अफस्पा जितना खतरनाक है वन कानून का नया प्रस्ताव


new proposal in forest act is as dangerous as afspa

 

मोदी सरकार ने 1927 में लागू हुए भारतीय वन कानून में परिवर्तन का प्रस्ताव पेश किया है. इस प्रस्ताव के तहत 1927 के कानून को पूरी तरह से बदल दिया जाएगा.

मोदी सरकार ने जो प्रस्ताव पेश किया है उसके तहत वन अधिकारियों को असीमित शक्तियां मिल जाएंगी. इतनी कि वे कानूनी तौर पर किसी पर भी गोली तक चला सकेंगे. मौत हो जाने पर सामान्य कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई भी नहीं होगी.

1927 के वन कानून में इस परिवर्तन के प्रस्ताव के लिए केंद्र सरकार ने एक ड्राफ्ट तैयार किया है. इस ड्राफ्ट को 7 जून तक विभिन्न राज्य सरकारों के समक्ष सलाह मशविरे के लिए पेश किया जाना है. इस ड्राफ्ट में एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि वन अधिकारियों के पास वनों की ग्राम सभाओं के फैसले पर वीटो करने का अधिकार होगा.

इसके साथ ही इस ड्राफ्ट में वन अधिकार एक्ट(2006) को भी कमजोर करने का प्रस्ताव है. मतलब वन अधिकार एक्ट(2006) के तहत जिन आदिवासियों को विरासत के तौर पर वनों और वन संपदा के ऊपर संवैधानिक अधिकार मिला हुआ है, वो अब पूरी तरह से वन अधिकारियों के खाते में चला जाएगा.

वन अधिकारी अगर चाहेंगे तो ही आदिवासियों को उनका ये अधिकार देंगे. वहीं केंद्र ने यह प्रस्ताव भी रखा है कि राज्यों के वन मामलों में केंद्र सीधे तौर पर दखल दे सकेगा.

1927 में अंग्रेजी हुकूमत ने जो भारतीय वन कानून लागू किया था, वो पूरी तरह से आदिवासियों का दमन करने और वन संपदा को लूटने के लिए था. आजादी के बाद की सरकारों ने भी कमोबेश यही किया. ऐसे अनेक मामले हैं जिनमें इस कानून की आड़ में निर्दोष आदिवासियों को सताया गया.

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कानून मध्य भारत में नक्सलवाद को बढ़ावा देने के लिए बहुत हद तक उत्तरदायी है. इसके बाद भी सरकार ने इसे और अधिक जनविरोधी बनाने का प्रस्ताव रखा है.

यह 1927 के वन कानून का जनविरोधी चरित्र ही था कि भारत सरकार को मजबूर होकर 2006 में वन अधिकार एक्ट पास करवाना पड़ा था. इस एक्ट से यह कोशिश की गई थी कि आदिवासियों और दूसरे वनाश्रितों के साथ जो अन्याय हुआ है, उसे सुधारा जा सके.

वहीं दूसरी तरफ वन प्रशासन लगातार शिकायत करता रहा है कि जनसंख्या विस्फोट और विकास के नए मॉडल के बीच वनों का संरक्षण करने के लिए उसके पास पर्याप्त शक्तियां नहीं हैं.

बहरहाल, सरकार ने अपने इस प्रस्ताव में कहा है कि राज्य प्रशासन इस संशोधन के हिसाब से बंदी गृहों, हथियारों को जमा करने और आरोपियों के आवागमन के लिए जरूरी आधारभूत ढांचा विकसित करेगा.

इस प्रस्ताव के तहत पहले के कई जमानती अपराधों को गैर-जमानती बना दिया गया है. कई अपराधों में खुद को बेकसूर साबित करने की जिम्मेदारी अब आरोपी पर होगी. जब तक आरोपी खुद को बेकसूर साबित नहीं कर देगा, तब तक उसे अपराधी ही माना जाएगा.

वहीं इस ड्राफ्ट में वन अधिकारियों को असीमित शक्तियां देने का जो प्रस्ताव है वो अफस्पा के बराबर है.

इस प्रस्ताव में कहा गया है कि ड्यूटी के दौरान अगर अधिकारी पर किसी अपराध का आरोप लगता है तो उसे बिना जांच के ना तो गिरफ्तार किया जा सकता है और ना ही बर्खास्त किया जा सकता है. जांच करने के लिए राज्य सरकार उच्च कमेटी को नोटिफिकेशन भेजेगी. यहां तक राज्य सरकार के पास अधिकारी के खिलाफ जांच शुरू करने के लिए आदेश देने का सीधा अधिकार नहीं होगा. ऐसा करने के लिए राज्य सरकार को पहले एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट का निर्माण करना होगा.


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