आरबीआई और सरकार के बीच फैसले की घड़ी


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रिजर्व बैंक की बोर्ड मीटिंग 19 नवंबर को होने जा रही है. बोर्ड मीटिंग में सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे.

उनका लक्ष्य होगा कि वो सरकारी प्रस्ताव को बोर्ड मीटिंग में पास करवा सकें. सरकार नहीं चाहेगी कि उसके प्रस्ताव को आरबीआई खारिज कर दे या उच्च स्तरीय कमिटी को सौंप दे. बैंक और सरकार के बीच जारी इस तनाव में क्या होगा यह कहना अभी मुश्किल है.

मौजूदा आर्थिक तनाव के लिए सरकार आरबीआई को जिम्मेदार ठहरा रही है.

आरबीआई और सरकार के बीच तनाव की शुरुआत तब हुई थी जब सरकार ने रिजर्व बैंक से 3.20 लाख करोड़ रुपये बैंक के रिजर्व से सरकार को देने को कहा था. यह रिजर्व बैंक की सुरक्षित पूंजी भंडार की एक-तिहाई रकम है.

रिजर्व बैंक यह रकम सरकार को देने को राजी नहीं है. रिजर्व बैंक के गर्वनर उर्जित पटेल ने इसे रिजर्व बैंक की स्वायत्तता पर हमला भी बताया है. दरअसल सरकार आरबीआई एक्ट की धारा 7 का उपयोग कर यह रकम रिजर्व बैंक से लेना चाहती है.

मौजूदा सरकार का यह मानना है कि यह रिजर्व अन्य केंद्रीय बैंकों की तुलना में अधिक है. आरबीआई की कुल संपत्ति में आरक्षित रिजर्व का कुल हिस्सा 26.8 फीसदी है, जबकि कई कंद्रीय बैंकों पर किए गए अध्यन में पता चलता है कि यह चौदह फ़ीसदी है.

31 मार्च, 2018 को आरबीआई के कुल रिजर्व की बात करें तो करंसी, गोल्ड रिजर्व, संपत्ति विकास फंड, आरक्षित पूंजी, आकस्मिक निधि आदि मिलकार कुल 9.60 लाख करोड़ रुपये है.

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर सरकार को इतनी बड़ी रकम रिजर्व बैंक से मांगने की नौबत ही क्यों आई? इसे लेकर विपक्ष और अर्थशास्त्रियों ने लगातार मोदी सरकार की आलोचना की है.

रिजर्व बैंक पर केंद्र सरकार की ओर से पड़ते दबाव ने रिजर्व बैंक की सवायत्तता का भी सवाल खड़ा कर दिया है. अटकलें यह लगाई जा रही है कि 19 नवंबर को होने वाले बैठक में रिजर्व बैंक के गर्वनर उर्जित पटेल इस्तीफा भी दे सकते हैं.

पूर्व वित्त मंत्री पी चिंदबरम ने सरकार पर निशाना साधते हुए कुछ गंभीर सवाल भी खड़ा किए हैं –

1. 2013-14 के बाद से सारा वार्षिक अधिशेष सरकार के खाते में जाता रहा है. ऐसे में सरकार एक ऐसा मुद्दा क्यों उठा रही है जिसका समाधान पहले ही निकाला जा चुका है?

2. कुल रिजर्व को लेकर कोई भी अंतरराष्ट्रीय मानक नहीं है (कुल संपत्ति के अनुपात में). तो फिर किस आधार पर सरकार को ऐसा लगता है कि देश में आरबीआई का 26 प्रतिशत रिजर्व बहुत ज्यादा है?

3. जिन देशों के अध्ययन के आधार पर रिजर्व ज्यादा होने की बात कही जा रही है, क्या उन देशों और भारत की स्थिति (विनिमय दर अस्थिरता, मुद्रास्फीति, पूंजी प्रवाह) समान है?

4. क्या सरकार आरबाआई एक्ट के सेक्शन 47 के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रही है? इस सेक्शन के तहत कहा गया है कि “बचा हुआ लाभ (बैलेंस ऑफ प्रॉफिट) केंद्र सरकार को दिया जाएगा.”

5. चूंकि सरकार ने यह दावा किया है कि वो 2018-19 के लिए उसका राजकोषीय हिसाब बिल्कुल सही है और वो अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा कर लेगी तो फिर सरकार को इस साल पैसे की जरूरत क्यों पड़ रही है?

6. सरकार अपने कार्यकाल के चार सालों में क्या कर रही थी और अब अपने कार्यकाल के आखिरी छह महीनों में आरबीआई के आर्थिक पूंजीगत ढांचे में बदलाव करने की इतनी जल्दी क्यों है? क्या यह मुद्दा आने वाली सरकार के लिए नहीं छोड़ दिया जाना चाहिए?

पी चिदंबरम देश में खड़ी इस समस्या का समाधान सुझाते हुए कहते हैं कि, “आरबीआई और सरकार के लिए रिजर्व के मुद्दे पर ध्यान केंद्रीत करने से बेहतर होगा कि वह वर्तमान चुनौतियों के समाधान ढूंढे. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को ज्यादा तरलता मुहैया कराना, सार्वजनिक क्षेत्र के ग्यारह बैंको को तत्काल सुधारात्मक कार्रवाइयों के प्रावधान में थोड़ी-सी रियायत देना, लघु और मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) को कर्ज देना इतने बड़े मुद्दे नहीं हैं कि आपसी सहमति से इनके समाधान न निकाले जा सकें.”

क्या सरकार आरबीआई पर दबाव बनाने में सफल रहेगी? अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह अहम फैसले का दिन होगा.


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