‘तुम्हारी अमृता’ इक्कीस साल और खेलना चाहते थे फ़ारूक़ शेख
भारतीय सिनेमा जगत के मशहूर और चहेते अभिनेता फ़ारूक़ शेख आज से ठीक पांच साल पहले 27 दिसम्बर 2013 को इस दुनिया को अलविदा कह गए थे. आज उनकी पुण्यतिथि के मौक़े पर हम उनके जीवन और उनकी फ़िल्मों से जुड़ी कुछ बेहद दिलचस्प बातें आपके साथ साझा करेंगे. यही सही मायनों में फ़ारूक़ शेख के लिए हमारी सच्ची ख़िराज-ए-अकीदत होगी.
फ़ारूक़ शेख जब मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से वक़ालत की पढ़ाई कर रहे थे, तभी से उनका रुझान थिएटर की तरफ़ था. इसी के चलते उन्होंने इप्टा (इंडियन पीपल थिएटर एसोसिएशन) के कार्यक्रमों में सक्रियता रखी. यही एक दिन फ़ारूक़ शेख की मुलाक़ात निर्देशक एमएस सत्यु से हुई, जो अपनी फ़िल्म गर्म हवा के लिए कास्टिंग कर रहे थे. एमएस सत्यु साहब को फ़ारूक़ शेख पसंद आए और उन्होंने फ़ारूक़ शेख को अपनी फ़िल्म में साइन कर लिया. इस फिल्म के लिए एमएस सत्यु ने फ़ारूक़ शेख से 750 रूपये का क़रार किया, जिसे एमएस सत्यु ने बीस सालों में चुकता किया. फ़िल्म गर्म हवा कामयाब रही और इससे फ़ारूक़ शेख साहब लाइमलाइट में आ गए.
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फ़िल्म गर्म हवा में फ़ारूक़ शेख का काम इतना प्रभावशाली था कि इसे देखकर, मशहूर निर्देशक सत्यजीत रे और मुज़फ्फ़र अली बहुत प्रभावित हुए. सत्यजीत रे ने अपनी एकमात्र हिंदी फ़िल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में फ़ारूक़ शेख को मौक़ा दिया. इसके साथ ही मुज़फ्फ़र अली ने फ़ारूक़ शेख को अपनी फ़िल्म ‘गमन’ में बतौर मुख्य अभिनेता पेश किया. फ़ारूक़ शेख, इस फ़िल्म का हिस्सा भी इत्तेफ़ाक़ से बने. दरअसल मुज़फ्फ़र अली ने अभिनेता अमिताभ बच्चन को मुख्य भूमिका में लेकर फ़िल्म ‘गमन’ बनाने का फ़ैसला कर लिया था. मगर उस वक़्त अमिताभ बच्चन, अपनी एंग्री यंग मैन अवतार के कारण लोकप्रियता के चरम पर थे. इस समय ‘गमन’ जैसी आर्ट फ़िल्म करना, अमिताभ बच्चन के करियर के लिए नुक़सानदायक हो सकती थी. इसलिए अमिताभ बच्चन ने यह फ़िल्म करने से मना कर दिया और इस तरह युवा अभिनेता फ़ारूक़ शेख को गमन में मुख्य अभिनेता का किरदार करने का मौक़ा मिला.
फ़ारूक़ शेख ने गमन में शानदार अभिनय करने के बाद, मुज़फ्फ़र अली की एक और फ़िल्म ‘उमराव जान’ में भी महत्वपूर्ण किरदार निभाया. उमराव जान एक नायिका प्रधान फ़िल्म थी और उस दौर में एक नायिका प्रधान फ़िल्म में कोई भी बड़ा एक्टर काम करने से कतराता था. ऐसे में फ़ारूक़ शेख ने फ़िल्म करने की इच्छा जताई और उनके द्वारा किया गया’ नवाब साहब’ का किरदार बहुत लोकप्रिय हुआ. इस फ़िल्म के साथ भी एक मज़ेदार वाक़या जुड़ा हुआ है. मुज़फ्फ़र अली बहुत अनुशासन के साथ करने वाले डायरेक्टर हैं. जब फ़िल्म उमराव जान की शूटिंग हो रही थी, तब मुज़फ्फ़र साहब बड़ी तेज़ी के साथ सीन शूट करते, जिससे एक्टर्स को साँस लेने की फ़ुर्सत नहीं मिलती. फ़िल्म उमराव जान की मुख्य नायिका अभिनेत्री रेखा जब अक्सर सीन शूट करते हुए थक जाती तो आराम करने के लिए एक नायाब तरीक़ा अपनाती. वह तरीक़ा कुछ यूँ था कि फ़ारूक़ शेख इस्लाम के हर नियम, हर क़ानून को बहुत शिद्दत से मानते थे. इसी सिलसिले में फ़ारूक़ शेख रोज़ पांच वक़्त नमाज़ पढ़ने जाते. इस वक़्त शूटिंग रुक जाती और रेखा कुछ देर के सो जाती.
फ़ारूक़ एक अच्छे अभिनेता तो थे ही साथ ही साथ वह एक अच्छे इंसान भी थे. फ़िल्म चश्मे बद्दूर की शूटिंग के दौरान एक लाइटमैन छत से गिर गया और उसे गम्भीर चोटें आईं. लाइटमैन को अस्पताल में भर्ती कराया गया. फ़िल्म चश्मे बद्दूर की निर्देशिका साईं परांजपाई बताती हैं कि अभिनेता फ़ारूक़ शेख हर रोज़ शूटिंग खत्म होने बाद, लाइटमैन से मिलने अस्पताल जाते थे और उसके पूरी तरह स्वस्थ होने तक उसकी हर तरह की ज़रूरत का पूरा ख्याल रखते रहे.
फ़ारूक़ शेख अपने दोस्तों से बहुत प्यार करते थे. उन्होंने अपने जीवन में समय-समय पर अपने दोस्तों की भरपूर मदद की. जब फ़ारूक़ शेख फ़िल्मी दुनिया में काम करना शुरू कर चुके थे, तब एक रोज़ उनकी मुलाक़ात अपने दोस्त रमन कुमार से हुई. रमन कुमार उस वक़्त फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट पुणे से पढ़ाई कर रहे थे और उसी सिलसिले में उन्होंने एक फ़ीचर फ़िल्म की कहानी लिखी, जो परीक्षा प्रारूप का हिस्सा थी. जब रमन कुमार ने फ़ीचर फ़िल्म की कहानी फ़ारूक़ शेख को पढ़ने के लिए दी तो फ़ारूक़ बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने रमन कुमार को इस कहानी पर फ़िल्म बनाने की सलाह दी.
इसके बाद एक रोज़ मशहूर निर्देशक बासु भट्टाचार्य की मुलाक़ात रमन कुमार से हुई और उन्होंने रमन कुमार से उसी कहानी का ज़िक्र किया, जो रमन ने फ़ारूक़ शेख को पढ़ने को दी थी. रमन ने फिर कहानी, बासु भट्टाचार्य को पढ़ाई, जिसे पढ़कर बासु भट्टाचार्य ने रमन कुमार को फ़िल्म को फाइनेंस करवाने के लिए एनएफ़डीसी में अप्लाई करने के लिए कहा. मगर एनएफ़डीसी में आवेदन करने के लिए दस हज़ार रूपये फ़ीस लगती थी. अब रमन कुमार के पास पैसे नहीं थे, सो उन्होंने अपने दोस्त दिलीप धवन से मदद मांगी.
दिलीप धवन ने अपनी माताजी मुन्नी धवन से पैसे लिए और एनएफ़डीसी की फ़ीस भरी. एनएफ़डीसी ने फ़िल्म स्वीकार करते हुए फाइनेंस की और इस तरह फ़िल्म निर्माण की शुरुआत हुई. फ़िल्म का नाम रखा गया ‘साथ-साथ’, जिसमें फ़ारूक़ शेख, दीप्ति नवल, सतीश शाह, अवतार गिल ने मुख्य भूमिकाएँ निभाई.
फ़िल्म का संगीत कुलदीप सिंह जी और गीत लेखन जावेद अख्तर साहब के ज़िम्मे था. फ़िल्म के गीतों को जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने आवाज़ दी. रमन कुमार के निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘साथ-साथ’ बेहद कामयाब रही. रमन कुमार बताते हैं कि उन्होंने फ़िल्म ‘साथ-साथ’ का सीक्वल बनाने की योजना बना ली थी और इस बारे में जगजीत सिंह, जावेद अख्तर और फ़ारूक़ शेख से बात कर ली थी. मगर इससे पहले फ़िल्म की योजना अपने शुरुआती चरण पर पहुँचती, जगजीत सिंह और फ़ारूक़ शेख इस दुनिया से चले गए.
फ़ारूक़ शेख ने सामाजिक मुद्दों को उठाती फ़िल्में बहुत मन से की. बाज़ार, गमन, गर्म हवा इसका सुबूत हैं. इसके अलावा भी फ़ारूक़ शेख सामाजिक सरोकार से जुड़ी मुहीम का हिस्सा बनते रहते थे. फ़ारूक़ साहब ने कई वर्षों तक हर महीने के ‘पल्स पोलियो रविवार’ अभियान के तहत गांव-गांव घूमकर जागरूकता फैलाने में अपना योगदान दिया.
फ़ारूक़ शेख को रंगमंच से भी बहुत लगाव था. उनका नाटक ‘तुम्हारी अमृता’, जिसमें उन्होंने अपने कॉलेज के समय से दोस्त रही अभिनेत्री शबाना आज़मी के साथ काम किया था,बहुत ही ज़्यादा मशहूर हुआ. इस नाटक के साथ भी फ़ारूक़ शेख का बहुत दिलचस्प और मार्मिक क़िस्सा है.
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नाटककार फ़िरोज़ अब्बास खान ने एक अंग्रेज़ी नाटक पढ़ा, जिससे वह बेहद मुतासिर हुए. उनके मन में यह ख्याल आया कि अगर इस अंग्रेज़ी नाटक का हिंदुस्तानी ज़बान में तर्जुमा कर दिया तो, यह नाटक और ज़्यादा दिलचस्प हो सकता है. इसमें उनकी मदद की थी निर्देशक एमएस सत्यु ने. सत्यु लगातार रंगमंच से जुड़े हुए थे.
सत्यु ने फ़िरोज़ अब्बास खान की मुलाक़ात मशहूर उर्दू लेखक जावेद सिद्दीक़ी से कराई. जावेद सिद्दीक़ी साहब ने अंग्रेज़ी नाटक का हिंदुस्तानी तर्जुमा किया. तर्जुमा बेहद शानदार हुआ था. नाटक का नाम रखा गया ‘तुम्हारी अमृता’. इस नाटक को लेकर फ़िरोज़ खान अपने कलाकार फ़ारूक़ शेख और शबाना आज़मी के साथ जेनिफ़र कपूर थिएटर फेस्टिवल में पहुँचे. तीनों ही थोड़ा सा डरे हुए थे. इसकी वजह यह थी कि नाटक में सिर्फ़ दो ही किरदार थे, जो एक दूसरे से कुछ दूरी पर मेज़ कुर्सी पर बैठकर सिर्फ़ ख़त पढ़ते हैं. नाटक में कोई बैकग्राउंड संगीत, परिधान परिवर्तन का इस्तेमाल नहीं था. खैर, ‘तुम्हारी अमृता’ का पहला शो किया गया, जो उम्मीद से बढ़कर बेहद कामयाब साबित हुआ. उसके बाद यह नाटक लगातार बीस सालों तक खेला जाता रहा और इसके ज़रिये फ़ारूक़ शेख, शबाना आज़मी ने रंगमंच जगत में भी बहुत लोकप्रियता हासिल की.
14 दिसम्बर सन 2013 को नाटक ‘तुम्हारी अमृता’ का मंचन मुहब्बत की इमारत ताजमहल के सामने किया गया. यह ख़ास मौक़ा इसलिए भी था क्योंकि नाटक ‘तुम्हारी अमृता’ अपने इक्कीसवें साल में क़दम रख चुका था. नाटक खत्म होने के बाद शबाना आज़मी ने फ़ारूक़ शेख से कहा कि इस नाटक को खेलते हुए इक्कीस साल हो गये और आज ताज महल के सामने इसे परफॉर्म करने के बाद, अब इस नाटक को बंद कर देना चाहिए. यह सुनकर फ़ारूक़ शेख तपाक से बोले “अरे ऐसे क्यों, अभी तो ये नाटक मैं इक्कीस साल और करूँगा.” मगर शायद क़िस्मत ने कुछ और ही सोच रखा था.
फ़ारूक़ शेख अपनी बहन के परिवार से मिलने दुबई गए हुए थे, जहाँ उन्हें हार्ट अटैक आया और वो 27 दिसम्बर 2013 को इस दुनिया को अलविदा कह गए. आज फ़ारूक़ शेख हम सभी के बीच नहीं हैं मगर उनकी फ़िल्में, उन पर फ़िल्माए गीत, हमेशा हमारे दिलों में उनकी ख़ूबसूरत यादें बरक़रार रखेंगे.