बर्फीली सर्दी में लद्दाख में खुले स्कूल में छात्र हुए बीमार


schools open in laddakh in scorching cold children getting sick

 

केंद्र के प्रशासन, जो अब लेह और अन्य क्षेत्र तथा जम्मू-कश्मीर के पूर्ववर्ती राज्य पर सीधे शासन कर रहा है, ने जवाहर नवोदय विद्यालय (जेएनवी) जोकि पूरी तरह से आवास केन्द्रित विद्यालय है, को अकड़ाने वाली ठंड में भी खोलने के लिए मजबूर कर दिया है.

गृह मंत्री अमित शाह, जो अब दिल्ली में रहते हैं, शायद वे नहीं जानते हैं कि शून्य से नीचे के तापमान में काम करने की कोशिशों का क्या अंजाम होता है.

आमतौर पर लद्दाख में स्कूलों को तीन सबसे गंभीर सर्दियों के महीनों में बंद कर दिया जाता है, लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रशासन ने नए फरमान जारी कर चोगलामसर गांव में जेएनवी, जोकि लेह से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर है और जो लेह-किलोंग राजमार्ग पर है, को खुले रहने पर मजबूर कर दिया है.

और इसके परिणाम सभी के सामने हैं: चोग्लमसर के इस स्कूल में छात्रों की एक बड़ी तादाद बीमार पड़ गई है, जो कि बिवाई की बीमारी से पीड़ित हैं, जिसकी पुष्टि स्थानीय त्वचा विशेषज्ञ ने भी की है. ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिभाशाली और मेधावी छात्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए नवोदय विद्यालय योजना एक प्रयोगात्मक प्रणाली है. उन्हें स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के तहत एक स्वायत्त निकाय द्वारा प्रशासित किया जाता है, जो मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दायरे में आता है.

बिवाई एक दर्दनाक बीमारी है जो त्वचा को लाल कर देती है, उससे खुजली होती है और सूजन पैदा हो जाती हैं जो हाथ-पैर की उंगलियों, नाक, कान और उन संवेदनशील अंगों को प्रभावित करती है जिन्हे बच्चे सर्दी में बचा नहीं पाते हैं और वे उन्हे बर्फीली हवाओं और मौसम में उजागर कर देते हैं. बिवाई उन घावों में बदल सकता है जो बहुत दर्दनाक होते हैं, और लद्दाख जैसी वीरान परिस्थितियों में वह और भी बदतर हो सकती है. ये बीमारियां बर्फीली सर्दी में त्वचा पर होने वाली असामान्य प्रतिक्रिया हैं.

ठंड और बिवाई से पीड़ित कई बच्चों के माता-पिताओ ने नवोदय विद्यालय के अभिभावक-शिक्षक संघ के माध्यम से लेह के डिप्टी कमिश्नर सचिन कुमार वैश्य से इस बारे में शिकायत की है.
लेह के सबसे वरिष्ठ जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मोटूप दोरजे को छात्रों की आपातकालीन स्थिति की देखभाल करने के लिए चोगलामसर के जेएनवी में ले जाया गया. उन्होंने पाया कि भारी ठंड के कारण बड़ी संख्या में छात्रों के हाथों में सूजन आ गई है. जो सबसे बुरी बात है वह यह कि इस स्कूल में हीटिंग/गरमाईश की कोई व्यवस्था नहीं है- जिसका अर्थ है कि स्कूल और उनके हॉस्टल लगभग दिसंबर से जनवरी तक फ्रीजर की तरह ठंडे हैं.

वैसे इस बात पर किसी को आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए कि वहां गरमाईश या हीटिंग की सुविधा क्यों नहीं है, क्योंकि सामान्य तौर पर यह स्कूल दिसंबर के पहले सप्ताह के बाद बंद हो जाता है. कुछ वर्षों पहले तो स्कूल दिसंबर में बिल्कुल नहीं खुलते थे, क्योंकि स्थानीय प्रशासन तापमान और मौसम की स्थिति के आधार पर कक्षाएं लगाने का फैसला लेता था.

लेकिन इस साल, लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद, इस क्षेत्र के पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर आरके माथुर अब केंद्र के इशारे पर प्रशासन की कमान संभाल रहे हैं.

इसका नतीजा यह है कि जेएनवी स्कूल और हॉस्टल सर्दियों के मौसम में भी इतने लंबे समय तक खुले हुए हैं कि बच्चे उंगलियों की सूजन से पीड़ित हैं. एक सामान्य वर्ष में, इस समय तक, छात्र अपने छात्रावास के कमरे खाली कर देते थे और स्कूल छोड़ गांवों में अपने माता-पिता के साथ रहने चले जाते थे. जेएनवी की वेबसाइट खुद कहती है कि इसका परिसर ‘खड़े और तूफानी रास्तों से जुड़ा हुआ है’ और यह कि स्कूल खुद ‘चारों ओर के पहाड़ों से घिरा हुआ है.’ हीटिंग या गरमाईश के बिना इस तरह की इमारत शरद ऋतु के शुरुआती हफ्तों में रहने के लिए काफी दुर्गम हो जाती है फिर आप सर्दियों के महीनों की तो बात ही भूल जाईए.

लेह और आसपास के मौसम की स्थिति को समझने के लिए, यह याद रखें कि शहर में पर्यटकों की बड़ी तादाद भी आती है और उनके ठहरने की मांग को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में होटल भी खुल गए हैं. फिर भी, लेह शहर के 97 प्रतिशत होटल हर साल अक्टूबर के अंत तक बंद हो जाते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि केवल 3 प्रतिशत होटल ही केंद्रीय हीटिंग प्रदान कर सकते हैं, और इसलिए केवल वे ही खुले रहते हैं. वास्तव में, कुछ पर्यटक कठोर मौसम के बावजूद भी, चूंकि कुछ होटल खुले हैं, इसलिए इस क्षेत्र का दौरा करते हैं.

लेकिन नाजुक स्कूली बच्चों को क्षेत्र के प्रशासकों ने बर्फीली ठंड को सहन करने के लिए मजबूर कर दिया है, जो स्पष्ट रूप से इस क्षेत्र या यहाँ रहने के आदी नहीं हैं.बड़ी संख्या में प्रभावित छात्रों के कारण डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि इस तरह के मामलों के गंभीर होने से बच्चों को गैंग्रीन हो सकता है, जो उनकी उंगलियों और हाथों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकता है.

लेखक हिमाचल प्रदेश के शिमला शहर के पूर्व डिप्टी मेयर हैं. व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.


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