नहीं मिल रहा है आंगनवाड़ी सेविकाओं को उनका हक
देश भर की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता पिछले चार साल से लगातार अंदोलनरत हैं. हाल ही में 25 फरवरी 2019 को भी देश भर की आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने जंतर मंतर पर अपने अधिकारों के लिए हल्ला बोला था. जबकि 5 फरवरी को हरियाणा में 800 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं ने गिरफ्तारियां देकर अपना प्रतिरोध दर्ज करवाया. उनके नारों से स्पष्ट पता चलता था कि केंद्र और राज्य सरकारों को प्रति उनमें किस हद तक गुस्सा भरा हुआ है.
भारत में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं के साथ बच्चों को प्री-स्कूल एजूकेशन का भी जिम्मा आंगनबाड़ी केन्द्रों के हवाले है. आज पूरे देश में 13 लाख से ज्यादा आंगनबाड़ी केन्द्र हैं, जिसमें 25 लाख से ज्यादा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता कार्यरत हैं. आंगनबाड़ी कार्यक्रम समेकित बाल विकास योजना के तहत आती है और इसे भारत सरकार का महिला एव बाल विकास मंत्रालय चलाता है. देशभर की आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने हमसे अपनी समस्याएं साझा की है.
मंजू Pic Courtesy: Sushil Manav
उत्तरप्रदेश के फूलपुर की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता मंजू ने कहा, “पीएम ने महिलाओं और बच्चों को धोखा दिया है. कुछ न करने वाले सांसदों का वेतन डेढ़ लाख रुपए है और हमारा वेतन साढ़े तीन हजार. हमें जब पैसा देना होता है तो सरकार हमें समाजसेवी बताती है और जब हमसे काम लेना होता है तो हमें सरकारी कर्मचारी बताया जाता है. तो हमारी मांग है कि हमें सरकारी कर्मचारी मानकर मानदेय दिया जाए और उसके अनुसार है सारी कमोडिटी भी प्रदान की जाए.”
उत्तर प्रदेश के फाफामऊ की उमा देवी अपनी परेशानी बयां करती हैं, “न्युट्रिशन मिलने के दो महीने बाद चीनी आती है. फ्लेक्सिबल फंड भी बंद कर दिया गया है. हमारी मीटिंग पर ध्यान नहीं दिया जाता, हम अपनी बात कहां रखें. ये सरकार आंगनवाड़ी कार्यक्रम ही बंद करना चाह रही है. कहीं कहीं इसका निजीकरण भी किया जा रहा है.”
गोदावरी देवी Pic Courtesy: Sushil Manav
मंडी हिमाचल प्रदेश की गोदावरी देवी पिछले 34 वर्षों से बतौर आंगनवाड़ी वर्कर अपनी सेवाएं दे रही हैं. वो बताती हैं कि हमें तमाम सरकारी योजनाओं के सर्वे और पंजीकरण के लिए जाना पड़ता है. बच्चा कंसीव करने से लेकर उसके छह साल होने तक की सारी जिम्मेदारी हमें देखनी होती है. इसके अलावा हिमाचल सरकार ने एक नया नाटक शुरू कर दिया है गर्भवती औरतों की गोदभराई का. खाली हाथ तो गोदभराई होती नहीं. पर इसके लिए वो पैसे भी नहीं देते कहते हैं समुदाय या पंचायत से पैसा इकट्ठा करो या जेब से लगाओ जैसे भी करो पर गोदभराई करो. हमें गांव में गर्भवती औरतों की गोदभराई करने जाना पड़ता है. इसके अलावा बच्चा होने पर हमें बधाई देने भी जाना होता है. खाली हाथ बधाई दी जाती है क्या, नहीं ना. इसके लिए भी हमें पैसे पंचायत या समुदाय से मानेज करने या खुद से मैनेज करके बधाई देने जाना होता है. इसके अलावा हमें जिन लोगों का आधार कार्ड नहीं बना उनका आधारकार्ड बनवाना होता है. अब हम लोगों की ड्युटी बतौरी बीएलओ भी लगा दी गई है. गोदावरी बताती हैं कि इसके अलावा हमें महीने में 22-25 रजिस्टर मेनटेन करने और रिपोर्ट बनाना होता है. अब हिमाचल सरकार का नया फ़रमान है कि ऑनलाइन रिपोर्ट बनाओ.
हिमाचल प्रदेश की मंडी से ही आई राजकुमारी बताती हैं कि वो 35 वर्षों से बतौर आंगनवाड़ी वर्कर काम कर रही हैं और वो हिमाचल प्रदेश आंगनवाड़ी वर्कर की स्टेट जनरल सेक्रेटरी हैं. वो बताती हैं कि बीमार होने पर हमें कुछ भी नहीं मिलता. 60 वर्ष की उम्र में रिटायरमेंट के बाद खाली हाथ घर भेज दिया जाता है. हमें ग्रेच्युटी पेंशन कुछ भी नहीं मिलता.
बिहार के गया जिले की शोभा सिंह 12 वर्षों से आंगनवाड़ी वर्कर हैं. वो बताती हैं कि सन 2016 में हमें 10 महीने का वेतन नहीं मिला है. मांगने पर नीतीश सरकार कहती है कि सब दे दिया है.
परमीला देवी 1987 में आंगनवाड़ी में नियुक्त हुई और 34 वर्षों से लगातार काम कर रही हैं. उस समय उन्हें 125 रुपये वेतन मिलता था. जो बढ़ने के बाद 3700 रुपये हो गया था. लेकिन कुछ महीने देने के बाद सरकार ने उसमें भी 700 रुपए की कटौती कर ली है.
परमीला देवी Pic Courtesy: Sushil Manav
मनोरमा कुमारी सन 1983 से लगातार बतौर आंगनवाड़ी वर्कर काम कर रही हैं. वो कहती हैं कि अब तो हम रिटायर होने की कगार पर पहुंच रहे हैं. हमें जितना पैसा मिलता है उतने में हम न तो अपने बच्चों को ठीक से पढ़ा पाते हैं न ही खिला पाते हैं. हमारे बच्चे भी कुपोषण के शिकार हैं. वो कहती हैं कि क्या क्या लगातार 36 साल काम करने के बाद भी हम स्थायी किए जाने और पेंशन पाने के योग्य नहीं.
हिमाचल प्रदेश के मंडी की आशा देवी 18 वर्ष से आंगनवाड़ी में काम कर रही हैं. वो बताती हैं कि हमें 4500 रुपये वेतन दिया जाता है. इसमें 3000 केंद्र देती है और 1500 राज्य सरकार. लेकिन हमें हमारा वेतन नियमित नहीं मिलती.
पलवल की प्रेमवती बताती हैं कि हम गर्भवती महिलाओं गर्भ में आने के बाद से छह साल तक बच्चे का पूरा ध्यान रखना पड़ता है. टीका से लेकर उसका आधार कार्ड बनवाने तक का सारा काम हमारे जिम्मे है. प्रेमवती 30 साल से काम कर रही हैं लेकिन उन्हें नहीं पता कि उनका वेतन कितना है कभी कुछ आता है तो कभी कुछ.
फरीदाबाद की बबिता कहती हैं कि हमारा वेतन कभी भी समय पर नहीं मिलता. पैसा भी जो आता है वो कभी डेढ़ हजार, कभी दो हजार तो कभी तीन हजार. हमें आज तक तो यही नहीं पता चल पाया कि सरकार हमारे काम के कितने पैसे देती है. सरकार एक ओर तो महिला सशक्तिकरण के दावे करती है दूसरी ओर हम आंगनवाड़ी महिलाओं का शोषण करती हैं.
हमने देशभर की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं से बातचीत की, उनकी बातों से तीन बातें निकलकर सामने आईं. पहली ये कि सरकार उनके साथ शोषणपूर्ण व्यवहार करती हैं और उनके श्रम का बहुत कम मूल्य देती हैं. साथ ही सरकार पेमेंट करते समय उनके काम का अवमूल्यन कर देती है, इसके चलते भी उनमें गहरा आक्रोश है.
दूसरी बात ये कि आंगनबाड़ी महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर सचेत हैं और वो सरकार से अपने लंबे सेवा कार्य के बदले सामाजिक सुरक्षा चाहती हैं.
तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात जो आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से बात करते हुए निकलकर आई वो ये कि ये मौजूदा केंद्र सरकार महिलाओं को लेकर चाहे जितनी बातें कहे पर चरित्र में ये सरकार महिला विरोधी है और आंगनबाड़ी की महिलाएं अपने वर्तमान दशा के लिए सरकार को जिम्मेदार मानती हैं और उनके विरोध में खड़ी हैं.