अहिंसा के रास्ते ही दुनिया में शांति और न्याय संभव
आज भारत पाकिस्तान एक दूसरे को युद्ध के लिये चुनौती दे रहे हैं. दोनों युद्ध के लिए आमने सामने खड़े हैं. यह जानते हुए भी कि युद्ध तबाही के सिवाय कुछ नहीं दे सकता. तब हमें यह विचार करने की जरुरत है कि हम आखिर युद्ध किससे करना चाहते हैं? क्यों करना चाहते हैं? युद्ध से हम क्या हासिल कर पायेंगे?
पाकिस्तान की हालत भारत से बदतर
भारत में 90 फीसदी आत्महत्या, गरीबी, अशिक्षा और असुरक्षित रोजगार के कारण होती है. प्रतिदिन 34 किसान आत्महत्या कर रहे हैं. किसान परिवार में प्रतिदिन 174 लोग आत्महत्या करते हैं. हर तीसरा बच्चा कुपोषित है. आधी आबादी गरीबी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर है. बेरोजगारों की कतारें लगी हैं. महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहे हैं. केवल धन जुटाने के लिये समाज में शराब और नशा परोसी जा रही है. देश में सर्वत्र हिंसा व्याप्त है. किसानों की जमीनें छीनी जा रही है. लाखों आदिवासियों को जंगल में रहने का अधिकार छीना जा रहा है. किसानों को मेहनत का मूल्य देने के लिये धन नहीं है. सारा धन चंद धनवानों के पास पहुंच रहा है.
पाकिस्तान की हालत इससे भी बदतर है. अपने रोजाना के खर्च करने के लिए भी उनके पास धन नहीं है. लेकिन जनहित की योजनाओं मे कटौती करनी पड़े या कर्ज की भीख मांगनी पड़े, युद्ध से दोनों पीछे हटना नहीं चाहते हैं.
पाकिस्तान में रक्षा खर्च बजट का पांचवा हिस्सा
युद्ध के लिए दोनों देश बड़ी राशि खर्च करते हैं. भारत सरकार का वार्षिक बजट 27 लाख करोड़ का है. जिसमें तीन लाख करोड़ रुपये का रक्षा बजट है. पाकिस्तान सरकार का वार्षिक बजट पांच लाख करोड़ के आसपास है. जिसमें 1.10 लाख करोड़ रुपये रक्षा बजट है. इसके अलावा दोनों देश युद्ध सामग्री के लिए अतिरिक्त खर्च करते हैं. व्यवस्था पर होनेवाला कुछ खर्चा भी इसमें जोड़ा जा सकता है. यह इतनी बड़ी राशि है कि इससे दोनों देश गरीबी, भूखमरी, कुपोषण और बेरोजगारी पर विजय प्राप्त कर सकते थे और अपने देश को समृद्ध बना सकते हैं.
युद्ध का इतिहास यही बताता है कि उसने हुकूमतों को मजबूत किया है और साम्राज्यवाद को फैलाया है. लोगों के श्रम का शोषण, प्राकृतिक संसाधनों की लूट या युद्ध सामग्री का व्यापार बढाने के लिये ही युद्ध किया जाता रहा है. युद्ध ने समाज और देश को हमेशा तबाही ही दी है. युद्ध हमेशा एक साजिश के तहत लादा जाता रहा है. युद्धभूमि पर आम जनता के बेटों को ही राष्ट्रभक्ति की नशा पिलाकर मरवाया जाता है. उसके लिये कट्टरपंथियों द्वारा संकुचित राष्ट्रवाद और अपने ही देश के श्रमिकों का शोषण करके मौज करनेवाले पाखंडी राष्ट्रप्रेमियों द्वारा उन्माद पैदाकर युद्ध की भूमिका तैयार की जाती रही है.
कट्टरपंथी सोच मानवता के लिए एक अभिशाप
जम्मू-कश्मीर प्रकृति से समृद्ध प्रदेश है. वहां की जनता हिंसा से मुक्ति चाहती है. लेकिन उसके लिए उन्होंने भी हिंसा का ही रास्ता अपनाया है. दुनिया की साम्रज्यवादी ताकतें कट्टरपंथियों के माध्यम से प्राकृतिक दृष्टि से समृद्ध 1.25 करोड़ आबादी वाले प्रदेश को तबाह करने और भारत और पाकिस्तान की जनता को लूटने के लिए कर रही है.
कट्टरपंथी सोच मानवता के लिए एक अभिशाप है. वह हमेशा दूसरों के इशारों पर समाज में विघटन करने का काम करती है. उन्होंने पूरी दुनिया को तबाह कर दिया है. झूठे राष्ट्रवाद और सांप्रदायिक कट्टरता को आधार बनाकर यह ताकतें पनपती है. साम्राज्यवादी ताकतें इन अविचारी, अहंकारी और महत्वाकांक्षी लोगों को धन देकर उनकी शक्ति बढाने का काम करती हैं और उन्हें अपना हथियार बनाकर इस्तेमाल करती है. कट्टरपंथी और कॉरपोरेट मीडिया बेलगाम होकर लूट से ध्यान भटकाने और युद्ध के लिये लोगों में जहर भरने और उन्माद पैदा करने का काम करते रहते हैं.
गरीबी, बेरोजगारी और भूखमरी से लड़ने की जरुरत
हम अपने देश को युद्ध की नशा और उन्माद चढ़े लोगों के भरोसे नहीं छोड़ सकते. आज गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण और भूखमरी से लड़ने की आवश्यकता है. शोषणमुक्त समाज बनाने के लिए शोषणकारी ताकतों और कॉरपोरेट साम्राज्यवाद से लड़ने की आवश्यकता है.
युद्ध के लिए आमने-सामने खड़ी दोनों राज्यसत्ता और कट्टरपंथी विचारधारा हिंसा के पक्ष में ही खड़ी हैं. हिंसा के चयन का अर्थ श्रमिकों का शोषण, प्रकृति का दोहन और लूट की व्यवस्था का संस्थाकरण को स्वीकृति देना है. हमें हिंसा और अहिंसा दोनों में से कोई एक रास्ता चुनना होगा.
अहिंसा के चयन का अर्थ खुद को प्रकृति का हिस्सा बनाकर जीना और प्रकृति संरक्षण से है. हर मनुष्य के जीने के अधिकार का सम्मान और शोषण मुक्त व्यवस्था को समर्थन करना है.
अहिंसा अपने आप में पूंजी और राज्यसत्ता के नियंत्रण और हस्तक्षेप की जगह लोकशक्ति द्वारा समस्याओं का समाधान की स्वीकृति है.
साम्राज्यवाद से मुक्ति अहिंसा से ही संभव
साम्राज्यवाद, हिंसा के द्वारा डर पैदा करके शोषण और लूट करता है. वह लिंग, रंग, जाति, धर्म, भाषा, श्रम, अस्मिता के आधार बंटे समाज में विद्वेष पैदाकर आपस में लड़वाता है. वह संकुचित राष्ट्रवाद को उकसाकर युद्ध करवाता है.
साम्राज्यवाद का आधार हिंसा है. हमे समझना होगा कि हिंसा का जवाब हिंसा से देकर साम्राज्यवाद को परास्त नहीं किया जा सकता है. साम्राज्यवाद से मुक्ति अहिंसा से ही संभव है. जिसमें प्रतिपक्ष के प्रति विद्वेष, घृणा, वैर के लिये भी कोई स्थान नहीं है. सब के कल्याण की शुभकामना है.
अहिंसा पर निष्ठा रखने वाले भारत के सभी नागरिकों को शांति सेना का निर्माण कर शांति और न्याय के लिए पहल करनी होगी. अहिंसा के रास्ते ही दुनिया में शांति और न्याय संभव है.