अमेरिकी लोकतंत्र की कठिन परीक्षा
कहा जाता है कि अमेरिका में चेक एंड बैलेंस का सिस्टम इतना मजबूत है कि कोई सत्ताधारी तानाशाही की तरफ नहीं जा सकता. लेकिन डोनल्ड ट्रंप के दौर में इस यकीन पर कई सवाल उठे हैं.
ट्रंप प्रशासन ने कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिन्हें अभूतपूर्व कहा जाता है. हाल में टीवी चैनल सीएनएन के संवाददाता जिम एकोस्टा के ह्वाइट हाउस में प्रवेश पर रोक लगा दी है. सीएनएन ने इस कदम को कोर्ट में चुनौती दी है. अमेरिकी संविधान के प्रथम संशोधन के तहत प्रेस की स्वतंत्रता के एक मूलभूत अधिकार है. अब देखने पर निगाहें टिकी हैं कि क्या अमेरिकी न्यायपालिका इस अधिकार की रक्षा में खड़ी होती है.
अमेरिका में हाल के संसदीय चुनाव का नतीजा आने के बाद डोनल्ड ट्रंप की प्रेस कांफ्रेंस में ट्रंप और सीएनएन संवाददाता में झड़प हुई. इस बहुचर्चित घटना के बाद डोनल्ड ट्रंप प्रशासन ने सीएनएन के संवाददाता जिम एकोस्टा के ह्वाइट हाउस में प्रवेश पर रोक लगा दी. ये कदम अब अमेरिकी संविधान और उसके तहत मिले अधिकारों की मजबूती का टेस्ट केस बन गया है. सीएनएन और एस्कोटा ने इस कार्रवाई को स्वीकार नहीं किया. उन्होंने इसे कोर्ट में चुनौती दे दी.
सीएनएन और एकोस्टा ने ट्रंप, उनके चीफ ऑफ स्टाफ जॉन केली, संचार मामलों के के प्रभारी डेपुटी चीफ ऑफ स्टाफ बिल शाइन, ह्वाइट हाउस के प्रेस सचिव सराह सैंडर्स, खुफिया सेवा के निदेश रैंडॉल्फ एलिस और एकोस्टा से ह्वाइट हाउस का पास छीनने वाले खुफिया सेवा अधिकारी को प्रतिवादी बनाया है।
सीएनएन ने इसे संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई बना दिया है. उसका दावा है कि ह्वाइट हाउस का कदम अमेरिकी संविधान के पहले और पांचवें संविधान संशोधन से जुड़े प्रावधानों का उल्लंघन है. अमेरिकी संविधान के पहले दस संशोधनों को बिल ऑफ राइट्स यानी नागरिकों के अधिकार पत्र का हिस्सा माना जाता है.
पहले संशोधन के मुताबिक सरकार के पास अर्जी देने, धर्म, अभिव्यक्ति, प्रेस और सभा की स्वतंत्रता को अमेरिकी नागरिकों के अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है. पांचवें संशोधन के तहत ये व्यवस्था है कि अमेरिकी नागरिकों को बिना वैध कानूनी प्रक्रिया अपनाए जीवन, स्वतंत्रताओं और संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता.
सीएनएन और एकोस्टा की दलील है कि ट्रंप प्रशासन ने प्रेस की स्वतंत्रता के मूल अधिकार से उन्हें वंचित करने की कोशिश की है. साथ ही उसने एक नागरिक के रूप में एकोस्टा के अधिकार का भी उल्लंघन किया है.
इसके पहले अपने कई फैसलों में अमेरिकी न्यायपालिका यह व्यवस्था दे चुकी है कि जब तक किसी रिपोर्टर से शारीरिक खतरा होने का सबूत ना मिले, उसे ह्वाइट हाउस में आने से नहीं रोका जा सकता. मगर समस्या यह है कि ट्रंप के दौर में ट्रंप प्रशासन अपने ढंग से संवैधानिक उसूलों और न्यायिक फैसलों की व्याख्या करता है.
खुद राष्ट्रपति के बारे में ये धारणा गहराती गई है कि वे बेहिचक तथ्यों के उलट बातें करते हैं. उनका और उनके प्रशासन के व्यवहार भी ऐसा ही रहा है. इसीलिए अब निगाहें यह देखने पर है कि क्या अमेरिकी न्यायपालिका समय के तकाजे पर खरी उतरती है. क्या वह ट्रंप प्रशासन की मनमानियों पर रोक लगाने में कामयाब होगी?