लोगों के गले पड़ी “अटल पेंशन योजना”
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चार साल पहले मई, 2015 में शुरु हुई ‘अटल पेंशन योजना’ (एपीवाई) नौकरियों के अकाल के बीच कई लोगों के लिए मुसीबत बनती जा रही है.
एपीवाई के मुताबिक हस्ताक्षरकर्ता योजना के तय समय से पहले केवल दो परिस्थितियों में ही योजना को बीच में छोड़ सकता है. पहला हस्ताक्षरकर्ता को कोई घातक बीमारी हो जाए या दूसरी स्थिति ये हो सकती है कि हस्ताक्षरकर्ता की पत्नी या पति की 60 वर्ष की आयु से पहले मौत हो जाए.
इन परिस्थितियों में हस्ताक्षरकर्ता के परिवार को रखरखाव शुल्क काटने के बाद ब्याज के साथ रिफंड मिलता है.
पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण से आरटीआई के जरिए मिले आंकड़े दिखाते हैं कि एपीवाई के 1 करोड़ 54 लाख हस्ताक्षरकर्ताओं में से करीबन 6 लाख 60 हजार (4 फीसदी) लोगों ने पेंशन योजना बीच में ही छोड़ दी.
द टेलीग्राफ लिखता है कि कई हस्ताक्षरकर्ता अगल-अलग वजहों का हवाला देकर अब योजना से बाहर का रास्ता देख रहे हैं. हालांकि उनके लिए इस योजना से अब बाहर निकलना लगभग असंभव हो गया है. उनकी मांग है कि लोगों के पास योजना को बीच में ही छोड़ने का विकल्प होना चाहिए.
एपीवाई के बाद इस साल सरकार ने असंगठित क्षेत्र के लोगों (18-40 वर्ष के ) के लिए प्रधानमंत्री ‘मन धन योजना’ की शुरुआत की. योजना में सरकार ने 60 वर्ष की आयु के बाद प्रत्येक हस्ताक्षरकर्ता को 3000 रुपये प्रति माह देने का वादा किया है.
योजना के तहत 18 वर्ष के नौजवना को 60 वर्ष की आयु तक 55 रुपये प्रति माह योगदान करना है, 29-40 वर्ष के व्यक्ति को 100-200 रुपये प्रति माह देना होगा.
नौकरी के क्षेत्र में अस्थिरता और लंबी अवधि की योजना होने के चलते श्रम अर्थशास्त्रियों और कार्यकर्ताओं ने योजना की सफलता पर संशय व्यक्त किया है.
आरएसएस के मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ के महासचिव विरजेश उपाध्याय ने कहा, ‘नौकरी के क्षेत्र में अस्थिरता के चलते अटल पेंशन योजना को बीच में ही छोड़ने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है. संभव है कि मन धन योजना को भी काफी लोग हस्ताक्षर करने के बाद बीच में ही छोड़ दें. जब तक सरकार व्यक्ति को नौकरी की गारंटी नहीं देगी तब तक व्यक्ति योजना में नियमित योगदान की गारंटी कैसे दे सकता है. उनकी बचत बढ़ेगी तभी वो योजना के साथ जुड़े रह सकेंगे. फिलहाल उनकी कमाई योजना में योगदान देने के लिए पर्याप्त नहीं है.’
मन धन और अटल पेंशन योजना में मूलभूत तीन अंतर हैं.
1. मन धन में सरकार ने तय समय सीमा तक व्यक्ति के बराबर आधा योगदान देने का वादा किया है. जबकि एपीवाई में सरकार केवल पांच साल तक योगदान करेगी.
2. मन धन को हस्ताक्षरकर्ता कभी-भी छोड़ सकता है, हालांकि इसमें ये देखा जाएगा कि व्यक्ति योजना से जुड़ने के 10 वर्ष से पहले इसे छोड़ रहा है या उसके बाद, इसके आधार पर उसे ब्याज के साथ पैसा दिया जाएगा.
3. मन धन के मुताबिक हस्ताक्षरकर्ता और पति/ पत्नी की मौत के बाद पैसा किसी भी नामजद व्यक्ति को नहीं दिया जाएगा.
योजना को शुरू हुए अब महीना हो गया है और 30 लाख से ज्यादा लोग इससे जुड़े हैं. वहीं मामले के जानकार प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने मन धन योजना पर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं.
श्रम अर्थशास्त्री और नीति अनुसंधान संस्थान में प्रतिष्ठित फेलो अमिताभ कुंडू ने सरकार की ओर से मन धन में 50 फीसदी योगदान को ‘छल’ करार दिया है.
उन्होंने विस्तार से बताया कि ‘अगर 18 वर्ष का एक व्यक्ति 60 वर्ष की आयु तक (कुल 42 साल) योजना में 55 रुपये प्रति माह जमा कराता है तो इस बीच उसकी कुल जमा राशि करीब-करीब तीन लाख रुपये हो जाएगी.’
कुंडू ने कहा, ‘इस राशि पर 8.6 फीसदी की ब्याज दर (ईपीएफ के समान) के साथ व्यक्ति को 3000 हजार रुपये प्रति माह बनता है. (जीवन प्रत्याशा के फॉर्मूले के आधार पर भी राशि में कुछ हिस्सा जोड़ा जाता है.)’
वो कहते हैं कि ‘अगर सरकार भी योजना में 50 फीसदी योगदान दे रही है तो उसके बाद भी पेंशन 3000 रुपये प्रति माह है कैसे है. इसका मतलब ये हुआ कि सरकार राशि पर बहुत कम ब्याज दे रही है. असंगठित क्षेत्र की गरीब कर्मचारी एक समान संगठित क्षेत्र के कर्मचारी की तुलना में बेहतर रिटर्न मिलना चाहिए. आर्थिक रुप से संपन्न लोग जमा राशि पर 8.6 फीसदी का ब्याज प्राप्त करते हैं.
श्रम अर्थशास्त्री रवि श्रीवास्तव ने कहा कि ‘इतनी लंबी अवधि के बाद व्यक्ति को केवल 3000 हजार रुपये प्रति माह मिलना उस वक्त के हिसाब के कम होगा. क्योंकि तब तक मंहगाई भी बढ़ जाएगी.’
सभी के लिए गैर-अंशदायी पेंशन की मांग करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और पेंशन परिषद के अध्यक्ष निखिल डे ने कहा, ‘असंगठित क्षेत्र के कर्मचारी से आप नियमित योगदान देने की उम्मीद नहीं कर सकते. उनकी आय बंधी हुई नहीं है. उनके लिए ये संभव नहीं कि वो हर महीने 30-40 साल तक पैसे जमा करें.’
उन्होंने मांग की कि सरकार को सभी वृद्ध, विकलांग और विधवाओं को अपने बजट पर पेंशन देनी चाहिए.