पटरी से उतरती “हार्ड वर्क इकोनॉमिक्स”
रघुराम राजन ने एक महत्त्वपूर्ण भाषण दिया. मगर इस बात से संभवतः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय जनता पार्टी और उसके समर्थक सहमत नहीं होंगे. संभावना यही है कि इन बातों को वो “हार्वर्ड इकॉनोमिक्स” से जुड़ी समझ बताकर खारिज़ कर देंगे. आखिर ऐसी समझ की “हार्ड वर्क इकोनॉमिक्स” में कोई जगह नहीं है, जिसे आधार पर बनाकर मोदी सरकार ने देश को चलाया है. बहरहाल, “हार्ड वर्क इकोनॉमिक्स” से देश की अर्थव्यवस्था का जो हाल हुआ है, उसकी असलियत से परिचित लोग ज़रूर ही राजन की कई बातों पर गौर करना चाहेंगे.
भारतीय अखबारों ने नोटबंदी और जीएसटी के असर के बारे में कही गई राजन की बातों को ज्यादा अहमियत दी है. यह उचित भी है. अर्थव्यवस्था के बहुत बड़े हिस्से पर इन दोनों कदमों का बहुत बुरा असर हुआ. उससे करोड़ों लोगों का जीवन बदहाल हुआ.
विपक्ष नोटबंदी को ‘गुमराह और दुस्साहसी’ कदम बताता रहा है. साथ ही जीएसटी लागू करने के कथित गलत तरीकों को आधार बनाकर उसने सरकार के खिलाफ हमलावर रुख अपना रखा है. ऐसे में मीडिया का ध्यान इनसे जुड़ी बातों ने अधिक खींचा, तो यह लाजिमी ही है. राजन ने कहा कि लगातार लगे नोटबंदी और जीएसटी के “सदमों” का भारत की आर्थिक वृद्धि पर गहरा कुप्रभाव पड़ा. वैसे अब इस बात को भारत सरकार और सत्ताधारी दल के अलावा बाकी हर हलके में मान लिया गया है.
अतः दीर्घकालिक नज़रिए से देखें तो राजन की कुछ दूसरी बातें कहीं ज़्यादा अहम हैं. मसलन, यह कि भारतीय अर्थव्यवस्था का तकरीबन सात प्रतिशत की दर से विकसित होना पर्याप्त नहीं है. उन्होंने दो-टूक कहा कि इस दर से विकसित होते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था मांग के मुताबिक रोजगार के अवसर पैदा नहीं कर सकती.
उन्होंने उचित ही ध्यान दिलाया कि भारत की क्षमता सात फीसदी से कहीं ज्यादा ऊंची दर से विकसित होने की है. ऐसे में हम इसी स्तर पर टिके रहे, तो यही माना जाएगा कहीं कुछ गड़बड़ है.
आखिर वो गड़बड़ियां क्या हैं, जिनकी वजह से भारत की आर्थिक वृद्धि दर इसी स्तर पर सीमित हो गई है? राजन के मुताबिक इसका प्रमुख कारण बुनियादी ढांचा विकास की बदहाल स्थिति, बिजली सेक्टर में अवरोध और बैंकिंग सेक्टर की गहराती गई समस्या है.
जाहिर है, उनकी राय में समाधान यह है कि इन क्षेत्रों की दिक्कतों को दूर करने पर तुरंत ध्यान दिया जाए. राजन की इन बातों का निष्कर्ष है कि उच्च विकास दर हासिल करने पर गर्व और उसको लेकर सरकार की तरफ से किए जाने वाले तमाम बड़बोले दावे सिरे से निराधार हैं.
मगर उनकी सख्त-बयानी यहीं तक नहीं है. ये मसले गहराते गए हैं, तो इसका दोष उन्होंने वर्तमान सरकार की निर्णय प्रक्रिया में ढूंढा है.
राजन ने कहा, “भारत को केंद्र से नहीं चलाया जा सकता. भारत तब ठीक से चलता है, जब जिम्मेदारी का बोझ उठाने वाले बहुत-से लोग हों. और आज केंद्र सरकार अत्यधिक केंद्रीकृत है.”
अब सरकार की कार्य-प्रणाली की इससे बड़ी आलोचना और क्या हो सकती है? बहरहाल, अनुमान लगाया जा सकता है कि “हार्ड वर्क इकोनॉमिक्स” में यकीन रखने वाले लोग इस पर ध्यान नहीं देंगे.
मगर उन लोगों को जरूर ही इन बातों पर गौर करना चाहिए, जो सचमुच अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाना चाहते हैं. और उनमें आज के विपक्षी दल भी शामिल हैं, जो अगले साल सत्ता में आने के समीकरण तैयार करने में जुटे हैं. देश की दिलचस्पी सिर्फ इसमें नहीं है कि वे सत्ता में आएंगे या नहीं. बल्कि आम जन की अधिक रुचि इसमें है कि सत्ता में आए, तो वो क्या करेंगे. फिलहाल अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भावी पहल के कुछ सूत्र वे राजन की राय में तलाश सकते हैं.