खतरनाक होते गिरती मुद्रास्फीति के संकेत
भारत में लगातार घट रही मुद्रास्फीति आने वाले समय में अर्थव्यवस्था के लिए परेशानी का सबब बन सकती है. अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, लगातार बढ़ती और गिरती मुद्रास्फीति दर किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए सही सूचक नहीं है.
आंकड़ें बताते हैं कि पिछले नौ महीनों में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति लक्षित 4 फीसदी से भी कम रही है. बीते तीन महीनों में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ने के बावजूद 4 फीसदी से कम बनी हुई है. पिछते महीने यह 2.92 फीसदी थी.
जानकार कहते हैं कि कम होती मुद्रास्फीति मांग में आई कमी की ओर इशारा करती है. अगर लगातार आठ तिमाहियों तक मुद्रास्फीति घटती है तो इसका सीधा अर्थ खपत में गिरावट आने से है .
लाइव मिंट की खबर के मुताबिक इंडसइंड बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री गौरव कपूर कहते हैं कि “बीते साल अक्टूबर 2018 में 6.24 फीसदी के बाद ये लगातार सातवां महीना है जब मूल मुद्रास्फीति दर घटी है. इससे साफ संकेत मिलते हैं कि ग्राहकों की मांग में कमी आई है.”
इसकी वजह से कार निर्माताओं से लेकर बिस्कुट बनाने वालों के हाथ से मूल्य निर्धारण की क्षमता निकलती जा रही है. वहीं विश्लेषकों में डर है कि अगर आगे ऐसा जारी रहा तो निवेश में कमी आएगी.
आरबीआई 2020 वित्त वर्ष के लिए पहले ही अनुमाति विकास दर में कटौती करके 7.2 फीसदी कर चुका है.
आरबीआई मौद्रिक नीति समिति के सदस्य चेतन घाटे ने अप्रैल में हुई मीटिंग में कहा था कि खपत की मांग में बढ़ोत्तरी से निवेश की मांग भी बढ़ती है. लेकिन निवेश की मांग में बढ़ोतरी से खपत की मांग में बढ़ोत्तरी हो, ये जरूरी नहीं है.
ग्रामीण क्षेत्रों में घटी मांग भी इस बारे में काफी कुछ कहती है. लंबे समय से खाद्य विघटन के कारण ग्रामीण विकास दर में कमी आई है, जिसके कारण किसानों की आय घटी है. आय में गिरावट का सीधा असर लोगों की खर्च करने की क्षमता और मांग पर हुआ है.
इसके साथ ही मानसून का भी ग्रामीण क्षेत्र में मांग पर गहरा असर होता है. निजी मौसम अनुमान संस्था स्काईमेट के मुताबिक इस साल मानसून 93 फीसदी रहेगा, यानी बहुत अच्छा मानसून रहने की संभावना नहीं है.
ऐसे में घटती मुद्रास्फीति पर सरकार की आने वाली नीतियां निर्धारित करेंगी कि वह समस्या से कैसे निपटती है.