आखिर क्यों खेमे में बंट जाते हैं रचनाकार? फिर से क्यों उठने लगा है लेखकों-संस्कृतिकर्मियों की एकता का सवाल? और कितना खतरनाक है आज के दौर में सपनों का मर जाना?