अब तेरा क्या होगा रे कोरोना!
अब तेरा क्या होगा रे कोरोना? सरदार मैंने आपका पॉपुलेरिटी रेटिंग बढ़ाया है. तो जा, तू भी क्या याद करेगा, सरदार ने माफ किया. अब हिल-मिलकर परजा के साथ रहने के लिए तैयार हो जा!
कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं, कोरोना से युद्ध की मोदी जी रणनीतियों में मीन-मेख निकालने वाले? कहां हैं टैस्टिंग-पीपीई-वेंटीलेटरों से लेकर, अस्पतालों तक की तैयारियों के सवाल उठाने वाले? कहां हैं पीएम केयर्स का पैसा गाढ़े वक्त के लिए बचाकर रखने को, पीएम जी की कंजूसी का मामला बताने वाले? कहां हैं ताली-थाली, दीया-बाती और पुष्प वर्षा से लेकर, आयुष तक का मजाक उड़ाने वाले? कहां हैं देश के बाहर लाल झंडे वाले वियतनाम से लेकर, देश में केरल तक को कोरोना से लड़ने का मॉडल बताने वाले? कहां हैं युद्ध में मोदी जी की विजय की बड़ी तस्वीर को छोड़कर, घर वापसी के लिए मरते-कटते प्रवासी मजदूरों की तस्वीरें दिखाने वाले? अब बोलें, क्या कहते हैं? मोदी जी के महान नेतृत्व में हमने कोरोना को हरा दिया. कैसे क्या, हमने कोरोना के डर को हरा दिया! और सभी जानते हैं कि डर के आगे, जीत है.
जब तक हम डर रहे थे, कोरोना जीत रहा था. अब हम कोरोना से नहीं डरेंगे. अब हम कोरोना की परवाह ही नहीं करेंगे. अब हम कोरोना के साथ वैसे ही पेश आएंगे, जैसे हम टीबी, मलेरिया, गैस्ट्रो वगैरह के साथ पेश आते हैं. इंसानों के साथ ना सही, बीमारियों वगैरह के साथ तो हम पक्के सहअस्त्तित्व धर्म पर चलने वाले हैं. हमने तो गरीबी, भूख, बेरोजगारी से भी सहअस्तित्व बनाए रखने से कभी इंकार नहीं किया, फिर कोरोना के साथ भी क्यों नहीं? कोरोना है तो रहे, हमारा क्या बिगाड़ लेगा? हम किसी कोरोना-वोरोना से नहीं डरने वाले हैं. कोराना की औकात ही क्या है? क्या समझा था, सौ में से तीन के स्ट्राइक रेट वाली बीमारी से हम डर जाएंगे? या उसे विश्व महामारी का खिताब दिए जाने से! हमारा फंडा एकदम क्लियर है. हम नहीं डरने वाले. छप्पन इंच की छाती सिर्फ दिखाने को थोड़े ही है. हां! हमें डराने में नाकाम रहने के बाद, कोरोना आराम से बैठ जाता है तो ठीक, हम भी सहअस्तित्व वाले बने रहेंगे. लेकिन अगर उसे हमारी उपेक्षा का कड़वा घूंट हजम नहीं हुआ और उसने ज्यादा उछल-कूद की, तो यहां से आगे अब हम कोरोना को डराएंगे. गोमूत्र-गंगाजल से लेकर, दवा और टीके तक, जो हाथ आ जाए उस पर चलाएंगे. जो काम कर गया, सो कर गया. वर्ना कोरोना डर तो जरूर जाएगा. और जो डर गया, वो मर गया.
हमें नहीं लगता कि इसके बाद मजूरों-वजूरों की मुश्किलों की कहानियों का कोई मतलब है. लाखों हों तो क्या और करोड़ों हों तो क्या, आखिरकार हैं तो छोटे लोगों की छोटी-छोटी तकलीफों की छोटी-छोटी कहानियां ही. इतनी छोटी-छोटी कहानियां कि जालना से शाम सात बजे चले मजदूर, सिर्फ चालीस किलोमीटर दूर चलकर, पटरी पर सो गए. मालगाड़ी आ गई और सुबह चार बजे से पहले-पहले 16 मजदूरों की कहानी खत्म. बंदा लखनऊ से बीबी और दो बच्चों के साथ साइकिल से अपने गांव चला, शहर क्रॉस भी नहीं हुआ था कि गाड़ी ने ठोंक दिया. दो-ढाई घंटे में ही मियां-बीबी की कहानी खत्म. बहुत हुई तो दो-चार दिन लंबी कहानी. और जो मर-खपकर, क्वारंटीन से गुजर कर, घर पहुंच ही गए, वहां पहुंचकर ही उन्होंने क्या तीर मार लिया? हम इन छोटी-छोटी कहानियों को देखेंगे या वर्ल्ड रिकॉर्ड पर वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम करने वाले मोदी जी के लॉकडाउन को देखेंगे. सबसे ज्यादा जानें लेने वाले लॉकडाउन का वर्ल्ड रिकॉर्ड. सबसे कम खर्चे में कराए गए लॉकडाउन का वर्ल्ड रिकॉर्ड. सबसे ज्यादा सांप्रदायिक लॉकडाउन का वर्ल्ड रिकॉर्ड. लोगों से सबसे ज्यादा पदयात्रा कराने वाले, सबसे ज्यादा लोगों को भूखा रखने वाले, सबसे ज्यादा लोगों को भगवान भरोसे छोड़ने वाले, गरीब-अमीर का अंतर सबसे चौड़े में दिखाने वाले, लॉकडाउन का वर्ल्ड रिकॉर्ड. और तो और, सबसे कम टेस्ट कराने वाले लॉकडाउन का भी वर्ल्ड रिकॉर्ड. पब्लिक को सबसे कम देने और उससे सबसे ज्यादा मांगने वाले लॉकडाउन का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी. और भी कई वर्ल्ड रिकॉर्ड बने हैं, कोई कहां तक गिनती कराए? वर्ल्ड रिकॉर्डों के ऐसे अंतहीन सीरियल के जमाने में, रामायण, महाभारत के दोबारा प्रसारण का तो फिर भी कुछ अर्थ है, मजूरों-वजूरों की लघु कहानियों का मतलब ही क्या है?
कोरोना के साथ रहने की आदत डालने का मतलब लॉकडाउन का नाकाम रहना हर्गिज नहीं है. यह सिर्फ और सिर्फ लॉकडाउन के आसरे रहने की रणनीति का नाकाम रहना तो हर्गिज नहीं है. और तो और यह नोटबंदी की तरह, सिर्फ चार घंटे के नोटिस पर लॉकडाउन करने का भी नाकाम रहना नहीं है. यह लॉकडाउन की नाकामी का नहीं, जबर्दस्त कामयाबी का मामला है. नोटबंदी हो तो, बालाकोट हो तो, लॉकडाउन हो तो, मोदी जी कुछ भी करें, नाकाम हो ही नहीं सकता है. वर्ना लॉकडाउन के छ: हफ्ते बाद, कोरोना के मरीज और शहीद, दोनों बढऩे बल्कि उनके बढऩे की रफ्तार बढऩे के बाद भी, उनकी पॉपूलेरिटी रेटिंग नहीं बढ़ जाती. और यह तो सवाल ही गलत है कि जब कोरोना के साथ रहने की आदत ही डालनी थी, तो लॉकडाउन की क्या जरूरत थी? मोदी जी ने कामयाब लॉकडाउन किया, तभी तो हम कोरोना के साथ रहने की स्थिति तक पहुंच पाए हैं. कोरोना से लॉकडाउन हमारा युद्ध था और उसके साथ रहना युद्धविराम. कभी युद्ध के बिना, युद्धविराम सुना है!
मोदी जी के हर काम की आलोचना करने वाले कुछ भी कहें, लॉकडाउन के बिना न कोरोना को हमारी ताकत का पता चलता और न हमें कोरोना की असलियत का. लॉकडाउन हुआ, कठोरता का वर्ल्ड रिकार्ड बनाने वाला लॉकडाउन हुआ, तभी हम अब कोरोना के डर से मुक्त होने का वर्ल्ड रिकार्ड बना रहे हैं. वियतनाम, चीन वगैरह, कोरोना से मुक्त हो गए होंगे, पर कोरोना के डर से नहीं. अब भी डर रहे हैं कि कोरोना दोबारा ना आ जाए. यह कोरोना पर पूरी जीत नहीं है. कोरोना से असली जीत, तो कोरोना के डर से जीत है. फिर कोरोना रहे या जाए या कोरोना आंकड़े लाखों तक पहुंचाए, वह हारा हुआ ही माना जाएगा. गिनतियों में चाहे जीत भी जाए, पर मन से तो उसे हारा हुआ ही माना जाएगा. आखिर, कहा गया है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत. अब तेरा क्या होगा रे कोरोना!