फिंगरप्रिंट से इंटेलिजेंस तय करने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं: इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी
इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी(आईपीएस) ने फिंगरप्रिंट से बच्चों की जन्मजात इंटेलिजेंस बताने वाले परीक्षण को अवैज्ञानिक बताते हुए ऐसे किसी भी टेस्ट से स्कूल और अभिभावकों को बचने की सलाह जारी की है.
आईपीएस ने बयान जारी कर कहा है कि डर्मेटोग्लिफिक्स मल्टीपल इंटेलिजेंस टेस्ट (डीएमआईटी) वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित नहीं है और यह बुद्धिमत्ता(इंटेलिजेंस) परीक्षण, मस्तिष्क की कार्यप्रणाली परीक्षण या भविष्य में बच्चों के व्यवहार का अनुमान लगाने में नाकाम है.
संस्था ने ऐसी गलत मानसिकता वाले व्यवहारों से दूर रहने की सलाह दी है.
संस्था का दावा है कि प्री नर्सरी स्कूल सहित अन्य शिक्षण संस्थानों की ओर से जन्मजात क्षमता के मूल्यांकन करने के दावों के साथ डीएमआईटी की मार्केटिंग की जा रही है.
आईपीएस अध्यक्ष और वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक मुरूगेस वैष्णव ने कहा कि अभिभावकों की बच्चों के भविष्य की चिंताओं और मासूमियत से इस कारोबार को खाद-पानी मिल रहा है.
उन्होंने कहा कि डीएमआईटी से बच्चों के मूल्यांकन के लिए स्कूल के द्वारा कहने पर अभिभावकों की ओर से संस्था सदस्यों के पास इसको लेकर सवाल आए थे. अभिभावकों के हवाले से उन्होंने कहा कि मूल्यांकन के लिए अभिभावकों से दो से पांच हजार रुपये तक लिए जा रहे हैं.
आईपीएस की पत्रिका के संपादक ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि यह हमारे विचार हैं, हम अभिभावकों और स्कूल से केवल अपील कर सकते हैं आगे के निर्णय के लिए वे स्वतंत्र हैं.
द टेलीग्राफ ने डीएमआईटी सॉफ्टवेयर कंपनी फ्यूचर विजन के हवाले से कहा है कि कंपनी की ओर से अबतक देश भर में 300 से अधिक प्रोडक्ट स्कूलों को मुहैया करवाया है.
ब्रेन वॉन्डर के मनीष नायडू ने कहा कि उनकी कंपनी ने करीब 230 स्कूलों को डीएमआईटी एसेसमेंट टूल उपलब्ध करवाया है.
वैष्णव ने कहा कि समय के साथ दिमाग का विकास होता है और इंटेलिजेंस और क्षमता जेनेटिक्स, वातावरण और पालन-पोषण सहित कई कारणों से प्रभावित होती है.