अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ काम नहीं देख पाए थे बलराज
समानांतर हिन्दुस्तानी सिनेमा के मशहूर निर्देशक एमएस सत्यु (मैसूर श्रीनिवास सत्यु), जब सन् 1952 में फ़िल्मी दुनिया में अपनी क़िस्मत आज़माने कर्नाटक से मुंबई आए तो,उन्होंने मशहूर फ़िल्मकार चेतन आनन्द के सहायक के तौर पर काम करना शुरू किया. एमएस सत्यु ने चेतन आनन्द साहब की मशहूर फ़िल्म “हक़ीक़त” में भी बतौर कला निर्देशक काम किया. इसके अलावा एमएस सत्यु साहब बतौर स्क्रिप्टराइटर, एडिटर सक्रिय रहे. जब एमएस सत्यु साहब को हिन्दुस्तानी सिनेमा जगत में काम करते हुए कुछ अरसा हुआ तो,उनके मन में अपनी एक फ़िल्म बनाने की ख्वाहिश पैदा हुई.
ठीक इसी वक़्त, मशहूर उर्दू लेखिका इस्मत चुगताई ने अपनी एक कहानी एमएस सत्यु और उनकी पत्नी शमा ज़ैदी साहिबा को सुनाई. ये कहानी कहीं भी छपी नहीं थी. कहानी भारत के विभाजन को लेकर, इस्मत चुगताई के निजी अनुभवों पर लिखी गयी थी. कहानी में बताया गया था कि किस तरह विभाजन के बाद उन मुस्लिमों को अपनी पहचान और अस्तित्व के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ा, जो पाकिस्तान को नकार कर भारत में ही रह गए थे. इस कहानी का एमएस सत्यु साहब के ज़ेहन पर गहरा असर पड़ा. खैर फ़िल्म बनाने को लेकर एमएस सत्यु साहब की जद्दोजहद जारी रही.
इसी बीच जब एमएस सत्यु साहब को मालूम हुआ कि “फ़िल्म वित्त निगम” नामक एक विभाग,लीक से हटकर बनने वाली फ़िल्मों के निर्माण में सहायता करता है तो वह फ़ौरन अपनी कहानी लेकर “फ़िल्म वित्त निगम” के ऑफ़िस पहुँच गए. यही फ़िल्म वित्त निगम बाद में एनएफ़डीसी(राष्ट्रीय फ़िल्म विकास निगम) के नाम से जाना गया. जब एमएस सत्यु साहब ने अपनी स्क्रिप्ट सुनाई तो,फ़िल्म वित्त निगम ने यह कहकर उनकी कहानी को अस्वीकार कर दिया कि कहानी बहुत डार्क शेड लिए हुए है. तब एमएस सत्यु साहब ने “फ़िल्म वित्त निगम” वालों इस्मत चुगताई की कहानी सुनाई. ये कहानी फ़िल्म वित्त निगम को पसंद आई और उन्होंने इसके फ़िल्मी रूपांतरण के लिए आर्थिक सहायता देने का भरोसा दिलाया.
फ़िल्म निर्माण के लिए फ़िल्म वित्त निगम ने ढाई लाख रुपयों की आर्थिक सहायता दी. एमएस सत्यु साहब ने अपने दोस्तों से उधार लेकर तक़रीबन साढ़े सात लाख रूपये जमा किए और फ़िल्म के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की. फ़िल्म का नाम रखा गया “गर्म हवा”.
एमएस सत्यु साहब ने सबसे पहले इस्मत चुगताई की कहानी पर स्क्रिप्ट तैयार करने की ज़िम्मेदारी अपने मित्र कैफ़ी आज़मी साहब को सौंपी. इस काम में कैफ़ी आज़मी साहब का साथ एमएस सत्यु साहब की पत्नी शमा ज़ैदी ने दिया. कैफ़ी आज़मी साहब ने फ़िल्म के संवाद भी लिखे. फ़िल्म की स्क्रिप्ट लिखते वक़्त कैफ़ी आज़मी साहब को आगरा शहर से जुड़े अपने निजी अनुभवों को भी कहानी में जोड़ दिया. इसके साथ ही कैफ़ी आज़मी साहब ने फ़िल्म के गीत भी लिखे. शमा ज़ैदी साहिबा ने बतौर कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर भी फ़िल्म में काम किया. सिनेमेटोग्राफ़र ईशान आर्य ने फ़िल्म शूट की.
फ़िल्म के संगीत निर्माण की ज़िम्मेदारी उस्ताद बहादुर खान साहब को दी गई. उस्ताद बहादुर खान साहब मशहूर सरोद वादक थे. फ़िल्म में एक कव्वाली भी शामिल की गई जिसे मशहूर कव्वाली मंडली अज़ीज़ अहमद खान वारसी ने बनाया था. कव्वाली के बोले थे “मौला सलीम चिश्ती”.
एमएस सत्यु साहब इप्टा (इंडियन पीपल थिएटर एसोसिएशन) से जुड़े हुए थे. यहाँ उनकी मित्रता कैफ़ी आज़मी,शौकत आज़मी,बलराज साहनी से हुई. जब गर्म हवा के किरदारों की कास्टिंग की बात आई तो, एमएस सत्यु साहब के अपने इन्हीं दोस्तों को फ़िल्म के लिए कास्ट किया.
सलीम मिर्ज़ा के किरदार के लिए एक्टर बलराज साहनी को चुना गया. उनकी पत्नी के किरदार जमीला के लिए शौकत आज़मी (कैफ़ी आज़मी की पत्नी) को लिया गया. फ़िल्म में सलीम मिर्ज़ा के बड़े भाई हलीम मिर्ज़ा का किरदार अभिनेता दीनानाथ ज़ुत्शी ने निभाया. दीनानाथ ज़ुत्शी रेडियो की दुनिया के मशहूर उद्घोषक थे.
फ़िल्म में सलीम मिर्ज़ा के छोटे बेटे के किरदार सिकंदर को निभाने के लिए एक्टर फ़ारूक़ शेख को लिया गया. यह फ़ारूक़ शेख की बतौर अभिनेता पहली फ़िल्म थी. फ़ारूक़ शेख मुंबई में वकालत की पढ़ाई करते हुए, इप्टा से जुड़े हुए थे. यही उनकी मुलाक़ात एम.एस सत्यु साहब से हुई, जिन्होंने फ़ारूक़ को सिकंदर के किरदार के लिए मुनासिब समझा. मज़ेदार बात ये है कि फ़ारूक़ शेख को इस फ़िल्म के लिए महज सात सौ पचास रूपये मिले थे. इसके अलावा फ़िल्म में अन्य मुख्य भूमिकाओं को निभाने के लिए एक्टर जलाल आगा,युनुस परवेज़ एके हंगल और विकास आनन्द को शामिल किया गया.
फ़िल्म में सलीम मिर्ज़ा की माँ के किरदार को निभाने के लिए एमएस सत्यु साहब ने मशहूर ग़ज़ल गायिका बेग़म अख्तर साहिबा से निवेदन किया. मगर बेग़म अख्तर साहिबा ने एमएस सत्यु साहब की गुज़ारिश स्वीकार नहीं की. इसकी दो वजहें थीं. पहली ये कि बेग़म अख्तर साहिबा के शौहर नहीं चाहते थे कि वो फ़िल्मों में काम करें. दूसरी वजह ये कि बेग़म अख्तर साहब शूटिंग के लिए अपने घर लखनऊ को छोड़कर आगरा नहीं जाना चाहती थी.
एमएस सत्यु
बहरहाल एमएस सत्यु साहब की खोज जारी रही.जब इस बात का पता सत्यु साहब के मित्र और आगरा निवासी आरएस लाल माथुर साहब को पता चली तो,उन्होंने एम.एस सत्यु साहब की मुलाक़ात बदर बेग़म से करवाई. बदर बेग़म आगरा के कश्मीरी बाज़ार में कोठा चलाती थी. इसके पीछे भी एक दिलचस्प मगर दुःख से भरा वाकया है. बदर बेग़म को बचपन से फ़िल्मों का बड़ा शौक था. इसी शौक को पूरा करने जब वो मुंबई पहुँची तो उनका सामना मुंबई की कठिन ज़िंदगी से हुआ. बदर बेग़म को काम नहीं मिला,जिसके चलते उनका मुंबई में रहना मुश्किल होने लगा. अंत में बचे हुए पैसों को लेकर बदर बेग़म आगरा आ गईं और यहीं उन्होंने अपना एक कोठा शुरू किया, जहाँ वो नाचने,गाने के कार्यक्रम किया करती. अब बदर बेग़म की उम्र 70 वर्ष से ज़्यादा की हो चुकी थी. जब उन्हें पता चला कि एमएस सत्यु उनको फ़िल्म में अभिनय के लिए लेने आए हैं तो,वो भावुक होकर रोने लग गईं. उनका हमेशा से रहा सपना पूरा होने को था. बदर बेग़म ने अपने किरदार को इतनी शिद्दत से निभाया कि वह हमेशा के लिए दर्शकों के ज़ेहन में अमर हो गईं.
फ़िल्म का बजट क्योंकि बहुत सीमित था इसलिए फ़िल्म, स्टूडियो की जगह आगरा की वास्तविक लोकेशनों पर फ़िल्माई गई. हालाँकि बाद में कुछ सांप्रदायिक तत्वों के कारण फ़िल्म को विरोध झेलना पड़ा और फ़िल्म के कुछ हिस्से सेट्स बनाकर फ़िल्माए गए. इसी बीच एक दुखद घटना हो गई. फ़िल्म की शूटिंग पूरी होने के बाद डबिंग की बारी आई तो, बलराज साहनी साहब स्टूडियो पहुँच गए.उन्होंने अपने संवाद बखूबी डब कराए और घर चले गए. अगले रोज़ खबर आई कि बलराज साहब का हृदयगति रुकने से इंतकाल हो गया है. अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ काम देखने के लिए, बलराज साहब इस दुनिया में नहीं रहे थे.
जब फ़िल्म बनकर तैयार हुई और सेंसर बोर्ड के पास पहुँची तो,सेंसर बोर्ड ने यह कहकर आठ महीने के लिए फ़िल्म रोके रखी कि इस फ़िल्म से सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने और दंगे होने की प्रबल सम्भावना है.इस पर एम.एस सत्यु साहब ने कुछ पत्रकारों और सरकारी अधिकारियों के लिए फ़िल्म की स्क्रीनिंग करवाई. सभी को फ़िल्म असरदार लगी और इस तरह फ़िल्म के रिलीज़ होने का रास्ता खुला.
फ़िल्म “गर्म हवा” सन 1973 में सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई. जिसने भी फ़िल्म देखी, वो फ़िल्म का ही होकर रह गया. बलराज साहनी साहब के शानदार अभिनय ने दर्शकों पर गहरा असर और कई सवाल छोड़े थे. फ़िल्म गर्म हवा को कई पुरुस्कारों से भी नवाज़ा गया. सन् 1975 में आयोजित फ़िल्मफेयर अवार्ड्स में फ़िल्म गर्म हवा को तीन पुरुस्कार मिले. सर्वश्रेष्ठ कहानी के लिए इस्मत चुगताई, सर्वश्रेष्ठ संवाद के लिए कैफ़ी आज़मी और सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखन के लिए शमा ज़ैदी और कैफ़ी आज़मी को सम्मानित किया गया. इसके साथ ही सन 1974 में फ़िल्म गर्म हवा को राष्ट्रीय एकता के लिए “सर्वश्रेष्ठ फ़ीचर फ़िल्म” का नर्गिस दत्त पुरुस्कार दिया गया.
गर्म हवा उस साल भारत की तरफ़ से ऑस्कर अवार्ड्स के लिए भारत की आधिकारिक एंट्री थी. फ़िल्म गर्म हवा उन चुनिन्दा फ़िल्मों में शामिल है,जिसने बहुत कामयाबी से सामाजिक परिवेश,सवालों को फ़िल्मी पर्दे पर उकेरा है. इस तरह फ़िल्म गर्म हवा निर्देशक एमएस सत्यु साहब की पहचान बन गई.