तस्वीरों से संघर्ष की दास्तानगोई करने वाले यानिस बेहराकिस
यानिस बेहराकिस/ ट्विटर
युद्ध, संघर्ष और आपदाएं अपने साथ तमाम तरह की विभीषिकाएं लेकर आते हैं. ऐसी स्थितियों में बड़े पैमाने पर पलायन होता है. लेकिन कुछ लोग ऐसी विपरीत परिस्थियों से जूझते हैं ताकी यथार्थ जगजाहिर हो सके. ऐसे ही फोटो पत्रकार थे यानिस बेहराकिस, जिनका बीती दो तारीख को निधन हो गया.
बेहराकिस समाचर एजेंसी रॉयटर के साथ जुड़े हुए थे और संघर्षरत जगहों पर अपनी फोटोग्रॉफी के लिए जाने जाते थे. 58 वर्षीय बेहराकिस लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे थे.
रॉयटर लिखता है कि 30 साल पहले जब बेहराकिस समाचर एजेंसी से जुड़े थे तब से वो कई संघर्षरत इलाकों में काम कर चुके थे. इनमें महत्वपूर्ण रूप से अफगानिस्तान और चेचेन्या का संघर्ष शामिल था. इसके अलावा कश्मीर का भूकंप और मिश्र की उठापटक में भी उन्होंने कमाल का काम किया था.
बेहराकिस की खासियत ये थी कि वो बागी और सत्ता दोनों पक्षों की स्वीकार्यता हासिल कर लेते थे. बेहराकिस की लोकप्रियता तब चरम पर जा पहुंची जब 2016 में उनको पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया. ये पुरस्कार उनको शरणार्थी संकट को कवर करने के लिए दिया गया था.
पुलित्जर पत्रकारिता की दुनिया का नोबल पुरस्कार माना जाता है.
उनके साथ काम करने वाले लोग उनकी तारीफ करते नहीं थकते. गोरान तोमासेविक उनके साथी फोटोग्रॉफर हैं. तोमसेविक कहते हैं कि बेहराकिस के फोटो किसी कहानी को बतलाने का सबसे बेहतरीन तरीका होते थे. वो कहते हैं कि उनके अलावा आप ऐसे किसी दूसरे व्यक्ति को नहीं खोज सकते जो सबसे अच्छी तस्वीर के लिए सबकुछ दांव पर लगाने को तैयार बैठा हो.
कहते हैं कि एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है. बेहराकिस ऐसे ही व्यक्ति थे जिसने अपनी ऐतिहासिक तस्वीरों से इसे सच कर दिखाया. वो अपने पीछे ऐसे पदचिह्न छोड़ गए हैं जिनकी छाप अमिट है.
बेहराकिस ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि मेरा मकसद कहानी बताना है, क्या करना है ये निर्णय आपका है.
अपने करियर के शुरुआती दिनों में बेहराकिस स्टूडियों में काम किया करते थे, लेकिन एक फिल्म ने फोटोग्रॉफी को लेकर उनका नजरिया बदल दिया. 1983 में आई इस फिल्म का नाम था अंडर फायर. इस फिल्म में फोटोग्रॉफरों की एक टीम को दिखाया गया था जो 1979 के निकारागुआ क्रांति को दुनिया के सामने ला रहे थे.
फिल्म से प्रभावित होने के बाद वो पत्रकारिता में आने के मौके तलाशते रहे. इस तरह वो 1987 में न्यूज वायर एजेंसी रॉयटर से एक फ्रीलांसर के तौर पर जुड़ गए. उनको विदेश जाने का पहला मौका 1989 में तब मिला जब उन्हें संघर्षरत लीबिया को कवर करने भेजा गया.
उन्होंने इस मौके को दोनों हाथों से लपक लिया. बेहराकिस कहते हैं कि जब गद्दाफी पत्रकारों से मुखातिब होने आए तब वहां बहुत अधिक भीड़ थी. इस दौरान बेहराकिस ने कुछ वाइड एंगल तस्वीरें उतारी. अगले दिन बेहराकिस की वो तस्वीरें पूरी दुनिया में छाई हुई थीं. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
अगले तीन दशकों में बेहराकिस ने यूरोप, रूस, मध्य पूर्व, अफ्रीका और एशिया की तमाम जगहों पर संघर्षों की तस्वीरें उतारीं. इसके लिए उनको तमाम तरह के पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा जाता रहा.
सभी तस्वीरें यानिस बेहराकिस ने ली हैं/साभार ट्विटर.