इसलिए खास है न्यूजीलैंड की सफलता
जो लोग किस्मत में यकीन करते हैं, वो इसमें निर्णायक पहलू भाग्य को ही मानेंगे. वरना, ऐसे बहुत सारे सवाल हैं, जो उठे हैं और जिनका जवाब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के पास नहीं होगा.
बेशक 12वें क्रिकेट विश्व कप टूर्नामेंट का फाइनल मैच बेहद रोमांचक था. उसमें उतार-चढ़ाव आते रहे. क्रिकेट प्रेमियों की सांसें उनके साथ उतरती- चढ़ती रहीं. अनेक लोगों की यह राय निराधार नहीं है कि ऐसा दिलचस्प फाइनल मैच इसके पहले किसी वर्ल्ड कप में नहीं हुआ था. मगर जिस तरह इसका अंत हुआ, उससे हजारों क्रिकेट प्रेमियों का जी खट्टा हुआ. इसलिए कि उन्हें महसूस हुआ कि नतीजा वाजिब नहीं है. दूसरे शब्दों में इसे ऐसे कहा जाएगा कि न्यूजीलैंड के साथ इंसाफ नहीं हुआ.
न्यूजीलैंड की टीम टूर्नामेंट में फेवरिट टीम (संभावित विजेता) के रूप में नहीं आई थी. मगर टूर्नामेंट में उसने असाधारण प्रदर्शन किया. खास ध्यान देने की बात है कि सेमीफाइनल में उसने भारत को हराया, जो फेवरिट टीम थी. अगली फेवरिट टीम इंग्लैंड थी, जिसे उसने हर व्यावहारिक रूप में फाइनल में हरा दिया. मगर खराब अपांयरिंग और अतार्किक नियम के फेर के कारण ये टीम चैंपियन नहीं बन सकी.
अब ये बात पांच बार आईसीसी का अंपायर ऑफ द ईयर अवार्ड जीतने वाले साइमन टफेल, अनेक पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ियों और क्रिकेट जानकारों ने भी कह दी है कि रन लेने के लिए दौड़ रहे बेन स्टोक्स के बैट से लग कर बाउंड्री के बाहर गई गेंद के आधार पर इंग्लैंड को चार बाइ रन नहीं मिलने चाहिए थे. फील्डर द्वारा फेंकी गई गेंद स्टोक्स के बैट से लग कर बाउंड्री के बाहर चली गई थी. अगर ये रन इंग्लैंड को नहीं मिलते, तो तय 50 ओवरों में ही इंग्लैंड हार जाता. यानी जीत का सेहरा न्यूजीलैंड के सिर बंध जाता.
कुछ रिपोर्टों में यह भी ध्यान दिलाया गया है कि जब राशिद खान रन आउट हुए, तब दोनों बैट्समैन पहला रन पूरा नहीं कर पाए थे. लेकिन अंपायर ने वो रन इंग्लैंड को दे दिया. इनमें से कोई भी निर्णय अगर न्यूजीलैंड के पक्ष में गया होता, तो विश्व विजेता का खिताब आज उसके ही नाम होता. ऐसा ना होने के कारण मैच सुपर ओवर में गया. वहां भी न्यूजीलैंड ने स्कोर टाई कर दिया. मगर कम बाउंड्री मारने के नियम के आधार पर. यह भी एक बेतुका नियम है, हालांकि आईसीसी कह सकती है इसे टूर्नामेंट के पहले ही तय कर लिया गया था और सभी टीमों को इसकी जानकारी थी.
बहरहाल, अब सच यही है कि इंग्लैंड आईसीसी वर्ल्ड कप का चैंपियन है. मगर दुनिया में चर्चा न्यूजीलैंड की ही है. न्यूजीलैंड तकरीबन 48 लाख की आबादी वाला छोटा-सा देश है. अपने पड़ोसी ऑस्ट्रेलिया की ही तरह इसने दुनिया में अपनी पहचान खेल की वजह से बनाई हुई है. रग्बी, क्रिकेट, फुटबॉल और हॉकी में उसकी टीमें दुनिया के स्तर पर मजबूत मुकाबला कर रही होती हैं. हाल में वहां की प्रधानमंत्री जेसिंडा ऑर्डेन ने अपने उदारवादी और प्रगतिशील नीतियों के कारण भी अपने देश की एक खास पहचान बनाई है.
इस वक्त जबकि दुनिया में धुर दक्षिणपंथी और उग्र राष्ट्रवादी जनोत्तेजक नेताओं और पार्टियों का दौर आया हुआ है, ऑर्डेन ने नवजागरण के आधुनिक मूल्यों के मुताबिक आचरण करके एक तरह से दुनिया को नैतिक नेतृत्व दिया है. यह भी एक वजह है कि उनके देश की टीम से बहुत से लोगों को सहानुभूति थी.
न्यूजीलैंड को विश्व-विजेता बनाने के लिहाज से उस टीम का प्रदर्शन और ये सहानुभूति काफी साबित नहीं हुए. मगर न्यूजीलैंड की टीम ने इस बात का उदाहरण जरूर पेश किया है कि कम आबादी और कम धनी बोर्ड होने के बावजूद कोई टीम विश्व मंच पर बेहतर खेल दिखा सकती है.
गौरतलब है कि आर्थिक रूप से तीन सबसे शक्तिशाली बोर्डों- भारत, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया- ने अब विश्व क्रिकेट के ढांचे को ऐसा बना दिया है, जिसमें बाकी देशों के लिए प्रतिकूल स्थितियां पैदा हो गई हैं. इस हाल में इन देशों को न्यूजीलैंड ने जैसी टक्कर दी, वह मिसाल है कि खेल में पैसा ही सब कुछ नहीं होता. इसीलिए न्यूजीलैंड की सफलता ने दुनिया में सबको खुश किया है.