भारत में सात फीसदी से कम बच्चों को मिलता है पोषणयुक्त आहार
VAAGDHARA
भारत में दो साल से कम उम्र के बच्चों को उनके उम्र के मुताबिक न्यूनतम आहार नहीं मिल रहा है.
स्वास्थ्य मंत्रालय की पहली व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (सीएनएनएस) से पता चला है कि भारत में दो साल से कम उम्र के सिर्फ 6.4 फीसदी बच्चों को ही पोषणयुक्त न्यूनतम आहार मिल रहा है.
यह अनुपात अलग-अलग राज्यों में व्यापक रूप से भिन्न है. आंध्रप्रदेश में यह 1.3 फीसदी है तो वहीं सिक्किम में यह 35.9 फीसदी है.
यह आंकड़े केवल आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के ही नहीं है.
अन्य राज्यों की बात करें तो महाराष्ट्र में 2.2 फीसदी, गुजरात, तेलंगाना और कर्नाटक में 3.6 फीसदी और तमिलनाडु में 4.2 फीसदी के साथ इस पैमाने पर काफी पिछड़े हैं. हालांकि इन राज्यों को विकसित माना जाता है. दूसरी ओर ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड और असाम जैसे राज्य देश के औसत से बेहतर स्थिति में हैं. हालांकि इन राज्यों को पिछड़े राज्यों के तौर पर देखा जाता है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का सर्वेक्षण यह दिखाता है कि पांच साल से कम उम्र के 35 फीसदी बच्चों में उम्र के अनुपात में कद कम पाया गया है. 17 फीसदी बच्चों में कद के अनुपात में वजन कम पाया गया है. 33 फीसदी बच्चों में उम्र के अनुपात में वजन कम पाया गया है. इसके विपरित सिर्फ 2 फीसदी बच्चों का वजन ज्यादा था और मोटापा से ग्रस्त थे. छह महीने से पांच साल के बीच के 11 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं.
पांच से नौ साल के बच्चों में से 22 फीसदी बच्चों का विकास सही ढंग से नहीं हो रहा है, 10 फीसदी बच्चे कम वजन के शिकार हैं और चार फीसदी बच्चे ज्यादा वजन और मोटापा से ग्रस्त हैं.
यह सर्वेक्षण एक खास पहलू की ओर इशारा करता है कि भारत में बच्चों के पोषण और खान-पान में गरीबी की अहम भुमिका है. इससे बच्चों का पोषण प्रभावित होता है. हालांकि स्थिति धीरे-धीरे सुधर रही है.
किशोरों कि बात करें तो 10 से 19 साल के 24 फीसदी किशोर दुबले-पतले हैं, 5 फीसदी का वजन ज्यादा है और मोटापा के शिकार हैं.
आर्थिक तौर पर सक्षम परिवार में मोटापे और ज्यादा वजन के 12 फीसदी बच्चे मिले वहीं गरीब परिवारों में यह 1 फीसदी है.
सर्वेक्षण में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि 10 फीसदी स्कूल जाने वाले बच्चों और किशोरों में मधुमेह होने के लक्षण हैं. इसका अनुपात राज्यों में अलग-अलग है.
सीएनएनएस देश में किया गया सबसे बड़ा सूक्ष्म पोषक सर्वेक्षण है. इस सर्वेक्षण में 1.1 लाख बच्चों और किशोरों को शामिल किया गया था.
सर्वेक्षण में 51 हजार बच्चों के खून, मल और मूत्र के सैंपल लिए गए थे. इसके आधार पर बच्चों के स्वास्थ्य की जांच की गई थी. इसके अलावा इन बच्चों की मां के खानपान और शिक्षा, इनके समूदाय, जाति और आर्थिक स्थिति के बारे में भी जानकारी शामिल की गई है.