नोटबंदी के बाद संदिग्ध लेनदेन 14 गुना बढ़ा: एफआईयू
नोटबंदी के बाद संदिग्ध लेनदेन की संख्या में अब तक की सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई. एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016 में तत्कालीन 500 और 1,000 रुपये के नोट का प्रचलन बंद करने के कदम से संदिग्ध लेनदेन की संख्या सर्वाधिक तेजी से बढ़कर 14 लाख तक पहुंच गई.
बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों की तरफ से बताई गई यह संख्या पहले के मुकाबले 1,400 प्रतिशत यानी 14 गुणा बढ़ गई. वित्तीय आसूचना इकाई (एफआईयू) ने रिपोर्ट में यह खुलासा किया है.
देश में वित्तीय लेनदेन पर नजर रखने वाली इस खुफिया वित्तीय इकाई ने 2017- 18 के दौरान इस तरह के लेनदेन और जमा राशि से संबंधित व्यापक आंकड़ों को जुटाया है. संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट के यह अब तक के सबसे ऊंचे आंकड़े हैं. एक दशक पहले एफआईयू की शुरुआत हुई थी.
एफआईयू केन्द्रीय वित्त मंत्रालय के तहत आने वाली एजेंसी है. यह एजेंसी मनी लांड्रिंग, आतंकवाद वित्तपोषण और गंभीर प्रकृति की कर धोखाधड़ी से जुड़े लेनदेन पर नजर रखती है और उनका आकलन करती है.
वर्ष 2017- 18 के दौरान बैंक और वित्तीय संस्थानों सहित विभिन्न रिपोर्टिंग इकाइयों ने नोटबंदी के दौरान हुए लेनदेन की जांच के फलस्वरूप 14 लाख से अधिक संदिग्ध लेनदेन की रिपोर्ट एफआईयू- इंड के पास पहुंचाई.
एजेंसी के निदेशक पंकज कुमार मिश्रा ने इस रिपोर्ट में कहा है, ‘‘एक साल पहले के मुकाबले प्राप्त संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट (एसटीआर) के मुकाबले इस रिपोर्ट में तीन गुणा अधिक वृद्धि हुई जबकि नोटबंदी से पहले प्राप्त एसटीआर के मुकाबले इसमें 14 गुणा तक वृद्धि दर्ज की गई.’’
पीटीआई- भाषा को इस रिपोर्ट की जानकारी उपलब्ध हुई है. सरकार को सौंपी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017- 18 में प्राप्त एसटीआर रिपोर्ट की संख्या एक साल पहले के मुकाबले तीन गुणा से अधिक बढ़कर 4.73 लाख तक पहुंच गई.
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 को उस समय चलन में रहे 500 और 1,000 रुपये के नोट को निरस्त कर दिया था.
मनी लांड्रिग रोधी कानून (पीएमएलए) के तहत एफआईयू ही एकमात्र एजेंसी है जो इस तरह की रिपोर्ट प्राप्त कर सकती है. बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों को बड़ी राशि के लेनदेन, नकदी मुद्रा को जमा करने और एसटीआर के बारे में रिपोर्ट करना होता है. इन कदमों को आतंकवादियों को वित्तीय संसाधन पहुंचाने और कालेधन को सफेद करने के प्रयासों के खिलाफ भारत की लड़ाई के रूप में देखा जाता है.
रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी से पहले के तीन साल में इस तरह की एसटीआर की संख्या 2013-14 में 61,953, वर्ष 2014- 15 में 58,646 और 2015- 16 में 1,05,973 रही.