असम समझौते की उच्चस्तरीय समिति से बेजबरुआ ने वापस लिया नाम


 

अंग्रेजी दैनिक दि हिन्दू की खबर के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा 1985 के असम समझौते के अनुच्छेद 6 के क्रियान्वयन के लिए गठित की गई 9 सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का नेतृत्व अब पूर्व नौकरशाह एम.पी.बेजबरुआ नहीं करेंगे. अखबार ने लिखा है कि बेजबरुआ ने इस संबंध में गृह मंत्रालय को सूचित कर दिया है.

इतना ही नहीं, अखबार ने लिखा है कि इस 9 सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति के तीन अन्य सदस्यों और मूल रूप से समझौते में शामिल ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के एक प्रतिनिधि ने भी समिति में शामिल होने से इंकार कर दिया है. माना जा रहा है कि बेजबरुआ ने गृह मंत्रालय को लिखे अपने पत्र में यह कहा है कि ऐसी स्थिति में उनके समिति के नेतृत्व का कोई औचित्य नहीं रह जाता है.

असम समझौते का अनुच्छेद 6 राज्य के स्थानीय समुदायों की पहचान और उनकी सुरक्षा के लिए संवैधानिक गारंटी प्रदान करता है. यह समझौता असम की स्थानीय सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान, धरोहर के संरक्षण और उसे बढ़ावा देने के लिए उचित संवैधानिक और प्रशासनिक उपाय की बात भी करता है.

गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश करते समय असम के स्थानीय समुदायों की सुरक्षा के लिए 9 सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति गठित करने की बात कही थी.

असम में बीते कई दिनों से नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर भारी विरोध-प्रदर्शन चल रहे हैं. अगर यह विधेयक कानून बनता है तो असम में बांग्लादेश से पलायन कर 31 दिसंबर 2014 तक भारत आने वाले सभी गैर-मुस्लिम समुदायों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी.

जबकि केंद्र, राज्य सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के बीच हुए त्रिस्तरीय असम समझौते के तहत, बांग्लादेश से पलायन करने वाले गैर-मुस्लिम समुदायों को भारतीय नागरिकता देने के लिए 25 मार्च, 1971 की कट-आफ तारीख निर्धारित की गई थी.

वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर असम में मार्च 1971 के बाद से आए लोगों की गिनती के लिए नेशनल रजिस्ट्रार आफ सिटीजनशिप (एनसीआर) को अपडेट किया जा रहा है.


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