वायु सेना पर एचएएल का 14,000 करोड़ बकाया
ये संकेत मजबूत होते जा रहे हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र की नवरत्न कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड(एचएएल) गहरे संकट के दौर से गुजर रही है.
खबर है कि इंडियन एयरफोर्स (आईएएफ) पर एचएएल का 14,000 करोड़ रुपया बकाया है. यह पिछले 80 सालों में सबसे अधिक है. इतना ही नहीं, अगर हालात में सुधार नहीं हुआ तो दो महीने में आईएएफ को दी जाने वाली सेवाएं बंद हो सकती हैं.
इस संकेत के मद्देनजर, एचएएल ने साल की शुरुआत में खर्च में कटौती का निर्णय लिया है. इनमें 20 फीसदी ठेके पर बहाल कर्मचारियों की छंटनी और कम महत्वपूर्ण यात्राओं में कटौती का निर्णय शामिल है.
नौ जनवरी को एचएएल के सीएमडी आर माधवन और तीनों सेना के प्रमुख के साथ रक्षा मंत्री की बैठक हो रही है. बैठक में बकाया भुगतान और सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा कंपनियों(डीपीएसयू) के लिए प्रोडक्शन आर्डर मिलने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात हो सकती है.
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आईएएफ, एचएएल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है. आम तौर पर आईएएफ की ओर से तीन महीनों के भीतर भुगतान होता है. वित्तीय वर्ष 2017-18 में 7,000 करोड़ रुपया बकाया था. इसमें 2,000 करोड़ के भुगतान ही हो पाया था. अब यह बकाया राशि बढ़कर 14,000 करोड़ रुपए हो गई है.
भुगतान में देरी की वजह से एचएएल के पास सैन्य जहाज और हेलीकॉप्टर के लिए आवश्यक कलपुर्जे और अन्य सामान की खरीददारी के लिए धन नहीं बचा है. एचएएल 18, 6000 करोड़ की कंपनी है.
अंग्रेजी अखबार द हिन्दू में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2018 के अंत तक पांच हल्के वजन के लड़ाकू जहाज ‘तेजस’ की आपूर्ति होनी है. जिसके बाद आईएएफ पर बकाया राशि बढ़कर करीब 20,000 करोड़ रुपए हो जाएगी.
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द हिन्दू ने एचएएल के सीएमडी आर माधवन के हवाले से लिखा है, “धन का प्रवाह हमारे लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है. हमारे पास बजट नहीं है. इसकी वजह से एयरक्राफ्ट की सेवा में देरी हो सकती है.”
रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियों को कच्चे माल की आपूर्ति 2500 से अधिक छोटे और मझौले वेंडर करते हैं. जाहिर है कि बजट में कमी होने से एचएएल इन वेंडरों से कच्चा माल नहीं खरीद सकता.
इतना ही नहीं, पिछले महीने कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए 962 करोड़ का ओवरड्राफ्ट हुआ है. इससे पहले तक एचएएल कर्ज मुक्त रहा है. इसके तुरंत बाद पूरे देशभर में फैले एचएएल के केन्द्रों से ठेके पर बहाल 2200 कर्मचारियों को निकाला गया है.
इसके साथ ही अधिकारियों को देश और विदेशों में आयोजित होने वाले प्रशिक्षण और सेमिनार में भाग लेने पर बहुत हद तक रोक लगा दी गई है. कंपनी ने विज्ञापन और प्रचार में भी कटौती की है.
पिछले पांच सालों में एचएएल ने 11,500 करोड़ रुपया शेयर खरीदने और अन्य मदों में सरकार को दिया है.
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