जेएनयू में फीस बढ़ोतरी के खिलाफ प्रदर्शन जारी, गरीब छात्रों को पढ़ाई छूट जाने का डर
राहुल 16 साल की उम्र से अपनी पढ़ाई का खर्चा उठाने और अपनी तलाकशुदा मां की घर चलाने में मदद करने के लिए छोटे-मोटे काम कर रहे हैं.
दसवीं पास करने के बाद ही राहुल ने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया, बाद में उन्होंने एक ईंट के भट्ठे पर मजदूर और एक बेकरी में सफाईकर्मी के रूप में काम किया. राहुल की मां लोगों के घरों में काम कर प्रतिदिन 200 रुपये कमा लेती हैं.
राहुल के भाई और बहन, मां के साथ बिहार के भागलपुर जिले में किराए के घर में रहते हैं.
अपनी आंखों में प्रोफेसर बनने का ख्वाब लिए राहुल को तब बहुत खुशी हुई, जब 2016 में उनका दाखिला दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विभाग में एमफिल कोर्स में हो गया.
पढ़ाई छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं
पिछले लगभग एक महीने से राहुल जेएनयू के हजारों छात्रों के साथ हॉस्टल और दूसरी सुविधाओं की फीस में बढ़ोतरी का विरोध कर रहे हैं. उन्हें डर है कि फीस बढ़ने से उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ सकती है.
वर्तमान में राहुल अपने हॉस्टल और खाने पर 2500 रुपये प्रति महीने खर्च कर रहे हैं. फीस में बढ़ोतरी हो जाने पर यह खर्चा लगभग 8000 रुपये प्रति महीना हो जाएगा.
राहुल ने बताया, ‘मुझे शोध के लिए 5000 रुपये प्रति महीना स्कॉलरशिप मिलती है. मैं फीस में बढ़ोतरी को वहन नहीं कर पाउंगा. अगर यह आदेश वापस नहीं लिया गया तो मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी.’
फीस बढ़ोतरी के खिलाफ प्रदर्शन करते जेएनयू के छात्र
झारखंड के बोकारो शहर से आने वालीं 25 वर्षीय गीता कुमारी भी जेएनयू से एमफिल कर रही हैं. गीता के पिता चाय का स्टॉल चलाकर प्रति महीने 10 हजार रुपये कमाते हैं. उनकी मां घर का काम करती हैं.
गीता कुमारी ने बताया कि वे उच्च शिक्षा हासिल करने वाली अपने परिवार से पहली महिला हैं. उन्होंने बताया कि ऐसा जेएनयू के ‘डेप्रिवेशन प्वाइंट्स मॉडल’ की वजह से संभव हो पाया है. इस व्यवस्था के तहत पिछड़े इलाकों से आने वाले अभ्यर्थियों, खासकर महिला अभ्यर्थियों को यूनिवर्सिटी में प्रवेश के लिए प्राथमिकता दी जाती है.
गीता कुमारी अपनी पढ़ाई के साथ-साथ ट्यूशन पढ़ाकर और अलग-अलग वेबसाइटों के लिए लिखकर महीने के तीन से पांच हजार रुपये तक कमाती हैं. अपनी कमाई से वे कुछ पैसे घर भी भेजती हैं.
गीता कहती हैं, ‘वो एक से दो हजार रुपये मेरे परिवार के लिए बहुत मायने रखते हैं. मुझे पता है कि दिल्ली में ये रकम लोगों के लिए कुछ भी नहीं है. घर के आर्थिक हालत देखकर घरवाले जेएनयू में मेरे प्रवेश को लेकर काफी चिंतित थे.’
गीता आगे कहती हैं, ‘घरवाले चाहते थे कि मैं एक नौकरी लेकर शादी कर लूं. अब तो जेएनयू जैसे संस्थानों पर भी निजीकरण का खतरा मंडरा है.’
कई हफ्तों से चल रहे छात्रों के विरोध प्रदर्शन के चलते विश्वविद्यालय प्रशासन ने आंशिक रूप से फीस बढ़ोतरी का फैसला वापस ले लिया. लेकिन छात्रों ने इसे पूरी तरह से नाटक बताकर अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखा.
आंशिक रूप से वापस लिए गए इस फैसले में सिंगल सीटर हॉस्टल रूम का किराया 600 रुपये से घटाकर 300 रुपये कर दिया गया और इसी तरह डबल सीटर हॉस्टल रूम का किराया 300 रुपये से घटाकर 150 रुपये कर दिया गया. इससे पहले यह किराया क्रमश: 20 रुपये और 10 रुपये था.
छात्रों का जोरदार विरोध प्रदर्शन
18 नवंबर को हजारों जेएनयू छात्र संसद की ओर मार्च करते हुए निकले. रास्ते में उनके ऊपर पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स ने लाठी चार्ज किया. करीब 100 छात्रों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया.
भारत में इस समय प्रति व्यक्ति औसत आय 10,534 रुपये प्रति महीना है. देश वर्तमान में भीषण आर्थिक गैर-बराबरी से जूझ रहा है.
फाइनेंशियल सर्विस कंपनी क्रेडिट सुइस द्वारा जारी ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट, 2019 में बताया गया कि भारत की 78 प्रतिशत वयस्क जनसंख्या के पास 10 हजार डॉलर से कम संपत्ति है. वहीं देश की 1.8 प्रतिशत सबसे अमीर वयस्क जनसंख्या के पास एक लाख डॉलर से अधिक की संपत्ति है.
वहीं कंपनी ने 2018 में जारी ऐसी ही रिपोर्ट में बताया कि भारत के 10 प्रतिशत सबसे अमीर के लोगों के पास देश का 77.4 प्रतिशत धन और नीचे के 60 प्रतिशत लोगों के पास केवल 4.7 प्रतिशत धन है.
जेएनयू की वार्षिक रिपोर्ट, 2017-18 के अनुसार इस अकादमिक वर्ष में विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने वाले 1,556 छात्रों में से 40 प्रतिशत छात्र निम्न आय वर्ग के थे. उनके परिवार की आय 12,000 रुपये प्रति महीने से कम थी.
छात्र को हिरासत में लेती पुलिस
छात्रों का साफ-साफ कहना है कि फीस में थोड़ी सी भी बढ़ोतरी का मतलब वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों पर हमला है.
विरोध कर रहे छात्रों को जेएनयू के शिक्षकों से पूरा समर्थन मिल रहा है. शिक्षकों ने 19 नवंबर की शाम को कैंपस में रैली निकालकर फीस बढ़ोतरी के प्रस्ताव को वापस लेने की मांग की.
जेएनयू के प्रोफेसर अविजित पाठक ने कहा, ‘इतने सारे छात्र इसलिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं क्योंकि बढ़ी हुई फीस लागू हो जाने पर अगले सेमेस्टर में इनमें से 40 प्रतिशत छात्रों को पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी. योजना सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को बंद करने की है.’
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के महासचिव सुरजीत मजूमदार ने कहा, ‘सरकार स्व-वित्तपोषण मॉडल को थोपने की कोशिश कर रही है. इस मॉडल के तहत हॉस्टल चलाने के सारे खर्चे जिनमें पानी-बिजली के बिल से लेकर मेंटनेंस चार्ज और हॉस्टल कर्मचारियों की तनख्वाह शामिल है, छात्रों को उठाने पड़ेंगे.’
छात्रों के समर्थन में जेएनयू के शिक्षक
वहीं बीजेपी के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने जेएनयू हॉस्टल फीस बढ़ोतरी का बचाव करते हुए कहा कि दशकों से इसमें बढ़ोतरी नहीं हुई.
उन्होंने कहा, ‘कमरों का 10 रुपये और 20 रुपये प्रति महीने किराया बहुत कम है. इसे बदलना जरूरी है.’
हालांकि, छात्रों के भारी विरोध प्रदर्शन के बाद सरकार को उनकी मांगे सुनने के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
राव ने कहा, ‘देश के दूसरे केंद्रीय विश्वविद्यालयों में छात्र हॉस्टल से जुड़े लगभग सभी खर्चे खुद देते हैं. जेएनयू में फीस बढ़ोतरी का जो फैसला लिया गया है उसमें गरीब छात्रों को ध्यान में रखते हुए पहले से पचास प्रतिशत की कटौती कर दी गई है. छात्रों का विरोध प्रदर्शन पूरी तरह से अतार्किक और स्वीकार ना किए जाने वाला है.’
राव ने वामपंथी पार्टियों द्वारा छात्रों को इस्तेमाल किए जाने का भी आरोप लगाया.
उन्होंने कहा, ‘छात्रों द्वारा तोड़-फोड़ और हिंसक विरोध प्रदर्शन करने से उनकी छवि खराब हुई है. फीस में जो थोड़ी सी बढ़ोतरी हुई उसे व्यापक जनसमर्थन मिला है और जेएनयू के छात्र जनता की अदालत में हार चुके हैं.’
असल में जेएनयू लंबे समय से वामपंथी एक्टिविज्म का केंद्र रहा है और यहां से देश के ज्यादातर प्रसिद्ध अकादमिक और एक्टिविस्ट निकले हैं.
‘शिक्षा हमारा मूल अधिकार’
2014 में जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तब से बहुत लोगों ने उनके और उनकी सरकार के ऊपर सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को निशाना बनाने और अभिव्यक्ति की आजादी को खत्म करने का आरोप लगाया है.
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (एमएल) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने केंद्र सरकार के ऊपर शिक्षा का निजीकरण कर अपने चहेते कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया.
उन्हें डर है कि अगर छात्रों के भारी विरोध प्रदर्शन के बाद भी बढ़ी हुई फीस लागू हो जाती है तो जल्द ही दूसरे विश्वविद्यालयों में भी यही नीति लागू कर दी जाएगी.
दीपांकर ने कहा, ‘सार्वजनिक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च करने का मतलब टैक्स देने वालों के पैसों की बरबादी करना नहीं होता. सरकार ना जाने कितने कॉरपोरेट्स का लाखों करोड़ों का कर्ज माफ कर चुकी. अगर यह ढ़ंग से वसूला जाए तो इससे जेएनयू जैसे सैंकड़ों संस्थान चल सकते हैं.’
जेएनयू की प्रोफेसर निवेदिता मेनन ने कहा, ‘भारत सरकार में मौजूद बहुत से लोग जेएनयू को अपने रास्ते का सबसे बड़ा पत्थर मानते हैं क्योंकि यह देश में दक्षिणपंथी ताकतों के अनवरत विरोध के लिए जाना जाता है.’
इस बीच जेएनयू की एक कैंटीन में चाय के कप के साथ बैठी हुई गीता कुमारी सोच रही हैं कि शिक्षा कोई वस्तु नहीं है, जिसे सरकार बेच सकती है.
वे कहती हैं, ‘शिक्षा हमारा मूल अधिकार है और आर्थिक पृष्ठभूमि को किनारे रखकर यह सबको निशुल्क मिलनी चाहिए.’