्च की बात की, तो मैंने मध्य प्रदेश के दोनों प्रमुख शहरों में मेट्रो रेल लाइन की डीपीआर बनाने के खर्च को केंद्रीय निधि से मंजूरी दी थी. इसके बाद डीपीआर तो बन गई थी लेकिन बीजेपी सरकार में यह रिपोर्ट फाइलों में दबी हुई थी. कांग्रेस नेता याद दिला रहे हैं कि बीजेपी नेता बाबूलाल गौर बार-बार मेट्रो में लेटलतीफी पर अपनी सरकार पर सवाल उठाते रहे मगर तब उनकी बात नहीं सुनी गई. अब श्रेय के लिए सब आगे आ रहे हैं.
भोपाल हादसे में अगर-मगर की राजनीति
भोपाल में गणेश विसर्जन के दौरान खटलापुरा घाट में 11 युवाओं की डूबने से मौत हो गई. इस हादसे के बाद कई सवाल उठे मगर सबसे ज्यादा राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप ही लगे. कहा गया कि घाट पर सख्ती होनी थी, पुलिस प्रशासन को लोगों को रोकना था, लापरवाही हुई. भोपाल नगर निगम में बीजेपी का महापौर है और परिषद भी बीजेपी की है तो उसकी कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठे.
जनसंपर्क मंत्री और स्थानीय विधायक पीसी शर्मा ने कहा कि वे देर रात 2 बजे दौरे पर गए थे मगर घाट से नगर निगम के कर्मचारी नदारद थे. सभी कांग्रेसी पार्षद और विधायक आरिफ मसूद ने भोपाल आईजी को हटाने की मांग रख दी. दोनों ही पार्टियों के नेताओं ने दोषारोपण तो किया मगर अपने गिरेबा में झांक कर न देखा. वे यह भूल गए कि राजनीतिक प्रश्रय से ही युवा और भीड़ नियम तोड़ते हैं. वे प्रशासन की हिदायतों और सख्ती को राजनीतिक दबंगता से किनारे कर देते हैं.
जब प्रतिमा की अधिकतम ऊंचाई 6 फीट तय कर दी गई थी तो क्यों नेताओं के प्रश्रय वाले पांडालों में 10 फीट से भी अधिक ऊंचाई की प्रतिमाएं लगाई जा रही हैं? वे अपने समर्थक युवाओं की भीड़ बनाने के लिए सार्वजनिक आयोजनों में नियमों को तोड़ने देते हैं और ऐसे हादसों पर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ व्यवस्थाओं को कोसने लगते हैं. भोपाल हादसे में भी यही हुआ परिषद बीजेपी की होने और प्रदेश में सरकार कांग्रेस की होने पर एक-दूसरे पर जवाबदेही मढ़ जिम्मेदारों ने व्यवस्था भगवान भरोसे छोड़ दी.