शांति एक ऐसा शब्द है जो कश्मीर के लिए नहीं है!
मेरा जन्म कश्मीर में हुआ है और पिछले दो हफ्तों से मैं देख रही हूं कि मेरा जन्म स्थान तकलीफ में है.
जब तक संचार सेवाएं बंद थीं घाटी में ‘शांति’ थी. जैसे ही शनिवार को लैंडलाइन चालू हुआ वहां के हालात सामने आने लगे. हर जगह मैंने वहां की तस्वीरें देखी और वैचारिक लेख अपने जन्म स्थान के हालात के बारे में पढ़ा.
मुझे जहां से भी जो कुछ भी सूचनाएं मिली मैनें उन्हें एकत्रित किया जिससे पूरा परिदृष्य मुझे समझने में आसानी हुई.
खाली सड़कें, गलियां, फुटपाथ, बंद दुकानें, बंद व्यापारिक संस्थाएं, खौफ और इंतजार में स्तब्ध चित्त हैं.
यह कोई इतिहास की पहली घटना नहीं है जब लोगों को उनकी अपनी ही सरजमीं पर बंदी बनाया गया हो. जब ये कहीं दूसरी जगहों पर दूसरे लोगों के साथ होता था हम इसका विरोध करते थे. लेकिन इस बार ऐसा ठीक हमारे यहां हमारी अपनी सरजमीं पर अपने लोगों के साथ हो रहा है.
मेरे पिता को कश्मीर के महाराजा हरी सिंह ने बतौर शिक्षा निदेशक 1937 में आमंत्रित किया था. तब मेरे पिता से भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर जाकिर हुसैन ने इस निमंत्रण को स्वीकार करने का अनुरोध किया था. यह निर्णय मेरे माता-पिता के लिए आसान नहीं था क्योंकि उस समय मेरे पिता अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शिक्षा विभाग के डीन थे और वह एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे.
अगले सात साल तक मेरा परिवार श्रीनगर में रहा.
मेरे पास तस्वीरें हैं जिनमें मेरे पिता घुड़सवारी करते हुए दूर-दराज के इलाकों के स्कूलों का निरीक्षण करते हुए देखे जा सकते हैं.
मेरे पिता ने अपने ऑटोबायोग्राफी में उन सात सालों का ज्यादा वर्णन किया है बनिस्बत के अपने 40 साल के लंबे करियर के जोकि उन्होंने एक शिक्षाविद के रूप में व्यतीत किया था.
कश्मीर का उनके लिए क्या मायने है और कश्मीर के लिए वो क्या मायने रखते हैं इसका मुझे तब एहसास हुआ जब तीन साल पहले मैं डॉल्फिन स्कूल की नई इमारत के उद्घाटन करने गई.
अपने पिता की मृत्यु के लगभग 50 साल बाद वहां के लोगों ने मेरे पिता द्वारा किए गए कार्यों की तारीफ की जो उन्होंने घाटी के सुदूर इलाके में किया था. यही मेरे प्यार का रिश्ता कश्मीर से है.
अनुच्छेद 370 और 35ए के इतिहास का वर्णन इसके विशेषज्ञों ने की है. इसलिए इस विषय में जाने की जरूरत नहीं है. संचार के अलग-अलग माध्यमों में इसपर बहुत कुछ कहा और लिखा जा चुका है.
मेरे लिए ज्यादा जरूरी है जो कुछ वहां के लोगों ने शारीरिक और मानसिक रूप से झेला और भुगता है.
एक नागरिक रिपोर्ट ‘कश्मीर केज्ड’ को पिछले दिनों मैने पढ़ा. इस रिपोर्ट को उन चार लोगों ने लिखा है जो दुनिया के सबसे ज्यादा सैन्यकृत क्षेत्र में पांच दिन गुजार कर लौटे हैं. ये बहादुर लोगों का एक छोटा सा समूह, एक घर से दूसरे घर, एक गली से दूसरी गली जाकर लोगों से सवाल किया. सुरक्षा की चिंता किए बगैर लोगों को भरोसा दिलाया और दुनिया के सामने सच बोलने का साहस किया.
“जब नीतीश कुमार ने शराबबंदी की थी उन्होंने किसी शराबी से नहीं पूछा था यहां भी परिस्थिति वैसी ही है.” ये शब्द किसी और के नहीं बीजेपी के प्रवक्ता के हैं. कुछ इसी तरह एक पूर्व विदेश सचिव ने एक कश्मीरी लड़की से कहा कि जहां तक आर्थिक विकास का सवाल है कश्मीर अभी भी पाषाण काल में है. हैरत होती है उन कुछ राजनेताओं और अधिकारियों की कश्मीर की समझ तथा उनके अंदर तिरस्कारपूर्ण भावना की जो वो कश्मीर के लिए रखते हैं.
कश्मीरियों की परिष्कृत कला, साहित्य, शिल्प, पाक कला विश्व स्तरीय है. इम्पीरिकल डाटा से ये साबित है कि कश्मीर देश के कई राज्यों से विकास के मामले में ऊपर है. अर्थशास्त्र के विद्वानों ने इसे कई बार सार्वजनिक मंचों से कहा है.
पैलेट गन से घायल जख्मी हॉस्पीटल में लाए जा रहे हैं. महिलाएं हॉस्पिटल जाने के रास्ते में ही बच्चे को जन्म दे रही हैं. लगभग 10 हजार महिलाएं और पुरुषों ने नौ अगस्त को सोरा में प्रदर्शन किया. जिसमें बहुत से प्रदर्शनकारी जो पैलेट गन के शिकार हुए उन्हे हॉस्पिटल लाया गया.
सैकड़ों राजनैतिक कार्यकर्ता और सिविल राइट एक्टिविस्ट गिरफ्तार किए गए और सबसे खतरनाक कि सैकड़ों टीन एजर लड़के बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर लिए गए. माता-पिता डरे हुए है कि कहीं उनके बच्चे का नाम भी उन हजारों गायब लोगों की सूची में न शामिल हो जाए. उनको डर है कि उनके बच्चे को भी ‘मास ग्रेव’ में न दबा दिया जाए.
कश्मीर खामोश है. बंदूक की खामोशी, कब्रिस्तान की खामोशी, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है.
नागबल में एक लड़की ने टीम से कहा, “कैसे हम ईद मना सकते हैं? हमारे भाई पुलिस कस्टडी में हैं.
यहां कानून है कि अपनी जरूरत के लिए लोग सिर्फ आधे घंटे के लिए घर से बाहर रह सकते हैं. इसलिए 29वें मिनट से उन्माद का काउंटडाउन शुरू हो जाता है. तभी एक टैक्सी चालक जो अपने पिता के लिए इनहेलर लेने गया था सुरक्षा बल के द्वारा उसे घसीटा गया. उससे इनहेलर छीनकर से पैर तले कुचल दिया गया.
टैक्सी चालक ने कहा, “उनके अंदर का गुस्सा था जो उन्होंने इनहेलकर को पैरों तले रौंद कर जाहिर किया.”
पार्टियां जो अभी भारतीय राज्य की तरफदारी करती थी उनको देखिये वे आज अपमानित महसूस कर रही हैं.” एक व्यक्ति ने कहा.
35ए का मतलब जमीन सस्ती दामों पर अडानी और पतंजलि को बेची जाएंगी.
“कांग्रेस ने हमारी पीठ में छूरा भोंका, इन्होंने सामने से.”
“इन लोगों ने 370 खत्म किया अब हमारा रिश्ता भी खत्म. हमें अकेला छोड़ दीजिए.”
एक अंधेरी फिल्म से आवाज उठी- मैं एक कश्मीरी पंडित हूं. कहां है मेरी कश्मीरियत? हम लोग अपने सभी त्यौहार साथ-साथ मनाया करते थे. ईद, होली, दिवाली.” बैकग्राउंड से आवाज आई, “वी वांट फ्रीडम, आर्टिकल 370 वापस करो.”
कश्मीर सुलग रहा है. हालात सामान्य नहीं है. जैसा कि मीडिया में दिखाया जा रहा है. सामान्य एक ऐसा शब्द है जिसे मिटा देना चाहिए क्योंकि गुस्सा सतह के अन्दर ही अन्दर उबल रहा है.
किसी कवि की ये पंक्तियां सारे हालात को बयान कर रही है.
बर्फ गिरती है बर्फ गिरने दो
बर्फ गिरने दो रहगुजारों पर
बर्फ गिरने दो कोहसारों पर
आग कश्मीर की चिनारों की
है अमीन आतिशीं बहारों की
बर्फ इसको दबा नहीं सकती
फिर ये गर्मी जुमूद तोड़ेगी
सारे माहौल को झिंझोरेगी
बर्फ गिरती है बर्फ गिरने दो
डॉक्टर सैयदा हमीद (लेखिका और ट्रस्टी समृद्ध भारत फाउण्डेशन)
रेयाज अहमद (फेलो, मुस्लिम वीमेंस फोरम)