मप्र डायरी: आदिवासियों के लिए कमलनाथ का ‘मास्टर स्ट्रोक’
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले जयस नामक आदिवासी संगठन ने मालवा-निमाड़ सहित प्रदेश के अन्य आदिवासी इलाके में तेजी से पैर पसारे थे.
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और फिर जयस के मैदान में आने से आदिवासी मुद्दों पर राजनीतिक दलों का ध्यान केन्द्रित हुआ. बीजेपी ने जहां संघ के माध्यम से आदिवासी इलाकों में अपनी पैठ बनाई वहीं कांग्रेस लगातार अपना वर्चस्व खोती गई.
पिछले पन्द्रह सालों में आदिवासी समुदाय धीरे-धीरे तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रयासों व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की बिसात के चलते कांग्रेस से टूटकर बीजेपी के साथ चला गया था. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से आदिवासियों का बीजेपी से मोह भंग होने लगा.
यही कारण था कि 2018 के विधानसभा चुनाव में जयस के कारण आदिवासियों ने पिछले तीन विधानसभा चुनावों की तुलना में ज्यादा बढ़चढ़ कर भाग लिया. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आदिवासियों के बीजेपी से विमोह को भांप कर उनकी समस्याओं को हल करने में रूचि दिखाई है.
सूदखोरी की मार आदिवासियों की सबसे बड़ी परेशानी है और इस पर नकेल कस कमलनाथ ने मास्टर स्ट्रोक मारा है. कमलनाथ ने सूदखोरों के चुंगल से आदिवासियों को बाहर निकालने के लिए सूदखोरों से लिया कर्ज माफ कर दिया.
तय किया गया है कि आदिवासी परिवार में किसी बच्चे के जन्म पर 50 किलो चावल अथवा गेहूं दिया जाएगा. किसी की मृत्यु होने पर परिवार को एक क्विंटल चावल अथवा गेहूं दिया जाएगा. खाना बनाने के लिए उन्हें बड़े बर्तन भी उपलब्ध कराए जाएंगे. इस पहल ने जयस की मांगों को पूरा करते हुए उसके एजेंडे के आधार को ही खत्म कर दिया है. कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि इस पहल का असर नवंबर में होने वाले निकाय चुनाव में दिखाई देगा.
प्रज्ञा ठाकुर के कैमरा प्रेम की आलोचना
भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर अपने विवादास्पद बोल के कारण कई बार पार्टी को संकट में डाल चुकी हैं.
उनके इन्हीं बोलों के कारण उनके चुनाव को निरस्त करने की याचिका हाईकोर्ट में लगाई गई है. अब वे अपने कैमरा प्रेम के कारण चर्चा और आलोचना का केन्द्र बन गई है.
सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाने के दौरान कैमरा टीम साथ रखने वाली प्रज्ञा यह भूल गई कि अस्पताल के आईसीयू में कैमरा ले जाना उचित नहीं है.
जब वे आईसीयू में भर्ती बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर से मिलने पहुंची तो तमाम नियमों को दरकिनार कर आईसीयू में कैमरामैन अपने साथ ले गईं. वहां फोटोसेशन भी चला. उन्होंने गौर के सिर पर हाथ रखकर फोटो भी खिंचवाया और इन फोटों को ट्विटर पर शेयर किया. जब फोटो सोशल मीडिया में वायरल हुए तो प्रज्ञा की आलोचना होने लगी. प्रज्ञा के इस कैमरा प्रेम को भी पार्टी ने नजरअंदाज ही किया है.
उमा को देनी पड़ी सुषमा के निधन पर अनुपस्थिति पर सफाई
बीजेपी नेता पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती जब भोपाल पहुंची तो उन्हें पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के निधन पर श्रृद्धांजलि देने के पहले सफाई देनी पड़ी.
लंबे राजनीतिक जीवन में दोनों नेत्रियों के बीच मतभेद की चर्चाएं आम रही हैं.
उमा भारती ने मुख्यमंत्री पद से हटने और पार्टी छोड़ने के दौरान भी उस वक्त के शीर्ष नेताओं को लेकर नाराजगी जाहिर की थी. ऐसे में उमा भारती की दिल्ली में गैर मौजूदगी पर सवाल तरह तरह के कयास लगाए जा रहे थे.
राजनीतिक गलियारों में यही सवाल था कि सुषमा स्वराज को श्रद्धांजलि देने वे दिल्ली क्यों नहीं गईं? इन्हीं सवालों के बीच उमा भारती मुख्यमंत्री पद से हटने के करीब 14 साल बाद बीजेपी प्रदेश कार्यालय पहुंची और श्रृद्धांजलि सभा में इन प्रश्नों पर खुद ही जवाब दिया.
उमा ने कहा कि सुषमा स्वराज के निधन की खबर सुनकर मैं अस्वस्थ हुई और यही वजह है कि उनके अंतिम संस्कार में नहीं जा पाई. मैं अपनी बहन सुषमा स्वराज के निधन पर तीन दिन तक शोक मनाऊंगी। भावुक होते हुए उमा ने कहा कि वो मेरे से 9 साल बड़ी थीं, लेकिन मेरी मां जैसी थीं.