परिवार नियोजन का पूरा भार महिलाओं पर
परिवार नियोजन को लेकर भारतीय पुरुष अपनी जिम्मेदारियों से बचते आए हैं और इसकी पूरी जिम्मेदारी महिलाओं पर डाल दी जाती है. बीते दस वर्षों में गर्भनिरोधक अपनाने वाले पुरुषों की संख्या में गिरावट आई है.
इंटरनेशल जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ (आईजेसीएम) ने साल 2005-06 और 2015-16 में जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (डीएचएस) कार्यक्रम और राष्ट्रीय परिवार स्वस्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) और एनएफएचएस-3 के आंकड़ों का अध्ययन किया. इस अध्ययन में कई अहम बातें सामने आई हैं.
राष्ट्रीय परिवार स्वस्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) में सामने आया कि देश में गर्भनिरोधक का 56 फीसदी विज्ञापन किया गया था. जो कि राष्ट्रीय परिवार स्वस्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-3) के बाद से नहीं बदला है. अध्ययन से यह भी पता चला है कि वर्ष 2004 से गर्भनिरोधक प्रसार दर में कोई बदलाव नहीं आया है.
लाइव मिंट लिखता है कि अध्ययन के मुताबिक, “गर्भनिरोधक के आधुनिक तरीकों को लेकर थोड़ी-बहुत जागरूकता बढ़ी है. महिलाओं के बीच यह जागरुकता एनएफएचएस-3 के दौरान 98 फीसदी से बढ़कर एनएफएचएस-4 के दौरान 99.2 फीसदी हुई. वहीं दोनों राउंड के बाद भी 98.6 फीसदी पुरुष इसे लेकर जागरुक नहीं हैं. इंट्रा युटेरीन डिवाइस (आईयूडी), कॉन्डम और गोलियों का इस्तेमाल 1.7 फीसदी, 5.2 फीसदी और 3.1 फीसदी से बढ़कर 2.7 और 5 फीसदी हो गया है. महिलाओं में नसबंदी 37.3 फीसदी से घटकर 34 फीसदी हो गई है. जबकि पुरुषों में यह 1 फीसदी से घटकर 0.4 फीसदी रह गई.”
पिछले महीने प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार 2027 तक चीन के मुकाबले भारत की आबादी विश्व में सबसे ज्यादा होगी.
आईजेसीएम के अध्ययन में यह कहा गया है कि राष्ट्रीय जनसंख्या नीति (2000) के अवलोकन के अनुसार केवल नसबंदी से जनसंख्या को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. इसके साथ ही परिवारों को उसके आकार को भी कम करने की जरुरत है. देश में लगभग 45 फीसदी परिवारों में दो से ज्यादा बच्चों का जन्म होता है. इससे जनसंख्या में वृद्धि हो रही है.
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुतरेजा ने कहा, “परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी बेहद कम है. भारत समेत विश्व के अनेक हिस्सों में परिवार नियोजन को महिलाओं की समस्या समझा जाता है. एनएफएचएस–4 के मुताबिक 8 में से 3 पुरुषों का मानना है कि गर्भनिरोधक महिलाओं के लिए है. और पुरुषों को इसके लिए परेशान होने की जरुरत नहीं है. ऐतेहासिक रूप से बड़े पैमाने पर सारा जोर केवल महिलाओं के तरीकों पर दिया गया है. पुरुषों इसमें न के बराबर शामिल हैं. पुरुषों के न शामिल होने की वजह से गर्भनिरोधक के इस्तेमाल में भी कमी रही है.”
उन्होंने कहा, “पुरुषों द्वारा गर्भनिरोधक इस्तेमाल नहीं करने के पीछे कई सारे मिथक और भ्रांतियां हैं. जैसे मरदानगी का कम हो जाना.”
वो कहती हैं कि “स्वास्थ्य और परिवार नियोजन में पुरुषों को शामिल करने के लिए व्यवस्थित प्रणाली को लागू करने की जरूरत है. जीवन साथी होने के नाते पुरुषों को महज गर्भनिरोधक से आगे बढ़कर परिवार नियोजन और स्वास्थ्य सेवाओं में भागीदारी लेने की जरूरत है.”
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने परिवार नियोजन में पुरुषों की सहभागिता बढ़ाने के लिए ‘नसबंदी पखवाड़ा’ की शुरुआत की है. पुरुषों की नसबंदी को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए यह कार्यक्रम हर साल सभी राज्यों में नवंबर के महीने में किया जाता है. इसके लिए सरकार सेवा प्रदाताओं को नो स्कैप्ल वेस्कटॉमी (एनएसवी) यानी चीरा रहित पुरुष नसबंदी का प्रशिक्षण भी दे रही है. इससे अधिक से अधिक लोगों को जागरुक करने में सहायता मिलेगी.
सरकार ने परिवार नियोजन के लिए जगह-जगह कॉन्डम बॉक्स भी रखे, ताकि लोग आसानी से इनका इस्तेमाल कर सके. गर्भनिरोधक स्कीम के तहत घर-घर तक गर्भनिरोधक गोलियों के साथ-साथ कॉन्डम भी बांटने की शुरुआत की गई. नसबंदी स्कीम के तहत सरकार ने पुरुषों के नसबंदी के लिए मुआवजा भी बढ़ा दिया. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय मीडिया कैंपेन के तहत परिवार नियोजन में पुरुषों की सहभागिता बढ़ाने के लिए काम कर रही है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने संसद में पेश किए हालिया आंकड़ों के मुताबिक देश में औसतन केवल 5.9 फीसदी पुरुष ही नसबंदी और कॉन्डम का इस्तेमाल कर रहे हैं.
एशियाई अस्पताल फरीदाबाद के प्रसूति और स्त्री रोग विभाग की प्रमुख अंकिता कांत ने कहा, “भारतीय समाज में ज्यादातर परिवारों में परंपरागत रूप से पतियों द्वारा बर्थ कंट्रोल के लिए सहयोग नहीं मिलता है. वे इसे लेकर काफी लापरवाह हैं. पुरुष नसबंदी और महिला नसबंदी का तेजी से घटना इसका सबूत है.”
उन्होंने कहा, “वक्त आ चुका है जब पुरुषों को परिवार नियोजन कार्यक्रम में शामिल किया जाए. साथ ही परिवार के हर सदस्य को इसके लिए शिक्षित किया जाए. खासतौर पर महिलाओं के सास-ससुर को. नसबंदी हमेशा योग्य चिकित्सक को करनी चाहिए. इसके अलावा इसे करते समय सफाई का खास ख्याल रखना चाहिए. पाया गया है कि परिवार नियोजन शिविरों में होने वाली नसबंदी सुरक्षित नहीं होती है.”
भारत में चार दशकों से परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू होने के बाद भी देश की आबादी 2 फीसदी की दर से बढ़ रही है.
सरकार के परिवार नियोजन कार्यक्रम का देश में प्रचार-प्रसार होने से अब बड़े पैमाने पर शादीशुदा जोड़े इसे अपना रहे हैं.
स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में सुधार के लिए राज्य सरकारों के साथ काम करने वाले एक सामाजिक चिकित्सा उद्यम ओमनीकोरिस की संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी सविथा कुट्टन ने बताया, “लोगों ने आधुनिक परिवार नियोजन के तरीकों को अपनाया है जिससे प्रजनन दर घटा है. साथ ही परिवार नियोजन को अपनाने में लिंगभेद भी अहम किरदार निभाता है. भारतीयों द्वारा आधुनिक परिवार नियोजन अपनाने से महिलाओं की नसबंदी 75 फीसदी हुई है. इससे यह पता चलता है कि सरकार ने परिवार नियोजन कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए सबसे ज्यादा जोर केवल महिलाओं पर दिया है.”
कुट्टन ने विस्तार से बताया कि पुरुषों के बीच कम जागरूकता होने के चलते नसबंदी में रूकावट आती है. पुरुष खुद भी गर्भनिरोधक नहीं अपनाते हैं और ना ही महिलाओं को अपनाने देते हैं. उन्होंने कहा, “नसबंदी की प्रक्रिया सुरक्षित और छोटी होने के बावजूद पुरुष इसे करवाने के इच्छुक नहीं होते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से वो अपनी मर्दानगी खो देंगे.”